अगरतला भारत के तीसरे सबसे छोटे राज्य त्रिपुरा की राजधानी है । उत्तर-पूर्व भारत के सुदूर कोने में स्थित अन्य शहरों और क़स्बों की तरह अगरतला भी एक उनींदा सा शहर है, जिसके बारे में बहुत कम ही सुनने को मिलता है । इस शहर की पहचान बस त्रिपुरा की राजधानी होने के कारण ही रही है । लेकिन, सुदूर कोने में स्थित अगरतला की भौगोलिक स्थिति ही इसे भारत सरकार के लिए काफ़ी महत्वपूर्ण बना देती है । यही वजह है कि आज जहाँ कभी ट्रेन नही आती थी, वहीं अब अगरतला से दिल्ली के बीच राजधानी एक्सप्रेस चलती है और अगरतला का हवाई अड्डा पूर्वोत्तर के व्यस्त रहने वाले हवाई अड्डों में से एक है ।

अगरतला के इतने महत्वपूर्ण होने की वजह हज़ारों मील दूर स्थित भारत की एक बड़ी कमज़ोर नस की वजह से है, जिसे हम ‘चिकन नेक’ या ‘सिलीगुड़ी कारिडोर’ के नाम से जानते हैं । भारत के मुख्य भूभाग और उसके पूर्वोत्तर हिस्से के सात राज्यों के बीच में बांग्लादेश घुसा हुआ है । पूर्वोत्तर भारत को देश के अन्य हिस्सों से जोड़ने के लिए ज़मीन का एक पतला टुकड़ा, ‘सिलीगुड़ी कारिडोर’, एक पुल का काम करता है । लेकिन सबसे न्यूनतम चौड़ाई वाले हिस्से में यह ज़मीन का टुकड़ा मात्र 20 किमी चौड़ा है । इसके बाक़ी तरफ़ नेपाल, बांग्लादेश और भूटान हैं और थोड़ी ही दूर पर चीन भी है । यही वजह है कि ‘सिलीगुड़ी कारिडोर’ को भारत की एक ऐसी कमज़ोर नस माना जाता है, जिसके दबते ही पूर्वोत्तर भारत, शेष भारत से अलग-थलग पड़ जाएगा । भारत की इसी कमज़ोरी ने त्रिपुरा के कई इलाक़ों को अपने भूले -बिसरे और शेष भारत से अलग-थलग रहने वाले अतीत से निकलने का एक मौक़ा दे दिया है ।

लेकिन त्रिपुरा ही क्यों? इसका मुख्य कारण इसकी पश्चिम बंगाल, ख़ास तौर से कोलकाता से भौगोलिक नज़दीकी है । अगरतला और कोलकाता के बीच की दूरी 1600 किमी है, लेकिन बांग्लादेश के रास्ते यह दूरी मात्र 450 किमी है । ट्रेन द्वारा कोलकाता से अगरतला तक सिलीगुड़ी कारिडोर होते हुए जाने पर 38 घंटे लग जाते हैं, जबकि बांग्लादेश के रास्ते यह दूरी 7-8 घंटे में तय की जा सकती है । कोलकाता से अगरतला के बीच बांग्लादेश के ऊपर से होकर हवाई जहाज़ से सफ़र करने से मात्र आधा घंटा लगता है, जबकि सिलीगुड़ी कारिडोर से होकर इसी सफ़र में कम से कम 2 घंटे लग जाते । इन्हीं सब वजहों से भारत सरकार ने बांग्लादेश से रिश्ते मधुर रखते हुए अब कोलकाता-अगरतला वाले सम्पर्क साधनों को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है, ताकि पूर्वोत्तर भारत की ‘सिलीगुड़ी कारिडोर’ पर निर्भरता कम की जा सके । यही वजह है कि अब त्रिपुरा में अगरतला और सबरूम जैसी जगहों पर विकास कार्य बहुत तेज़ी से किए जा रहे हैं ।

त्रिपुरा घूमने के उद्देश्य से मैं भी एक दिन इस प्रदेश की ख़ाक छानने पहुँच गया । शुरू के तीन दिन में मैंने मेलाघर, उदयपुर, दम्बूर झील, छबिमुड़ा, अमरपुर जैसे त्रिपुरा के कई पर्यटन स्थलों का भ्रमण किया । आख़िरी दिन की सुबह उदयपुर से निकलकर मैं पिलक घूमने चला गया और फिर वहाँ से अगरतला वापसी के दौरान बीच में कमलासागर के पास स्थित क़स्बा कालीबारी मंदिर में माता क़स्बेश्वरी देवी के दर्शन भी किए ।

