इम्फ़ाल में इमा मार्केट के आसपास का क्षेत्र। सुबह के 5 बजे थे, लेकिन बाजार की चहल-पहल देखकर लगा जैसे लोग सोये ही नही थे और बाजार रात भर चलता रहा था । माना कि इस भाग में सूर्योदय थोड़ा जल्दी हो जाता है, लेकिन फिर भी इतनी सुबह ऐसा गुलजार शहर कम ही देखने को मिलता है। इमा मार्केट का मुख्य बाज़ार तो बंद था , लेकिन सड़क के किनारे सब्जी, फल, दूध इत्यादि की सैकड़ों दुकानें लगी हुई थी। मुझे तो डर था कि सुबह 5 बजे सड़क पर शेयर्ड ऑटो मिलेगा भी या नही, लेकिन यहाँ तो उजाला होते ही पूरा शहर चलने-फिरने लगा था । सुबह-सुबह भागते दौड़ते लोगों के साथ ही साथ कांगला फोर्ट के बाहरी मोट (सुरक्षा चक्र के रूप में बाहरी नहर) के किनारे कई सारे लोग जॉगिंग करने में भी व्यस्त थे।

इम्फाल में इमा  मार्केट के पास सुबह-सुबह लगी भीड़
इम्फाल में इमा मार्केट के पास सुबह-सुबह लगी भीड़

इतनी सुबह इम्फ़ाल से निकलने का मेरा मुख्य उद्देश्य मिज़ोरम की राजधानी आइजॉल के लिये एक शेयर्ड जीप पकड़ना था । मैने एक दिन पहले ही इम्फ़ाल से आइजॉल के लिए शेयर्ड जीप में एक सीट रिज़र्व कर ली थी । हालाँकि जब मैं एक दिन पहले इम्फ़ाल में स्थित जीरी पार्किंग के आसपास आइजॉल के साधन पता कर रहा था, तभी समझ आ गया था कि मिज़ोरम घूमने के लिए इम्फ़ाल तक की फ्लाइट बुक करके गलती कर दी । मिज़ोरम के लिए सबसे सुविधाजनक और पास में स्थित प्रवेश द्वार सिलचर को माना जा सकता है । गुवाहाटी से रात भर की ट्रेन यात्रा से सिलचर पहुँच सकते हैं और फ्लाइट बुकिंग की कोई झंझट नही होती है । फिर दूसरी गलती मैंने इम्फ़ाल से आइजॉल के लिए डायरेक्ट टिकट खरीदकर की । इम्फ़ाल से आइजॉल तक की यात्रा में कम से कम 23 घंटे लगते हैं। मिज़ोरम के उत्तर-पूर्व में सड़कों की हालत ख़राब होने के कारण पहले करीब 255 किमी (9 घन्टे ) की यात्रा करके सिलचर जाना होता है, फिर वहाँ से एक दूसरी शेयर्ड जीप में 172 किमी ( 6 घंटे ) की यात्रा करके रात्रि में 3 बजे के करीब आइजॉल पहुँचते हैं । जीरी पार्किंग के पास एजेंटों और गाड़ियों की भीड़ देखकर लगा कि इस यात्रा के लिए एडवांस में टिकट बुक करने की कोई जरूरत ही नही थी । बहुतेरे एजेंट हैं, बहुतेरी गाड़ियाँ हैं। हालाँकि सुबह 8 बजे के बाद इम्फ़ाल से सिलचर की गाड़ी मिलना मुश्किल है । इम्फ़ाल से आइजॉल की डायरेक्ट टिकट लेने की जगह बेहतर होगा यदि पहले केवल सिलचर तक की ही टिकट ली जाए। इससे एक तो सिलचर से आइजॉल के लिए दूसरी कैब कौन बैठाएगा, कैसे बैठाएगा..इन चिंताओं से मुक्ति मिल जाएगी । दूसरे सिलचर से रात में आइजॉल निकलने की झंझट नही रहेगी। ज्यादा थकान होने पर रात को सिलचर में रुकने का विकल्प भी खुला रहता है ।

इम्फाल में जीरी पार्किंग में खड़ी शेयर्ड गाड़ियाँ
इम्फाल में जीरी पार्किंग में खड़ी शेयर्ड गाड़ियाँ

