गुवाहाटी, सिलीगुड़ी कारीडोर के परे स्थित भारत का सबसे बड़ा शहर और पूर्वोत्तर भारत का प्रवेश द्वार । इस शहर से मेरा सामना अनायास ही हुआ था। 2014 की सर्दियों में आफ़िस के एक टूर के कारण मुझे गुवाहाटी आने का मौक़ा मिला । हवाई अड्डे से निकलने के बाद जब हमारी गाड़ी डीपोर बील (दीपोर बील, Deepor Beel ) के रास्ते पर सुपारी से लदे पेड़ों के बीच से गुजरी तो आसपास की सुंदरता ने मंत्रमुग्ध कर दिया। बाद में ब्रह्मपुत्र के किनारे दो दिन तक डूबते सूरज को निहारता रहा । उसी यात्रा के दौरान गुवाहाटी और दिसपुर को लेकर दिमाग़ का भ्रम दूर हुआ जब पता चला कि असम की राजधानी दिसपुर, दरअसल गुवाहाटी शहर के अंदर ही सत्ता का एक केंद्रबिंदु है। तीन दिन के उस टूर पर गुवाहाटी से कोई ख़ास परिचय तो नही हुआ, लेकिन मन में एक बात बैठ गई कि दिल्ली से ट्रांसफ़र के बाद अगली पोस्टिंग गुवाहाटी में ही लूँगा ।

2017 की गर्मियों में एक बार फिर गुवाहाटी आना हुआ, लेकिन इस बार आफ़िस का कोई टूर नही था। इस बार मैं यहाँ कम से कम तीन साल की पोस्टिंग पर आया था । दिल्ली की तपतपाती लू से निकलकर गुवाहाटी में गुलमोहर की छाँव तले चलती बयार में आकर लगा कि मानो यही वह शहर है, जिसकी मुझे हमेशा से तलाश रही । माँ कामख्या के धाम में बहते ब्रह्मपुत्र का अपार विस्तार, दक्षिण में फैले गरभंगा की पहाड़ियों के घने जंगल और पूरब में स्थित मीठे पानी की विशाल झील डीपोर बील को जब मन चाहे तब महसूस करने का मौक़ा मिले तो फिर किसे अच्छा नही लगेगा ? सोने पे सुहागा यह रहा कि हमारा आशियाना भी शहर की चिल्लपों से दूर हवाई अड्डे के पास ही रहा ।

माँ कामख्या शक्तिपीठ, गुवाहाटी, असम
माँ कामख्या शक्तिपीठ, गुवाहाटी, असम

मुझे गुवाहाटी में रहते हुए तीन साल से ज़्यादा हो चुके हैं । तीन सालों के सफ़र में मैंने इस शहर को बहुत क़रीब से देखा । शुरुआत ब्रह्मपुत्र से हुई । डूबते सूरज के साथ सुनहले पानी से झिलमिलाते ब्रह्मपुत्र से वैसे तो मैं गुवाहाटी शहर में तीन साल पहले भी रुबरू हो चुका था, लेकिन हमारे घर से दस किमी दूर स्थित पलाशबाड़ी में हमने अपनी चौपाटी को तलाश लिया, बस अंतर यह था कि यहाँ की ख़ूबसूरती सूर्योदय से सूर्यास्त तक ही थी , उसके बाद धुप्प बियाबान अँधेरा । ब्रह्मपुत्र के किनारे-किनारे तटबँध के रूप में बनी पक्की सड़क गाहे-बगाहे शाम को घूमने-फिरने के लिए एक अच्छा विकल्प बन गई। आस पास के इलाक़ों से थोड़ा और परिचय हुआ तो रानी पिकनिक स्पॉट अगला पसंदीदा ठिकाना बना । गरभंगा के जंगलों में स्थित एक पहाड़ी नदी जब कल-कल करते हुए नीचे की तरह बहती है, तो पत्थरों के कारण जगह-जगह बन चुके छोटे-छोटे झरनों में नहाने में बड़ा ही मज़ा आता है ।