त्रिपुरा यात्रा की एक झलक : Travel Through The Tiny Tripura

कमलासागर से निकलने के बाद मैं सीधा अगरतला शहर में पहुँचा, जहाँ मेरा सबसे प्रमुख उद्देश्य उज्जयन्ता पैलेस घूमना था । उज्जयन्ता पैलेस अगरतला का सबसे प्रसिद्ध आकर्षण है । इस महल का निर्माण वर्ष 1899 से वर्ष 1901 के बीच त्रिपुरा के महाराजा राधा किशोर माणिक्य द्वारा करवाया गया । निर्माण कार्य का ज़िम्मा मार्टिन एंड बर्न कम्पनी को दिया गया, जिसने बाद में मेलाघर में नीरमहल का भी निर्माण किया । कुछ साल पहले तक यह महल त्रिपुरा विधानसभा के रूप में आम जनता की पहुँच से दूर था और यहाँ प्रवेश करने के लिए विशेष अनुमति की ज़रूरत पड़ती थी, लेकिन 2013 से इस महल को त्रिपुरा राजकीय संग्रहालय के रूप में आम जनता के लिए खोल दिया गया ।

उज्जयन्ता पैलेस, अगरतला
उज्जयन्ता पैलेस, अगरतला

गूगल मैप के सहारे चलते हुए मैं उज्जयन्ता पैलेस पहुँच गया । यह महल एक व्यस्त सड़क के किनारे स्थित है, जहाँ गाड़ी की पार्किंग में दिक़्क़त आ सकती है, लेकिन बाइक, स्कूटी इत्यादि महल के मुख्य दरवाज़े के पास ही आराम से पार्क की जा सकती हैं । महल में प्रवेश करने के लिए कोई टिकट नही है, अंदर स्थित बग़ीचे, लॉन, सरोवर इत्यादि एरिया को मुफ़्त में घूम सकते हैं, लेकिन महल के अंदर स्थित संग्रहालय का प्रवेश शुल्क 20 रुपए प्रति व्यक्ति है । संग्रहालय का प्रवेश टिकट महल के मुख्य द्वार पर ही लेना पड़ता है । कैमरा का कोई शुल्क नही है, क्योंकि फ़ोटोग्राफ़ी की अनुमति बस महल के बाहर ही है । अंदर संग्रहालय में किसी भी तरह की फ़ोटोग्राफ़ी की सख़्त मनाही है । महल के अंदर कैमरा, पर्स, छोटे बैग इत्यादि को ले जा सकते हैं, बाक़ी सामान जमा करने के लिए वहाँ एक बैगेज काउंटर है, जहाँ पर बड़े बैग मुफ़्त में रखे जा सकते हैं, लेकिन लॉकर की कोई सुविधा नही है । संग्रहालय के खुलने का समय सुबह 11.00 बजे से शाम को 06.00 बजे तक है । 01.30 बजे से 02.00 बजे तक लंच ब्रेक के कारण काउंटर बंद रहते हैं । प्रत्येक सोमवार और सरकारी छुट्टियों के दौरान भी महल आम जनता के लिए बंद रहता है ।

उज्जयंता पैलेस का सामने का हिस्सा
उज्जयंता पैलेस का सामने का हिस्सा

यह सारी जानकारी पढ़ने-समझने के बाद मैंने संग्रहालय की एक टिकट ख़रीदी और बैगेज काउंटर पर अपना बैकपैक जमा कर दिया । सिक्योरिटी जाँच के बाद मैं आगे बढ़कर महल परिसर में पहुँच गया ।

उज्जयंता पैलेस का मुग़ल शैली में बना बग़ीचा
उज्जयंता पैलेस का मुग़ल शैली में बना बग़ीचा

परिसर में मुख्य द्वार से घुसते ही मुग़ल स्टाइल का एक बड़ा बग़ीचा नज़र आया । सामने फैला हुआ उद्यान और उसमें लगे फ़व्वारे ताजमहल के प्रवेश द्वार से घुसने का आभास दे रहे थे, बस इस उद्यान के अंत में ताजमहल की जगह उज्जयन्ता पैलेस खड़ा था , बग़ीचे वाली नहर में पानी नही था और फ़व्वारे बंद पड़े थे । इस उद्यान के दोनों तरफ़ दो बड़े -बड़े सरोवर हैं, जो महल की शोभा चार चाँद लगा देते हैं । महल परिसर में स्थित मुग़ल शैली के उद्यान की सूखी पड़ी नहर और बन्द पड़े फ़व्वारों को छोड़ दे, तो हर तरफ़ दिख रहे पेड़-पौधे मन को मोह लेते हैं । दोनो तरफ़ के सरोवरों के किनारे मंदिर बने हुए हैं, जिनमें राजा सुबह-सुबह पूजा करते थे । इन मंदिरों में जगन्नाथ मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर और उमा-माहेश्वरी मंदिर मुख्य हैं ।