खैर मेरा टिकट तो आइजॉल तक का था, तो मेरे पास ज्यादा विकल्प नहीं बचे थे। आइजॉल की जीप के जाने का समय सुबह 6.30 बजे बताया गया था, हालांकि मैं वहां 5.30 बजे ही पहुँच गया। जीप को इम्फ़ाल से निकलते-निकलते 7.30 बज गये। क्रूजर जीप में बैठने की व्यवस्था ऐसी थी कि एक सीट पर चार लोग बैठे हुए थे । ड्राइवर वाली सीट अच्छी थी जहाँ केवल एक यात्री बैठा था। हालाँकि बिल्कुल पीछे वाली सीट खाली होने के कारण मैं बाद में वहीं चला गया । इससे ब्रेकरों पर थोड़ी उठापटक तो होने लगी, लेकिन बाकी समय में शरीर को थोड़ा सीधा करने की सुविधा मिल गई।

हम इम्फ़ाल से नोनी, जिरीबाम होते हुए सिलचर की तरफ जाने वाले राजमार्ग पर बढ़ गए । इम्फ़ाल के बाहरी हिस्से के मैदानी इलाकों में तो सड़क बड़ी अच्छी स्थिति में है, लेकिन एक बार पहाड़ियाँ शुरू होते ही सड़क की हालत डाँवाडोल हो जाती है । फिर भी थोड़ी-थोड़ी दूर में 500-700 मीटर तक टूटने-फूटने के अलावा नोनी तक सड़क की स्थिति बहुत अच्छी है । लेकिन सड़क के दूसरी तरफ खड़े पहाड़ों को देखकर यही लगता है कि वो कभी भी दरक सकते हैं । यही कारण है कि बारिश के मौसम में सड़क के बंद होने की संभावना बढ़ जाती है ।

इम्फ़ाल से सिलचर की सड़क
इम्फ़ाल से सिलचर की सड़क

सड़क पर गाड़ियों की आवाजाही बहुत कम थी। ज्यादातर या तो ट्रक चलते हैं या फिर इम्फ़ाल-सिलचर के बीच दौड़ने वाली शेयर्ड जीपें । जीपें भी जैसे सिलचर पहुँचने की जल्दी में भागी जा रही थी । कहीं-कहीं तो मोड़ पर ड्राइवर ने गाड़ी ऐसे घुमाई कि लगा कि बस खाई में उतर गये समझो । शायद इनकी रफ़्तार की इसी आदत के चलते हर छोटी-बड़ी बस्ती के शुरू में सड़क पर सामान्य से ऊँचे स्पीड ब्रेकर बने हैं । ब्रेकर के अलावा इन गाड़ियों की रफ्तार थमती है, जगह-जगह होने वाली सेना की चेकिंग से। तब गाड़ी में सवार हर यात्री को उतरकर थोड़ी दूर तक पैदल चलते हुए चेकपोस्ट को पर करना होता है। इम्फ़ाल से चलकर कमई पार करते-करते करीब 5 जगह ऐसी चेकिंग होती है।

मणिपुर में आर्मी की एक चेकपोस्ट
मणिपुर में आर्मी की एक चेकपोस्ट

नोनी के आसपास सड़क की हालत थोड़ी खराब है। लेकिन करीब आधा घंटे और चलने के बाद सड़क बहुत ही उम्दा स्थिति में है और अगल-बगल के पहाड़ और घाटियां बहुत सुंदर दिखते हैं । पहाड़ो पर दूर-दूर तक फैले बाँस के जंगल और केले के पेड़ मन को मोहने लगते हैं । फिर एहसास होता है कि मैं यहाँ अपनी कार या मोटरसाइकिल से क्यों नहीं हूं? सड़क सुनसान जरूर है , लेकिन ऐसी बिल्कुल नही है जिसपर दिन के समय किसी भी तरह का डर लगे । लगभग हर 8-10 किमी पर बस्तियाँ हैं। थोड़ी-थोड़ी देर में ट्रकों की आवाजाही है। 20-25 किमी के अंतराल पर सेना के कैम्प हैं । थोड़ा जंगल से दिखते क्षेत्र में भी सड़क किनारे सेना के जवान गश्त लगाते दिख जाते हैं। हालाँकि बाइक या गाड़ी में कोई खराबी आ जाने की हालत में मैकेनिक का मिलना बहुत मुश्किल हो सकता है।