गुवाहाटी में रहने की वजह से पूर्वोत्तर भारत के अन्य राज्यों में भी घूमने का मौक़ा मिला, जिसकी वजह से अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा और सिक्किम में कई स्थानों को क़रीब से देखने-समझने का मौक़ा मिला । इन सारी यात्राओं के दौरान पूर्वोत्तर भारत को लेकर दिलोदिमाग़ की कई सारी भ्रांतियाँ भी टूट गईं । गुवाहाटी आने से पहले बहुत सारे शुभेच्छकों ने इस क्षेत्र में अकेले घूमने से मना किया था और सुरक्षा के लिए कई सारे ख़तरों से आगाह किया था । इसलिए शुरू-शुरू में तो घूमते समय मन में एक अनजाना सा डर बना रहता था । पहली के बाद दूसरी, दूसरी के बाद तीसरी, फिर एक और कर करके कई सारी यात्राएँ की, बहुत जगहों पर रात को रुका, गाँव-देहात और जंगलों में अकेले घूमा, कई सारे लोगों से रुबरू हुआ और फिर धीरे-धीरे सारा डर छूमंतर हो गया ।

डूमडूमा के चाय बागान
डूमडूमा के चाय बागान, असम

अपनी एक यात्रा के दौरान मैंने जनवरी के महीने में अपने परिवार के साथ कार से असम और अरुणाचल प्रदेश के कई हिस्सों का सफ़र किया । उस यात्रा में गुवाहाटी से शुरू करके हम अपनी कार द्वारा ज़ोरहट (Jorhat), शिवसागर (Shibsagar) , चराईदेव (Charaideo), डिगबोई (Digboi) , मार्गरीटा (Margherita) , लीडो (Ledo) होते विश्वप्रसिद्ध लीडो रोड ( स्टिलवेल रोड, Stilwell Road) पर चलते हुए अरुणाचल प्रदेश में भारत – म्यांमार सीमा के पास स्थित आख़िरी कस्बे नामपोंग (Nampong) तक गए। किसी कारणवश हम वहाँ से आगे 12 किमी दूर सीमा पर स्थित पांगसू पास (Pangsu Pass) तक नही जा पाए ।

भारत-म्यानमार -चीन को जोड़ने वाली लीडो रोड (स्टिलवेल रोड)
भारत-म्यानमार -चीन को जोड़ने वाली लीडो रोड (स्टिलवेल रोड), अरुणाचल प्रदेश

स्टिलवेल रोड के बारे में यहाँ पढ़ सकते हैं  : Legacy of Stilwell Road

फिर वहाँ से जगुन, डिगबोई, डूमडूमा (Doomdooma) होते हुए हम धोला-सदिया पुल (भूपेन हज़ारिका सेतु) पर पहुँचे । लोहित नदी के विहंगम नज़ारों का आनंद उठाकर असम के सदिया कस्बे से होते हुए हमने शांतिपुर के पास एक बार फिर अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश किया और इसके छोटे से खूबसूरत कस्बे रोइंग (Roing) में रात्रि विश्राम किया । रोइंग के आगे रास्ते की खराब दशा के कारण हमने वापसी की राह पकड़ी । लेकिन क़िस्मत में लिखी रोमाँच की पराकाष्ठा तो अभी बाक़ी थी ।

दिबांग नदी को नाव से पार करते हुए
दिबांग नदी को नाव से पार करते हुए, अरुणाचल प्रदेश

रोइंग के बाद दिबांग नदी (Dibang River) पर कोई पुल ना होने के कारण (अब पुल बन चुका है) हमने नावों से दिबांग नदी को पार किया, नदी की तलहटी में गाड़ी दौड़ाई, बाँस के अस्थायी पुलों से गुजरते रहे । ऊबड़-खाबड़ ख़राब रास्तों से होते हुए रोइंग से दाम्बुक (Dambuk) होते हुए पासीघाट का सफ़र तय किया । यात्रा के अगले चरण में हमने पासीघाट से धेमाजी (Dhemaji) होकर एक बार फिर टूटे-फूटे रास्तों से सकुशल माजुली नदी द्वीप तक पहुँचने का जश्न मनाया । माजुली घूमकर हम लखीमपुर, बंदरदेवा, गोहपुर, तेज़पुर होते गुवाहाटी वापस आ गए ।