महल परिसर में एक सरोवर
महल परिसर में एक सरोवर

धीरे-धीरे उद्यान पार करके मैं महल की मुख्य इमारत के सामने पहुँच गया, जहाँ से मुझे संग्रहालय में प्रवेश करना था । सामने रोमन और मुग़ल शैली के मिश्रण से बना उज्जयन्ता पैलेस अपने पूरे वैभव के साथ चमक रहा था । काफ़ी देर तक महल की कई सारे फ़ोटो खींचने के बाद मैं संग्रहालय में चला गया । संग्रहालय के अंदर एक के बाद एक क़रीब 22 गैलेरियाँ हैं, जहाँ त्रिपुरा के इतिहास, संस्कृति, वास्तुकला, लोक गीत, लोक नृत्य, राजवंश इत्यादि से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियाँ और प्रदर्शनियाँ हैं । पिलक और आसपास के इलाक़ों से प्राप्त पुरातात्विक अवशेषों को विशेष महत्व दिया गया है ।गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का त्रिपुरा राजघराने से विशेष जुड़ाव था, इसलिए वह यहाँ कई बार आएँ । गैलरी का एक हिस्सा गुरुदेव को भी समर्पित है । ऐसे ही एक हिस्से में उत्तर-पूर्व भारत के हर राज्य के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियाँ हैं । एक अन्य ज्ञानवर्धक हिस्से में दक्षिण-पूर्व एशिया के कई देशों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी गई हैं, यहाँ तक कि ब्रूनेई जैसा आमतौर पर नज़रों से दूर रहने वाला देश भी उस गैलरी का हिस्सा है ।

उज्जयंता पैलेस
उज्जयंता पैलेस

सच पूछिए तो संग्रहालय ज्ञान का ऐसा ख़ज़ाना है कि इसके अंदर फ़ोटोग्राफ़ी की अनुमति ना होना बहुत ज़्यादा कचोटता है । अब केवल गैलरी देख-देखकर इंसान कितनी बातें याद रखे? या फिर दूसरा तरीक़ा अपनाए और एक नोटबुक पर महत्वपूर्ण जानकारियाँ नोट करता जाए । लेकिन देखा जाए तो ज़्यादातर संग्रहालय में फ़ोटो खींचने की अनुमति नही होती है, ख़ास तौर से भारत में । ऐसे ही डिगबोई के तेल संग्रहालय में भी हुआ था । वहाँ भी जानकारियों का एक बड़ा ख़ज़ाना है, लेकिन अफ़सोस की फ़ोटो नहीं ले सकते । हालाँकि हांगकांग, मिश्र, रूस इत्यादि देशों में मुझे संग्रहालयों में ऐसी रोकटोक नही मिली । वहाँ खिंची गयी फ़ोटो देखकर अभी भी कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ मेरे जेहन में ताज़ा हो जाती हैं ।

उज्जयंता पैलेस का बायीं तरफ़ का हिस्सा
उज्जयंता पैलेस का बायीं तरफ़ का हिस्सा
उज्जयंता पैलेस का दायीं तरफ़ का हिस्सा
उज्जयंता पैलेस का दायीं तरफ़ का हिस्सा

उज्जयन्ता पैलेस से क़रीब एक किमी दूर कुंजाबन पहाड़ी पर स्थित पुष्पावन्त महल अगरतला का एक और प्रसिद्ध महल है । अप्रैल 2018 तक यह त्रिपुरा के राज्यपाल का निवास स्थान था, इसलिए आम जनता को जाने की इजाज़त नही थी, लेकिन अब राज्यपाल के नए राजभवन में शिफ़्ट हो जाने के बाद इस महल को आम जनता के लिए खोल दिया गया है । भविष्य में यहाँ गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से जुड़ा एक संग्रहालय बनाने की योजना है । मैं समयाभाव के कारण पुष्पावन्त महल नहीं जा पाया ।