इम्फ़ाल से जीरीबाम की सड़क
इम्फ़ाल से जीरीबाम की सड़क

हम नुंगबा बाजार में लंच के लिए रुके। बाजार के चौराहे पर शेयर्ड गाड़ियों की भीड़भाड़ देखकर समझ आया कि इस रूट पर चलने वाली लगभग सभी गाड़ियों का लंच ब्रेक यहीं होता है । बाजार में बड़ी चहल पहल थी और कोई असुरक्षित क्षेत्र जैसा संकेत भी नही मिल रहा था, लेकिन फिर भी वहाँ सेना के जवानों की अच्छी-खासी तादाद गश्त कर रही थी । बाजार में लाइन से 3-4 होटल हैं । अंदर घुसते ही दोनों तरफ मेजों पर घुली थालियों के सेट सजे मिलते हैं। आप एक जगह बैठो, अपनी थाली सीधी करो और खाना मिलने लगेगा । वेज खाना है या नॉन-वेज, यह कोई नही पूछता। बस सीधे थाली में खाना परोसने लगता है, इसलिए अगर वेज हैं, तो थोड़ा सावधान रहें ।

नुगबा बाज़ार
नुगबा बाज़ार
नुगबा बाज़ार के होटल में खाते हुए यात्री
नुगबा बाज़ार के होटल में खाते हुए यात्री

लंच करने के बाद हम एक बार फिर आगे के सफर पर निकले। तोलन से पहले बराक नदी पर लकड़ी का एक पुल है । पुल से एक बार में एक ही गाड़ी निकल सकती है । ट्रकों और बसों के लिए बगल में थोड़ा और मजबूत लकड़ी का पुल है। पुल के दोनों तरफ सेना के जवान खड़े रहते हैं और ड्राइवर को याद दिलाते हैं कि पुल पर गाड़ी की रफ़्तार बहुत धीमी रखनी है । धीरे-धीरे चलते हुए हमने बराक को किया । कुछ और आगे चलने पर वैसा ही एक और पुल है ।

बराक नदी पर लोहे का पुल
बराक नदी पर लोहे का पुल

इम्फ़ाल से सिलचर की सड़क ऊँची-ऊँची पहाड़ियों से गुजरती है, कई जगह टूटी-फूटी भी है । लेकिन देखा जाए तो पूर्वोत्तर के पहाड़ी हिस्सों की कुख्यात सड़कों की तुलना में इस सड़क की हालत फिर भी ठीक है । लेकिन भारी बारिश के दौरान दरकते पहाड़ कब सड़क पर आ गिरे या बराक नदी के पुल कितना साथ देंगे, यह कहना थोड़ा मुश्किल है । इसलिए बारिश के दौरान इस सड़क पर यात्रा करना थोड़ा कठिन है ।

गाड़ी रुकने पर खाने के कुछ सामान बेचती स्थानीय युवतियाँ
गाड़ी रुकने पर खाने के कुछ सामान बेचती स्थानीय युवतियाँ

जिरीबाम पहुँचते-पहुँचते शाम के 4 बज गए । जिरीबाम एक बड़ा क़स्बा है और हर तरफ चहल-पहल मौजूद रहती है । यह मणिपुर का इकलौता क़स्बा है, जहाँ तक रेलगाड़ी पहुँचती है । जिरीबाम से सिलचर के बीच एक पैसेंजर ट्रेन चलती है । जिरीबाम, इम्फ़ाल-सिलचर वाली सड़क पर मणिपुर का आखिरी क़स्बा भी है । जिरीबाम के बाद पहाड़ियों का सिलसिला खत्म हो जाता है और फिर सिलचर तक मैदान ही मैदान हैं।