सामागुड़ी सत्र में मुखौटे
सामागुड़ी सत्र में मुखौटे, माजुली, असम

दिहिंग पटकाई के जगलों से होते हुए तिनसुकिया, डूमडूमा और डिगबोई के गाँवों में घूमने के बाद मन में पूर्वोत्तर भारत को लेकर जो एक डर बैठा था, वो काफ़ी हद तक दूर हो गया । यह असम का वह क्षेत्र है, जहाँ आज भी गाहे-बगाहे बम फूट जाते हैं या तेल के टैंकर फूंक दिए जाते हैं । चाय के व्यापारियों से सेवा शुल्क वसूला जाता है । यहाँ सेना के अलावा जिले के प्रशासनिक अधिकारियों के काफ़िलें में भी हथियारयुक्त बख्तरबंद गाड़ियाँ दिख जाती है । हालाँकि अब हिंसा की घटनाओं में बहुत कमी आ गयी है । दूर-दराज के गाँवों से गुजरने के दौरान भी हमें कहीं भी असुरक्षा का अहसास नहीं हुआ ।

डूमडूमा के चाय बाग़ान और उल्फ़ा की कहानी  :  Tea Gardens of Doomdooma and Dhola-Sadiya Bridge

इस बड़ी यात्रा के बाद हमने असम राज्य में कई छोटी-छोटी यात्रायें की, जिसमें हमें काज़ीरंगा राष्ट्रीय पार्क (UNESCO World Heritage), मानस राष्ट्रीय पार्क (UNESCO World Heritage), नामेरी राष्ट्रीय पार्क, पबितोरा वन्यजीव अभ्यारण्य, भालुकपोंग, भैरबकुंड (असम-अरुणाचल प्रदेश-भूटान सीमाओं का मिलन स्थल), बोगामाटी जैसे कई पर्यटन स्थलों को खँगालने का मौक़ा मिला । गुवाहाटी के पश्चिम में हमने धूपधारा के पास मेघालय सीमा से लगे गाँवों और आसपास के झरनों ( मलंगकोना झरना, रसिनी झरना) का लुफ़्त उठाया । असम-मेघालय की सीमा पर स्थित यह क्षेत्र कई सालों तक गारो और राभा जनजातियों के बीच खूनी संघर्ष का गवाह रहा है ।

गुवाहाटी के पास ब्रह्मपुत्र किनारे तपोवन
गुवाहाटी के पास ब्रह्मपुत्र किनारे तपोवन , असम

आगे फिर हमने गोआलपारा ( Goalpara, सूर्य पहाड़) और बोंगाईगाँव में एइ नदी (Aie River) के किनारे द्विजिंग फ़ेस्टिवल (Dwijing Festival) का आनंद उठाया । इन सबके अलावा हमने गुवाहाटी के अंदर और आसपास स्थित अनेक पिकनिक स्थलों जैसे चांडूबी झील, रानीखमार, सोनापुर, रानी पिकनिक स्पॉट (कपिली), बशिष्ठा मंदिर, हाजो, उकियाम (Ukiam) , भीमाशंकर मंदिर, सुहालकुची, तपोवन, कासाशिला शिव मंदिर, मयांग, डोल गोविन्दा मंदिर, उमानंदा इत्यादि का कई-कई बार भ्रमण किया। एक छोटी सी यात्रा के दौरान मुझे होजाई (Hojai) और हाफ़लाँग (Haflang) की तरफ़ घूमने का मौक़ा मिल गया । त्रिपुरा और मिजोरम की यात्राओं के दौरान मैंने बराक नदी घाटी में स्थित जीरीबाम, सिलचर और करीमगंज को क़रीब से देखा ।

चान्डूबी झील, असम
चान्डूबी झील, असम

होजाई की यात्रा मैंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ कार्यकर्ताओं के साथ की थी, जो वहाँ संघ के प्रशिक्षण शिविर के समापन समारोह में भाग लेने जा रहे थे । होजाई में संघ का बहुत बड़ा प्रशिक्षण केंद्र है , जहाँ देशभक्ति, आत्मरक्षा इत्यादि के गुर सिखाए जाते हैं । उसी यात्रा के दौरान एक सहयात्री ने नेल्ली से गुजरते हुए मेरा परिचय वहाँ घटी एक लोमहर्षक घटना से करवाया । वर्ष 1983 में एक ही दिन 6 घंटे के भीतर नेल्ली और उसके आसपास के गाँवों में जातीय संघर्ष के कारण क़रीब 2191 मुसलमानों को मौत के घाट उतार दिया गया, जिसमें ज़्यादातर संख्या पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश ) से आए शरणार्थियों की थी । इतिहास में इस घटना को नेल्ली नरसंहार (Nellie Massacre) के नाम से जाना जाता है।

अरुणाचल प्रदेश में दिरांग और साँगती वैली की यात्रा के बारे में यहाँ पढ़ें : दिरांग और साँगती वैली

