रूम्बक नदी में पानी की तलाश
मैं…घुमन्तू

मैं एक घुमक्कड़, एक मुसाफिर, एक कहानीकार …सड़क नापने का चस्का कुछ ऐसा लगा कि जिंदगी जीने का और कोई तरीका समझ ही नही आया । परिणाम यह हुआ कि घुमक्कड़ के अलावा और कोई पहचान बनी ही नही। रहने वाला तो पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले का हूँ, लेकिन 30 किमी दूर स्थित बनारस की गलियों में मन ऐसा रमा कि खुद को बनारसी ही मानता हूँ।

कभी दिलदार शहर दिल्ली में जान बसती थी और उसे अपनी कर्मभूमि बनाकर 16 साल तक भटकता रहा। यह दिल्ली ही थी, जिसने डिग्री, नौकरी, पैसा और थोड़ी सी शोहरत देकर पैरों में एक चक्करघिरनी लगा दी। जब कंक्रीट का जंगल बनते शहर से मोह छूटा, तो पूर्वोत्तर भारत के प्रवेश द्वार समझे जाने वाले गुवाहाटी में आकर अटक गया। लेकिन दिल को सुकून मिला तो बस बने बनाये रस बनारस में ।

घुमक्कड़ी कभी जिन्दगी का उद्देश्य नहीं रही, लेकिन एक दिन बाबा राहुल सांस्कृत्यायन की इन पंक्तियों ने पैरों की दशा और दिशा दोनों बदल दी,

“कमर बांध लो भावी घुमक्कड़ों ! संसार तुम्हारे स्वागत के लिए बेकरार है.”

एक बार पैरों में पंख क्या लगे, इन्होंने उड़ना शुरू कर दिया। अब यह उड़ान कब और कहाँ थमेगी, यह तो बस महादेव ही जानते होंगे।

घुमक्कड़ी में पैर भटक तो रहे हैं, फिर भी घूमने को लेकर कोई बहुत बड़ी ख्वाहिशें नहीं है। बस जहाँ दिल करता है, वहीं निकल लेता हूँ, जो मन में होता है, वो कर लेता हूँ। दिल किया तो हिमालय की ऊंचाइयों पर निकल गया; राजस्थान, पंजाब से लेकर असम, मेघालय तक की सड़कों पर मोटरसाइकिल दौड़ा ली; पिरामिडों के देश मिस्र में गोताखोरी का चस्का लगा तो भारत, इंडोनेशिया और थाईलैंड के समुद्रों में गोताखोरी भी कर ली। बचपन से इच्छा थी बोरोबुदुर और अंगकोरवाट के मन्दिरों से रूबरू होने की, तो एक दिन वहाँ भी पहुँच गया। रूस में ट्रांस-साइबेरियन यात्रा की बड़ी चाह थी और वह सफ़र भी पूरा हो गया।

दिल ने आवाज लगाई और सफ़र चलता रहा। इस सफ़र में रोमांच भी है और मजा भी। अकेले निकलना पसंद है और मौका मिलते ही चल देता हूँ । दिल्ली की रेलगाड़ियों से शुरू हुआ सफर आगे बढ़ता ही जा रहा है… पैरों में लगी चकरी को अभी चीन की महान दीवार लाँघनी है , भगवान बुद्ध से जुड़े पर्यटन स्थलों की यादों को कैमरे में कैद करना है, अच्छे गोताखोरी स्थलों पर गोताखोरी करनी है, पाकिस्तान से चीन जाने वाले कराकोरम हाईवे पर सफ़र करना है, अफ्रीका के जंगलों में भटकना है…अरमानों की सूची बढ़ गई है। बस इतना पता है कि धीरे-धीरे बहुत सारे अरमान पूरे हो जायेंगे, क्योंकि इस दिल के लिये तो घुमक्कड़ी ही जिन्दगी है और जब तक जिन्दगी है, यह सफ़र जारी है।