जीरी नदी
जीरी नदी

जिरीबाम से आगे बढ़ने पर जिरी नदी का पुल है । जिरी नदी असम और मणिपुर के बीच एक सीमारेखा की तरह है । पुल पार करते ही हम असम के जिरीघाट कस्बे में पहुँच जाते हैं । पुल पर सब्जियों और मछलियों की अच्छी-खासी बाजार लगी हुई थी । जिरीघाट में लोगों का आवागमन अच्छी खासी तादाद में था ।

जीरीघाट बाज़ार
जीरीघाट बाज़ार

जिरीघाट से मैदानी इलाके में सड़क पर गाड़ी फर्राटे से दौड़ती है । सड़क के किनारे दोनों तरफ छोटी-छोटी पहाड़ियाँ हैं, जिनपर अन्नानास (Pineapple) की खेती बड़े पैमाने पर की गई है । गाड़ी की रफ़्तार को सड़क पर लगी गाड़ियों की कतार से ब्रेक लग जाता है । तभी धीरे-धीरे सरकती सिलचर-जिरीबाम पैसेंजर ट्रेन सड़क को पार करती है । आश्चर्यजनक रूप से सड़क पर रेलवे फाटक होने के बावजूद उसको बन्द नही किया गया था । जीप के आगे बढ़ने पर गेटमैन भी दिखता है, लेकिन उसको देखकर लगता है कि लापरवाही के बजाय फाटक किसी खराबी की वजह से नही बन्द किया होगा ।

सिलचर तो बस अब थोड़ी ही दूर था और इसके साथ ही हमारी दिन भर की थकाऊ यात्रा का अंत हो जाना था । सड़क के किनारे अभी भी छोटी-छोटी पहाड़ियाँ थीं, लेकिन अब उनपर अन्नानास की खेती नही थी, बल्कि उनका दोहन करके उन्हें नंगा कर दिया गया था । एक के बाद एक पहाड़ियों की अंधाधुंध कटाई हो रही थी ।

इम्फ़ाल-सिलचर सड़क का बेहतरीन हिस्सा
इम्फ़ाल-सिलचर सड़क का बेहतरीन हिस्सा

शाम को 5.30 बजे हम सिलचर पहुँच गए । ड्राइवर ने रँगपुर में छोड़ दिया । मैंने कहा कि मेरी टिकट तो आइजॉल की है, तो उसने 350 रुपये देकर एक ऑटो में बैठाया और एक मोबाइल नंबर देकर ऑटो वाले को कुछ समझाया । उसने कहा कि ऑटो से उतरकर उस नंबर पर कॉल करने से आइजॉल वाली गाड़ी की व्यवस्था हो जाएगी । मुझे इम्फ़ाल में किसी ने बताया था कि सिलचर से आइजॉल का सूमो का किराया 450 रुपये है । एक बार मेरे दिमाग मे आया कि ड्राइवर को बोलूं कि उसने मुझे 350 रुपये ही क्यों दिये, लेकिन संकोची स्वभाव के कारण बोल नही पाया । दूसरे, अभी भी मन में यह विश्वास था कि टिकट तो मैंने आइजॉल तक की ही ली है । हो सकता है ड्राइवर की टूर एजेंट से कोई सेटिंग हो और 350 रुपये में ही सूमो मिल जाये ।

लेकिन ऑटो से सिलचर में कैपिटल नामक जगह उतरकर उस आदमी से मिलते ही सारा भ्रम टूट गया । उसने कहा कि किराया तो 450 रुपये है और आपको 450 रुपये ही देने पड़ेंगे । गुस्से में मैंने इम्फ़ाल वाले एजेंट को फ़ोन किया । उसने बाद में जीप वाले से बात की तो जीप वाले ने सिलचर वाले एजेंट को फ़ोन करके बोला कि उसको रँगपुर वापस भेज दो, 100 रुपये दे दूंगा । अब 20 रुपये ऑटो का लगाकर मैं रँगपुर तो जाने से रहा, इसलिए मैंने वो 100 रुपये त्याग दिए । अब यह या तो एजेंट और जीप वालों की मिलीभगत है या फिर जीपवाले ने अनजाने में गलती की, यह तो वो ही लोग जानें । बाद में वैसे इम्फ़ाल वाले एजेंट ने फ़ोन करके इस सारे कंफ्यूजन के लिए माफ़ी माँगी ।