त्रिपुरा में एक अन्य पर्यटन स्थल: मेलाघर में नीरमहल की सैर

अगरतला का एक अन्य प्रमुख आकर्षण भारत-बांग्लादेश की अंतराष्ट्रीय सीमा पर स्थित अख़ौरा बॉर्डर चेकपोस्ट है, जहाँ भारत – पाकिस्तान सीमा पर स्थित बाघा बॉर्डर की तरह हर शाम को बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी (Beating Retreat Ceremony) मनाई जाती है । सामान्य तौर पर यह सेरेमनी गर्मियों में शाम को 05.00 बजे के क़रीब और सर्दियों में शाम को 04.30 बजे से शुरू होती है । मैं चार बजे ही वहाँ पहुँच गया । भारत और बांग्लादेश के बीच सीमा पार करके बहुत सारे यात्री आ-जा रहे थे । पहले गेट पर खड़े BSF के जवानों ने मुझे स्कूटी पर देखकर मेरा वहाँ आने का उद्देश्य पूछा । मैंने कहा कि मुझे सेरेमनी देखनी है, तो बिना किसी अन्य सवाल जवाब के उन्होंने पार्किंग की तरफ़ इशारा करके स्कूटी पार्क करने को कहा ।वहाँ से मैं अपना बैकपैक पीठ पर लादकर आगे बढ़ा , जहाँ एक गेट और था । चूँकि मेरी पीठ पर एक बैकपैक था, तो BSF के जवानों द्वारा सवाल-जवाब शुरू हो गए । उन्हें लगा कि मैं बैकपैक़ लेकर बॉर्डर पर सेरेमनी देखने क्यों जा रहा हूँ । बैग में क्या है, कैमरा क्यों है, पत्रकार तो नहीं हो ना, तुमारे पास पासपोर्ट भी है क्या, जैसे कई सवालों की झड़ी लग गयी । फिर एक जवान ने बड़े तल्ख़ लहजे में कहा कि अरे इधर से जाने दो, कोई गड़बड़ करेगा तो आगे QRT वाले देख लेंगे । सवाल-जवाब तो ठीक थे, अंतराष्ट्रीय सीमा होने के कारण उनकी आशंकाएँ भी जायज़ थीं, QRT वाली बात भी ठीक थी, लेकिन बोलने का लहजा बड़ा ख़राब लगा । ख़ैर, उनकी अनुमति मिलने के बाद मैं अंतराष्ट्रीय सीमा की तरफ़ आगे बढ़ गया।

अख़ौरा बॉर्डर के आस पास
अख़ौरा बॉर्डर के आस पास

सेरेमनी शुरू होने में कुछ वक़्त था, तो वहाँ पर्यटकों की ज़्यादा भीड़ नही थी । बैठने के लिए 2-4 सीटें ही थी, इसलिए मैं एक कोने में खड़ा हो गया । पास बने एक BSF के बूथ पर चाय-समोसे इत्यादि की बिक्री हो रही थी । सीमा के दोनों तरफ़ यात्रियों की आवाजाही लगी हुई थी । एक तरफ़ बांग्लादेश का बैरियर दिख रहा था और दूसरी तरफ़ भारत गणराज्य का प्रवेश द्वार । बीच में खड़े हम लोग सेरेमनी शुरू होने का इंतज़ार कर रहे थे । सीमा के दूसरी तरफ़ भी कुछ लोग खड़े थे, जो हमारी ही तरह सेरेमनी देखने वहाँ पहुँचे हुए थे ।

भारत-बांग्लादेश सीमा
भारत-बांग्लादेश सीमा

धीरे धीरे भीड़ बढ़ती जा रही थी। थोड़ी देर बाद सीमा पर बांग्लादेश वाले बैरियर से थोड़ा पहले प्लास्टिक की कुर्सियाँ लगाईं गई और औरतों/ बच्चों को बुलाकर वहाँ बैठा दिया गया । उनके बाद बाक़ी सभी लोगों को भी बुला लिया गया । भीड़ ज़्यादा नहीं थी, इसलिए कुर्सियों की कोई मारामारी नही थी। फिर भी कई सारे लोग खड़े रहकर ही सेरेमनी देखने का मूड बनाए हुए थे । मैं भी एक कोने में जाकर खड़ा हो गया ।