अरुणाचल प्रदेश में मुझे दो बार और यात्रा करने का मौक़ा मिला, जिसमें एक बार मैंने गुवाहाटी से शिलापथार (Shilapathar) तक ट्रेन द्वारा यात्रा की । शिलापथार से शेयर्ड जीप द्वारा लिकाबाली (Lilkabali) होते हुए मैंने अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश किया । आगे बसर, आलो और मेचुका को जाने वाला रास्ता बहुत ही ख़राब स्थिति में था, हालाँकि जगह-जगह सड़क निर्माण का कार्य ज़ोर-शोर से चल रहा था । इस यात्रा के दौरान मैंने बसर गाँव (Basar) का भ्रमण किया और वहाँ बसर फ़ेस्टिवल (Basar Festival, BasCon) के हंगामे में दो रातें गुज़ारी और फिर गुवाहाटी वापस लौट आया ।

गालो जनजाति का एक लोक नृत्य
गालो जनजाति का एक लोक नृत्य, बसर, अरुणाचल प्रदेश

दूसरी यात्रा में मैंने मोटरसाइकिल द्वारा गुवाहाटी, तेज़पुर होते हुए भालुकपोंग के रास्ते अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश किया । टिप्पी से आगे रास्ते की हालत बड़ी ख़राब थी, लेकिन किसी तरह गिरते-पड़ते मैं पहले बोमडीला और फिर दिरांग (Dirang) पहुँच गया । दिरांग में मैंने कस्बे में स्थित बौद्ध मठों और आसपास के प्राकृतिक नज़ारों का आनंद उठाया । दिरांग से ही मैंने पास में स्थित एक ख़ूबसूरत स्थान साँगती घाटी (Sangti Valley) की यात्रा की ।

सांगती वैली
सांगती वैली, दिरांग , अरुणाचल प्रदेश

दिरांग से आगे तवाँग (Tawang) जाने का इरादा तो था, लेकिन समयाभाव के कारण मुझे हेरिटेज गाँव थेमबाँग (Thembang) होते हुए बोमडीला (Bomdila) वापस लौटना पड़ा । बोमडीला में रुककर मैंने आसपास के पर्यटन स्थलों का भ्रमण किया । बोमडीला से वापसी के दौरान मैंने रूपा (Rupa) कस्बे के ऊपर पहाड़ी पर स्थित चिल्लिपाम (Chillipam) में जाँगदोकपालरी बौद्ध मठ (Zangdokpalri Monastery) का भ्रमण किया । रूपा से ओरांग (Orang) के नए-नए बने रास्ते से वापसी के दौरान मुझे रास्ते में पड़ने वाले गाँवों में छोटे-बड़े कई बौद्ध मठ मिले । उन सबके दर्शन करते हुए मैं शेरगाँव, ओरांग के रास्ते गुवाहाटी वापस लौट आया । अरुणाचल प्रदेश में अभी भी तवाँग, मेचुका, अनिनी, किबिथू और डाँग जैसे स्थान अछूते रह गए हैं । आशा है कि अगले साल इन सब स्थानों का भ्रमण हो जाएगा ।

बोमडीला मोनास्टरी
बोमडीला बौद्ध मठ, अरुणाचल प्रदेश

नागालैंड की अब तक सिर्फ़ एक यात्रा की मैंने, जिसमें गुवाहाटी से दीमापुर का सफ़र ट्रेन से तय किया । दीमापुर से शेयर्ड कैब द्वारा कोहिमा पहुँचा और वहाँ द्वितीय विश्व युद्ध की एक क़ब्रगाह और चर्च का भ्रमण किया । वहाँ से आगे जूको वैली की ट्रेकिंग का आनंद उठाया । सुबह-सुबह उठकर जब जूको वैली के चारों तरफ़ का नजारा देखा, तो महसूस हुआ कि अगर स्वर्ग है तो बस वही हैं । जूको वैली में एक रात बिताकर मैं वापस कोहिमा और फिर गुवाहाटी आ गया ।

जूको वैली के ट्रेक की जानकारी : जूको वैली की ट्रेकिंग

नागालैंड का अधिकांश हिस्सा ना घूम पाने की वजह यह है कि वहाँ जंगलों में अकेले घूमने में मुझे डर लगता है। लेकिन पूर्वोत्तर भारत में तीन साल बिता देने के बाद काफ़ी हिम्मत आ गई है, इसलिए उम्मीद है कि नागालैंड का भ्रमण जल्दी ही होगा ।