हालाँकि इस पूरे घटनाक्रम से मैंने निष्कर्ष यही निकाला कि इम्फ़ाल से आइजॉल जाते समय केवल इम्फ़ाल से सिलचर की टिकट लेनी चाहिए और फिर सिलचर से आगे आइजॉल की । दूसरी बात, आइजॉल जाने के लिए इम्फ़ाल का चक्कर लगाने की कोई जरूरत नही है, गुवाहाटी से ट्रेन द्वारा सिलचर और वहाँ से सूमो द्वारा आइजॉल पहुँचा जा सकता है । गुवाहाटी से आइजॉल के लिए सीधे बसें और सूमो भी चलती है । जितनी कीमत और जितने समय में हम इम्फ़ाल से सिलचर का सफर करते हैं, उससे थोड़ा सा ही ज्यादा समय और किराये में सीधे आइजॉल से गुवाहाटी का सफर हो सकता है । सिलचर होते हुए गुवाहाटी की सड़क भी अच्छी स्थिति में है ।

खैर, मैने तो इम्फ़ाल के लिए आने-जाने की टिकट बस नक्शा देखकर बुक की थी । मुझे लगा था कि इम्फ़ाल से चुरा चंद्रपुर होते हुए चम्फाई निकल जाऊँगा और फिर वहाँ से मिज़ोरम घूम-घामकर आइजॉल सिलचर होते हुए दुबारा इम्फ़ाल पहुँच जाऊँगा। इस तरह से मिज़ोरम का एक पूरा सर्किट बन जाता और किसी रास्ते पर दुबारा नहीं चलना पड़ता । यह तो मुझे इम्फ़ाल पहुँचकर पता चला कि चुरा चन्द्रपुर से चम्फाई की कोई शेयर्ड गाड़ी नही चलती और चम्फाई जाने के लिए सिलचर, आइजॉल घूमते हुए जाना पड़ेगा । मेरी वापसी की फ्लाइट इम्फ़ाल से थी, तो मैंने सोचा कि उसे कैंसिल कर देता हूँ, लेकिन जब कैंसिल करने की कोशिश की तो पता चला कि कोई रिफंड मिलेगा ही नही । मैंने उसको कैंसिल करने का विचार छोड़ दिया, ताकि वह विकल्प भी खुला रहे ।

मुझे आगे सिलचर से आइजॉल के सफर पर निकलना था । सिलचर में कैपिटल नामक जगह के पास बहुत सारे ट्रैवेल एजेंट्स हैं, जो सिलचर से आइजॉल के लिए सूमो बुकिंग करते हैं । सूमो जरूरी नही कि एजेंट के काउंटर के पास ही मिले (ज्यादातर मामलों में सूमो कहीं और खड़ी होती है) । टिकट पर सीट नम्बर देने के साथ ही शाम 6.30 बजे दुबारा से एजेंट के काउंटर पर पहुँचने को बोला गया । अभी एक घंटे का समय था, तो मैंने सोचा कि थोड़ा फ्रेश होकर कुछ खा-पी लेता हूँ । एजेंट ने कहा कि हमारे पास एक लॉज भी है, जहाँ जाकर आप एक घंटे तक विश्राम कर सकते हैं । मैंने पूछा कि एक घंटे का कितना लोगो, जवाब मिला 300 रुपये। मैंने हाथ जोड़ लिए और किसी दूसरे विकल्प की तलाश में निकल पड़ा ।

किस्मत से मात्र 100 मीटर की दूरी पर ही एक मोड़ घूमते ही मुझे दो शॉपिंग मॉल नज़र आ गए । अब कोई दिक्कत थोड़े थी । सामान के नाम पर मेरे पास एक छोटा सा बैकपैक ही तो था । मैं मॉल में घुस गया और आराम से हाथ-मुँह धोया । थोड़ी ही दूर पर खाने-पीने की चीजें बेचते कई स्टाल दिख रहे थे । फिर क्या, शाम को थोड़ा पेट भरने का जुगाड़ भी हो गया ।