सेरेमनी शुरू होने से थोड़ी देर पहले सीमा के दोनो तरफ़ यात्रियों की आवाजाही रोक दी गई । यहाँ अख़ौरा बॉर्डर के दोनो तरफ़ के जवानों या नागरिकों में कोई उन्माद नही दिखता, जैसा कि भारत-पाक के बीच बाघा बॉर्डर पर नज़र आता है । ना तो भारत माता की जय बोलने का उन्माद और ना ही जी ले -जी ले पाकिस्तान जैसा कोई शोर । सबसे पहले दोनों तरफ़ के 7-8 जवान पंक्तिबद्ध होकर बॉर्डर की तरफ़ परेड करते हैं । फिर हर तरफ़ से एक -एक जवान एक दूसरे को सलामी देते हैं, एक दूसरे के सामने खड़े होकर अभिवादन करते हैं, फिर अपने-अपने देश का ध्वज उतारकर उसको तह करते हैं । ध्वज को पहले कंधे पर टिका लेते हैं, फिर धीरे-धीरे दोनों हाथों पर तह करके थाम लेते हैं। इस दौरान इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि राष्ट्रध्वज ज़मीन का ना छू जाए । क़रीब आधे घंटे में ही पूरी सेरेमनी बड़ी शांति से और सभ्य तरीक़े से पूरी हो जाती है।

सेरेमनी के लिए तैयार जवान
सेरेमनी के लिए तैयार जवान

पहले तो सेरेमनी के बाद बैरियर लगाकर दोनों देशों के नागरिकों को बैरियर के पास तक जाने दिया जाता था, ताकि लोग एक दूसरे से बातचीत कर सकें। लेकिन अब भारतीय सीमा में कुर्सियों वाले क्षेत्र से आगे नही जाने दिया जाता । सेरेमनी के बाद BSF के जवान एक तरफ़ खड़े हो जाते हैं, जिनके साथ घूमने पहुँचे लोग फ़ोटो खिंचवाते हैं ।

अख़ौरा बॉर्डर पर यात्री टर्मिनल
अख़ौरा बॉर्डर पर यात्री टर्मिनल

अख़ौरा बॉर्डर से मैं वापस अपने दोस्त के घर गया और उसकी स्कूटी वापस कर दी । अगले दिन सुबह-सुबह ही मुझे त्रिपुरा के सबसे प्रमुख आकर्षण उनकोटी पहुँचने के लिए अगरतला से ट्रेन पकड़नी थी , तो उसके लिए रात को स्टेशन के पास में ही रुकना ज़रूरी थी । स्कूटी वापस कर मैं बत्तला की तरफ़ आ गया और उधर ही एक होटल में कमरा मिल गया ।

बैग कमरे में रखकर मैं आसपास घूमने निकल पड़ा । पूरा इलाक़ा मोबाइल की दुकानों से भरा पड़ा था । एक बार दिमाग़ में आया कि मोबाइल भी ख़रीद लूँ, जो कि यात्रा की शुरुआत में ही खो गया था । लेकिन फिर मैंने वो विचार त्याग दिया ।आगे अगरतला सिटी सेंटर नज़र आया । कहने को तो सिटी सेंटर है, लेकिन बहुत बड़ा नही है । 2 फ़्लोर पर कुछ दुकानें हैं और फिर उसके बाद ऊपर वाले फ़्लोर पर एक सिनेमा हाल । सिटी सेंटर घूमकर में बाहर आया, एक जगह डिनर किया और होटल में वापस जाकर सो गया ।

अगले दिन सुबह मुझे वापसी की यात्रा करनी थी, लेकिन उसके पहले उनकोटी के पत्थर बन गए देवताओं से भी रूबरू होना था । त्रिपुरा के सबसे प्रसिद्ध आकर्षण उनकोटी का सफ़र अगली पोस्ट में जारी रहेगा ।

This Post Has One Comment

  1. Pratik Gandhi

    सिलीगुड़ी कॉरिडोर और chickens नैक की बहुत अच्छी जानकारी दी…हालांकि मुझे यह जानकारी थी सब लेकिन इसे सरल शब्दों में पढ़ना अच्छा लगा….सिलीगुड़ी कॉरिडोर में घूमने के लिए बहुत कुछ है….बांग्लादेश से अगरतला होते हुए connectivity पर जोर देकर सिलीगुड़ी कॉरिडोर की निर्भरता को कम किया जा रहा है….बहुत बढ़िया..
    पैलेस के फोटोस बहुत मस्त आये है बढ़िया जानकारी…
    अखोरा बॉर्डर की सेरेमनी बहुत अच्छी लगी…आपने वाकई 5 दिनों में त्रिपुरा की खाक छान ली…आपकी घुमक्कड़ी अपनी सी लगती है मस्त फक्कड़ दुनिया की चिंता से दूर अकेले अपनी सी बानी itinary को follow करते हुए ससब कुछ देख लिया छान लिया exolore कर लिया इसका मजा ही कुछ और है…में भी 8 दिन अकेले bike पे अभी solo कोंकण घूम कर आया हु और ऐसे ही छान लिया बधुत कुछ…. बहुत बढ़िया पोस्ट भाई…

Leave a Reply