सफ़ेद बादलों से घिरी जूको घाटी
सफ़ेद बादलों से घिरी जूको घाटी, नागालैंड

मणिपुर में प्रवेश करने का अवसर एक बार प्राप्त हुआ । कोलकाता से फ़्लाइट द्वारा मैं मणिपुर की राजधानी इम्फ़ाल पहुँचा । वहाँ पूरा दिन कांगला फ़ोर्ट, इम्मा मार्केट के इर्द-गिर्द घूमता रहा । इम्मा मार्केट पूरी तरह से महिलाओं द्वारा संचालित बाज़ार है। इम्फ़ाल में कचरे और अतिक्रमण के बोझ तले दम तोड़ती इम्फ़ाल नदी भी देखा । इंफाल के बारे में अपने वरिष्ठ अधिकारियों से सुन रखा था की नब्बे के दशक में इम्फ़ाल के हवाई अड्डे से बाज़ार तक पहुँचना ही बड़ा ख़तरनाक काम था । सरकारी कर्मचारियों या उनके वाहनों के ऊपर बम फूटना आम बात थी । लेकिन अब स्थिति पूरी तरह बदल गई है । अब तो हवाई अड्डे से निकलकर एकदम चिकनी सड़क से आप कब बाज़ार पहुँच जाते हैं, पता ही नही चलता है। इम्फ़ाल शहर का विस्तार भी धीरे-धीरे बढ़ते हुए हवाई अड्डे के इर्द-गिर्द तक पहुँच चुका है ।

इम्फाल में इमा मार्केट के पास सुबह-सुबह लगी भीड़
इम्फाल में इमा मार्केट के पास सुबह-सुबह लगी भीड़, मणिपुर

इम्फ़ाल से निकलकर सिलचर की सड़क यात्रा के दौरान नोनी, नुंगबा, जीरीबाम जैसे क़स्बों की झलक देखी । उस यात्रा में मेरा उद्देश्य मिज़ोरम घूमना था, इसलिए सिलचर के रास्ते कोलासिब होते हुए मैं मिज़ोरम की राजधानी आइजॉल चला गया। इस तरह मणिपुर एक तरह से अछूता ही रह गया । लेकिन जल्दी ही पाँच दिनों की यात्रा में लोकताक झील और उखरुल घूमने की योजना है । म्यांमार सीमा पर स्थित मोरेह-तामू बार्डर कभी भारत – म्यांमार- थाईलैंड की सड़क यात्रा के दौरान घूमूँगा ।

मिज़ोरम की राजधानी आइजॉल (Aizawl) में दो रात रुकने के दौरान मैंने आइजॉल में स्थित 4-5 चर्चों का भ्रमण किया । एक दिन पास में स्थित रेइक (Reiek) गाँव की भी सैर की। आइजॉल से निकलकर मैं मिज़ोरम के सुदूर दक्षिण में स्थित एक कस्बे साइहा (Saiha) चला गया । इन रास्तों के किनारे दूर-दूर तक पहाड़ियाँ सिर्फ़ बाँस के जंगलों से ढकी रहती हैं । बाँस का ऐसा विस्तार मिज़ोरम के अलावा और कहीं नही दिखता । इन्हीं बाँस के पेड़ों में कई सालों बाद जब फूल आते हैं तो उन्हें खाकर चूहों की प्रजनन क्षमता अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाती हैं । लाखों की संख्या में पैदा हुए वो चूहे घरों और खेतों में सारा अनाज, फल और सब्ज़ियाँ चट कर जाते हैं और स्थानीय निवासियों की शामत आ जाती है । कई बार तो इसी कारण मिज़ोरम में अकाल की नौबत आ जाती है ।