खा-पीकर 6.30 बजे मैं दुबारा एजेंट के काउंटर पर पहुँचा, तो वहाँ कुछ यात्री और भी आ चुके थे । एक ऑटो में बैठकर हम उस जगह पहुँच गए, जहाँ सूमो खड़ी थी । एक सूमो में दस लोग होते हैं और जरूरी नहीं कि सबके टिकट एक ही एजेंट ने बुक किये हों। सारे एजेंट एक दूसरे से जुड़े रहते है, ताकि सूमो की बुकिंग और सीट नम्बर में कोई गफ़लत ना हो जाए ।

दस लोगों को लेकर सूमो ड्राइवर ने 8 बजे के करीब सिलचर से प्रस्थान किया। रात को तो ना कोई फ़ोटो खिंच सकते थे और ना ही खिड़की से बाहर झाँकने का विचार था । आइजॉल पहुँचते-पहुँचते तीन बजने वाले थे , तो जीप में मौजूद हर शख्स अपना सोने का जुगाड़ देखने लगा। जब सूमो की एक सीट पर चार लोग हो तो बैठे-बैठे ही सोना पड़ेगा, उसमें भी थोड़ा टस से मस होने की कोई गुंजाइश नहीं थी । फिर बगल वाले लड़के ने कहा कि बारी-बारी से सोते हैं, थोड़ी देर आप सो लो, फिर मैं सो लूँगा । मैं बस मुस्कुराकर रह गया कि इस ठूँसमठूँसाई में कोई भी कहा सो पायेगा । करीब 2 घंटे के बाद जीप एक ढाबे के किनारे डिनर के लिए रुकी ।

डिनर के बाद हम आगे बढ़े । वैरनगेट (Vairengate) में ILP चेकिंग के लिए रुकना पड़ा । यहाँ से हम मिज़ोरम में प्रवेश कर रहे थे। गाड़ी में कम से कम 5 लोगों के पास ILP नहीं था, तो यहाँ हम करीब 20 मिनट तक रुककर सबके ILP बनने का इंतजार करते रहें । मेरे पास तो ILP था, जिसको मैने एक दूसरे काउंटर पर बैठे पुलिस वाले को दिखाया । उसने चेकपोस्ट की एक स्टैम्प लगाकर परमिट मुझे वापस सौंप दिया । थोड़ी दूर एक कमरे में ILP ना होने की स्थिति में तुरन्त ILP जारी करने की व्यवस्था है । यहाँ एक हफ्ते के अस्थायी ILP को बनाने की फीस 130 रुपये है। डाक्यूमेंट्स के रूप में एक फ़ोटो पहचान पत्र की कॉपी (आधार कार्ड, वोटर कार्ड, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस) और 2 फ़ोटो जमा करने पड़ते हैं । एक लड़के से पूछा कि तुरन्त ILP बनाने का कितना फीस लिया, तो उसने बताया कि 180 रुपये । मैंने कहा कि रेट तो 130 रुपये है, तो उसने बताया कि उसके पास जहाँ जॉब करने जा रहा है, वहाँ का कोई कार्ड नही है, इसलिए 180 रूपये लिया ।

ILP चेक कराने के बाद हम आगे बढ़े और फ़िर शरीर को थोड़ा आराम देने के लिए एक ढाबे पर रुक गए । वहाँ इस बात पर सभी यात्रियों और ड्राइवर में लम्बी बहस हुई कि जब आइजॉल भोर में तीन बजे पहुँचना है तो क्यों ना 2 घन्टे यहीं आराम कर लिया जाए, फिर 5 बजे तक आइजॉल पहुँच जायेंगे । 3 बजे आइजॉल पहुँचकर भी कही नहीं जा सकते थे । लेकिन ड्राइवर ने कहा कि अगर 3.30 बजे के बाद आइजॉल में पहुँचे, तो पार्किंग स्टैंड पर गाड़ी खड़ी करने की जगह नही मिलेगी । खैर, ड्राइवर का यह तर्क हमें आइजॉल पहुँचने के बाद ही समझ आया ।