आइजॉल शहर की एक झलक
आइजॉल शहर की एक झलक, मिजोरम

साइहा में एक रात रुकने के बाद मैं और दक्षिण में भारत – म्यांमार सीमा के पास स्थित एक और गाँव फ़ुरा (Phura) पहुँच गया । इस यात्रा के दौरान हम म्यांमार सीमा के बहुत पास थे । इस क्षेत्र में बिकने वाली खाने-पीने की वस्तुएँ, रंग-बिरंगे कपड़े, सड़कों पर दौड़ती स्कूटी इत्यादि म्यांमार से ही आती हैं। यह देश के सबसे दूरदराज़ वाले इलाक़े हैं। दूरदराज़ का क्षेत्र होने के बावजूद स्थानीय लोगों का फ़ैशन किसी अच्छे कस्बे से कम नही है । फ़ुरा से क़रीब 6 किमी दूर स्थित एक खूबसूरत झील पलक ( Palak Dil, Dil का मतलब झील है) तक पैदल चलकर पहुँचा । फ़ुरा से मैं वापस साइहा पहुँचा और फिर वहाँ से लावँगतलाई (Lawngtlai) होते हुए लुंगलेइ (Lunglei) । लुंगलेइ घूमकर मैंने वापसी की राह पकड़ी और सिलचर होते हुए गुवाहाटी वापस आ गया ।

फ़ुरा गाँव, मिज़ोरम
फ़ुरा गाँव, मिज़ोरम

फ़ुरा जैसे दूरस्थ गाँवों में पर्यटक यदा-कदा ही पहुँचते हैं । बाहर से जाने वाले ज़्यादातर लोग या तो सरकारी कर्मचारी होते हैं या मोबाइल टावर ठीक करने वाले इंजीनीयर। इनके अलावा बहुत कम लोग ही फ़ुरा जाते हैं । इसलिए गाँव पहुँचने पर लोगों का पहला सवाल यही था कि मोबाइल टावर ठीक करने आए हैं क्या? जब लोगों को पता चला कि मैं अकेला मुसाफ़िर उनके गाँव के पास पलक झील देखने आया हूँ, तो लगभग पूरा गाँव ही मदद के लिए दौड़ा आया । गाँव में खाने की व्यवस्था नही थी, तो एक परिवार ने रात को खाने पर बुला लिया । शाम को गाँव में पुलिस ड्यूटी पर तैनात दो पुलिस वाले आए और अगले दिन सुबह झील तक घुमाने के लिए किसी को मोटरसाइकिल से भेजने का आश्वासन दे गए । हालाँकि पुलिस वालों का आने का एक मक़सद राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से गाँव में आने वाले अजनबियों की जानकारी प्राप्त करना भी था, क्योंकि यह गाँव म्यांमार सीमा के क़रीब था।

पूर्वोत्तर भारत में भ्रमण के दौरान मैंने जैसी आत्मीयता मिज़ोरम के निवासियों में देखी वैसी किसी अन्य राज्य में नही नज़र आई । हर कदम पर लोग मदद करने को तैयार रहते थे, बातचीत में पूरी शालीनता और व्यवहार से ऐसा लगा जैसे अपने घर में ही घूम रहा हूँ । वैसे अभी मिजोरम की एक और यात्रा बची है, जिसमें चंपई होते हुए म्यांमार सीमा के भीतर स्थित रिह दिल जाना है ।

त्रिपुरा पूर्वोत्तर भारत का छोटा सा राज्य है और एक हफ़्ते की यात्रा में मैंने इसके सभी हिस्सों में स्थित प्रमुख स्थानों का भ्रमण किया । शुरुआत राजधानी अगरतला से हुई । वहाँ से अपने एक मित्र की स्कूटी लेकर मैंने मेलाघर (Melaghar) में नीरमहल और उदयपुर (Udaipur) में माताबारी (त्रिपुरा सुंदरी मंदिर) का भ्रमण किया । उदयपुर से सुदूर पूर्व में स्थित दम्बूर झील (Dumboor Lake) तक गया और फिर वापसी में छबिमुड़ा (Chabimura) की सैर की ।

उज्जयन्ता पैलेस, अगरतला
उज्जयन्ता पैलेस, अगरतला, त्रिपुरा

फिर एक दिन दक्षिण में सबरूम (Sabroom) की तरफ़ स्थित पिलक (Pilak) कस्बे के पास बौद्ध खंडहरों तक गया । अगरतला वापसी के दौरान क़स्बा-कालीबारी मंदिर के दर्शन किए । अगरतला में राजमहल की सैर की और अखौरा अंतराष्ट्रीय सीमा पर भारत – बांग्लादेश के जवानों द्वारा हर शाम आयोजित की जाने वाली बीटिंग रीट्रीट सेरेमनी देखी । अगरतला से मैं उनकोटी (Unakoti) गया और वहाँ पत्थरों पर तराशी गयी देवी-देवताओं की मूर्तियों की अद्भुत कलाकारी देखी । उनकोटी से मैं करीमगंज, बदरपुर होते हुए गुवाहाटी वापस आ गया ।

उनकोटी में भगवान शिव
उनकोटी में भगवान शिव, त्रिपुरा

त्रिपुरा के प्रमुख ऐतिहासिक स्थल उनकोटी के बारे में यहाँ पढ़ सकते हैं  :  उनकोटी के पथरीले देवता

असम के अलावा पूर्वोत्तर में मेघालय एक ऐसा राज्य है, जिसकी मैंने बीसियों यात्राएँ की होंगी, कभी अपनी कार से तो कभी मोटरसाइकिल से। मेघालय की गारो, ख़ासी और जयंतिया की पहाड़ियों में कुदरत के एक से एक नगीने भरे पड़े हैं। कहीं दूर-दूर तक फैली हसीन वादियाँ हैं, तो कहीं दूर से ही दिखते विहंगम झरने, कहीं शीशे जैसी साफ़ नदियाँ हैं तो कहीं पहाड़ों और जंगलों के बीच छोटे-छोटे स्वीमिंग पूल, जिनमे नहाने का अलग मज़ा है ।

Shillong City
शिलाँग शहर, मेघालय

गारो पहाड़ियों में घूमने के दौरान मैंने तुरा (Tura), चोकपोट (Chokpot), बाघमारा (Baghmara) और विलियमनगर (Williamnagar) को क़रीब से देखा। इस क्षेत्र का मुख्य आकर्षण बाघमारा के पास स्थित बालपक्रम नेशनल पार्क (Balpakram National Park) , सीजू (Siju) में स्थित सीजू गुफ़ा और तुरा के पास स्थित नोक्रेक नेशनल पार्क (Nokrek National Park) है । मैं बालपक्रम तो नही जा पाया, लेकिन बाक़ी दोनों जगहों पर घूमने में बहुत मज़ा आया ।

सीजू गुफ़ा
सीजू गुफ़ा, मेघालय

जयंतिया की पहाड़ियों में मैंने सबसे पहले नार्तियांग (Nartiang) में स्थित जयंती माता मंदिर के दर्शन किए और वहीं गाँव में स्थित उस पार्क का भ्रमण किया, जहाँ बहुत बड़े -बड़े मोनोलिथ हैं । उसके बाद जयन्तिया पहाड़ियों के प्रमुख पर्यटन स्थलों जैसे जोवई और आस पास के क्षेत्र, क्रांग सूरी झरना (Krang Suri Falls) , वहराशी झरना (Wahrashi Falls) , डावकी ( उनगोट नदी में नाव की सवारी और तम्बिल Tamabil में भारत-बांग्लादेश सीमा), श्नोनग़पडेंग ( Shnongpdeng, शीशे जैसी साफ़ नदी) इत्यादि को देखने का मौक़ा मिला ।

umiam lake shillong
उमियम झील, शिलाँग, मेघालय

ख़ासी पहाड़ियों को मेघालय का दिल समझा जा सकता है । मेघालय जाने वाले हर पर्यटक की नजर आमतौर पर इसी क्षेत्र के पर्यटन स्थलों पर होती हैं । जिसमे शिलाँग , सोहरा (चेरापूँजी), नोंग्रियात (Nongriat, रूट ब्रिज), मावसिनराम, मावलिननांग (Mawlynnong, एशिया के सबसे साफ़-सुथरे गाँव के रूप में प्रसिद्ध) जैसे प्रमुख पर्यटन स्थल है । अन्य छोटे आकर्षक स्थलों में लाइलुम कैनयान (Laitlum Canyon) , स्मित गाँव (Smit Village) , मावफनलुर (Mawphanlur, छोटा सा ख़ूबसूरत गाँव) , मावफ्लाँग सैक्रेड ग्रूव (Mawphlang Sacred Grooves, पवित्र जंगल) इत्यादि का नाम शामिल है । अपनी यात्राओं के दौरान मुझे इन सभी को क़रीब से देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ।

नोहकालिकाई झरना, सोहरा
नोहकालिकाई झरना, सोहरा, मेघालय

इन सातों राज्यों के अलावा मैंने सिक्किम की दो यात्रायें की, जिसमें गंगटोक (Gangtok), रवांगला (Ravangla), पेलिंग (Pelling), युकसम (Yuksom) इत्यादि घूमने का मौक़ा मिला। एक अन्य यात्रा के दौरान युकसम से गोएचा ला (Goecha La) का ट्रेक भी किया ।

सूर्योदय के समय कंचनजंघा की चोटी
सूर्योदय के समय कंचनजंघा की चोटी, सिक्किम

सिक्किम की यात्रा के बारे में पूरी जानकारी  : How to Travel in Sikkim Using Public Transport?

इस तरह मुझे पूर्वोत्तर भारत के हर राज्य में कदम रखने का सौभाग्य मिला । हालाँकि बहुत सारे हिस्से अभी भी अछूते ही हैं, जहाँ पहुँचने के सतत प्रयास जारी हैं । गुवाहाटी आने से पहले पूर्वोत्तर भारत को लेकर मन में कई तरह के सवाल थे, कई सारी भ्रांतियाँ भी थी । लेकिन तीन सालों के इस सफ़र में बहुत सारे जवाब मिले, कई सारे भ्रम भी टूटे। एक वह दिन था , जब बोडो बहुल क्षेत्र में स्थित बोग़ामाटी के जंगलों में टेंट लगाने के बाद इतना डर लग रहा था कि नींद नही आई और दो-तीन घंटे बाद ही टेंट समेट कर हम वहाँ से गुवाहाटी भाग आए । फिर वह दिन भी आया जब मैं असम के तिनसुकिया, मेघालय के चोकपोट और त्रिपुरा के जतनबारी जैसे इलाक़ों में बिंदास घूमने लगा । डर पूरी तरह तो नहीं, लेकिन काफ़ी हद तक ख़त्म हो गया ।

मेघालय के एक प्रमुख पर्यटन स्थल चेरापूँजी के बारे में यहाँ पढ़ सकते हैं : बादल, बारिश और झरनों का शहर चेरापूँजी

पर्यटन की दृष्टि से पूर्वोत्तर के ये सारे राज्य अनछुए से हैं । आज भी इस तरफ़ आने वाले ज़्यादातर पर्यटकों की मंजिल मेघालय में शिलांग और चेरापूँजी होती है । शायद यही वजह है कि पूर्वोत्तर भारत की अथाह ख़ूबसूरती आज भी अपने आप में अद्वितीय सी नज़र आती है । अरुणाचल प्रदेश में रूपा से ओरांग के रास्ते में हर कदम पर लगता है बस रुककर फ़ोटो खींचते रहें । जूको वैली में सुबह का नजारा देखकर यही लगता है कि इससे सुन्दर जगह ही नही होगी कहीं । मेघालय के झरनों को बारिश में देख लें तो लगेगा ज़िंदगी का सबसे खूबसूरत नजारा देख लिया । ब्रह्मपुत्र का अपार विस्तार सूर्योदय के समय दिलोदिमाग़ को उल्लास से भर देता है । गुवाहाटी मैं तीन साल के लिए आया था, लेकिन फिर पाँच साल तक रुकने मन बना लिया । धीरे-धीरे एक-एक करके मैं पूर्वोत्तर भारत में घूमता हूँ और मानचित्र पर एक-एक स्थान भरता जाता हूँ । लेकिन नहीं भरता है तो बस मन । ब्रह्मपुत्र को एक नहीं सैकड़ों बार देख लिया , झरनों में बीसियों बार नहा लिया, जंगलों में अनगिनत बार घूम लिया ; लेकिन आज भी सब कुछ नया सा ही लगता है । पूर्वोत्तर भारत में प्रकृति का जादू सर चढ़कर बोलता है क्योंकि पूर्वोत्तर भारत का हर राज्य अपने में अनोखा है ।

This Post Has 4 Comments

  1. Pratik

    क्या लिख दिया भाई….आपने तो दिल खोल कर रख दिया……काश आपकी किस्मत का 10 प्रतिशत मुझे मिल जाए तो में अगले साल आपके अरुणाचल वाले प्लान का हिस्सा बन जाऊं….जो आपने पूर्वोत्तर के बारे में लिखा है सब आपकी यात्रा के बारे में….पढ़कर दिल पूर्वोत्तर में ही चला गया….

  2. Abhinav Singh

    Very well written. पढ़ के आनंद आ गया. North East India की यादें ताजा हो गई. Craving to travel here again after reading your blog. Good job.

  3. Dr Deepak Pandey

    आपके द्वारा दी ग्इ जानकारी मुझे पुर्वोत्तर की यात्राओ मे सहायक होगी. धन्यवाद

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