ढाबे पर थोड़ा देर रुकने के बाद हम फिर आगे की यात्रा पर निकल पड़े । गाड़ी में सब लोग ऊँघ रहे थें । कोलासिब कब पार हुआ, पता ही नहीं चला । जब टेढ़े-मेढ़े बैठे शरीर के किसी अंग को कोई कष्ट महसूस होता था तो नींद खुल जाती थी और थोड़ी देर बाद फिर ऊँघना शुरू । आखिर में आइजॉल शहर में प्रवेश करते ही नींद खुल गयी । थोड़ी ही देर में जीप आइज़ल में स्थित जरकाट (Zarkwat) जीप स्टैंड पर पहुँच गई । घड़ी में ठीक 3 बज रहे थे । यात्रियों ने विद्रोह कर दिया कि अब इतनी रात को कही नही जाएंगे ,इसलिए सभी लोग जीप में ही सोये रहेंगे ।

मेरे पास करीब डेढ़ किमी की दूरी पर एक होमस्टे की व्यवस्था थी, लेकिन मैं इतनी जल्दी जाकर होमस्टे की मालकिन को डिस्टर्ब नही करना चाहता था। इसलिए मैंने भी बाकी लोंगो की हाँ में हाँ मिलाई और जीप में ही उनींदे से पड़े रहे । फिर सुबह 5 बजे के करीब जब उठा, तो बाहर का नजारा कुछ और था । सड़क पर हर तरफ सूमो ही सूमो दिख रही थीं । आसपास की दुकानें जब तक खुलनी शुरू होती हैं, सूमो वाले सवारियाँ लेकर वापसी कर रहे होते हैं । तभी जाकर यह भी समझ आया कि सूमो वाला रात को क्यों कह रहा था कि 3.30 बजे के बाद पहुंचने पर पार्किंग मिलना मुश्किल हो जाता है ।

बाहर उजाला हो चुका था, तो हम सब एक-एक कर सूमो से बाहर निकले और अपने-अपने गंतव्य की ओर चल पड़े । मुझे लगा कि 5 बजे भी होमस्टे पहुँचना जल्दी ही होगी । सड़क पर काफी चहल-पहल थी, तो मैं वहीं इधर-उधर घूमने लगा कि थोड़ा और समय निकल जाए । सड़क पर मिजोरम के लगभग हर कस्बे के लिए एक सूमो खड़ी थी । लुंगलेई, साइहा, संगाऊ, सरछिप, नार्थ और साउथ वनलाइपाई, थेँजावल, मामित, कोलासिब इत्यादि हर जगह के लिए शेयर्ड सूमो मौजूद थी ।

एक बार तो दिमाग मे आया कि लगे हाथ मिज़ोरम के सुदूर दक्षिण में स्थित साइहा तक चला ही जाता हूँ। पता चला कि साइहा तक पहुंचने में 12 घन्टे और लगेंगे और शाम को 6 बज जायेंगे । मन तो बहुत था, लेकिन शरीर थककर चूर हो चुका था । उसको आराम देना भी जरूरी था । इसलिए मैंने साइहा जाने का विचार त्याग दिया । इन सब चक्करों में 6 बज चुके थे, तो मैं रामलुन दक्षिण में स्थित होमस्टे की तरफ बढ़ गया । अभी बस इतना ही । आइजॉल और मिज़ोरम के बाकी हिस्सों की यात्रा जारी रहेगी ।

This Post Has 2 Comments

  1. Pratik Gandhi

    यह सीधे इम्फाल और इमा मार्किट कैसे पहुच गए…भाई आपकी हर पोस्ट फॉलो करता हु और कोई भी नही छोड़ता हु क्योकि आपके जैसा north east कोई नही घुमा सकता….बाकी की पोस्ट भी GDS में पोस्ट कीजिये…
    गुवाहाटी से इम्फाल जाकर आइजोल जाने के बारे में जानकारी दी फ्लाइट की shared cab की वो अमूल्य है….गुवाहाटी से सिल्चर ट्रैन में जाना ही सही रहता खैर….
    चुरा चांदपुर से चम्फाई की shared cab नही हैं तो मणिपुर से मणिपुर घूमने में ही वापस सिलचर जाना पड़ेगा….सिलचर से आइजोल के तो पैसे लिख दिये लेकिन इम्फाल से सिल्चर के कितने हुए नही बताया….आइजोल में एयरपोर्ट नही है क्या ? इम्फाल तक फ्लाइट में जाने के बाद भी आइजोल 24 घंटे लगे पहुचने में….साइहाँ तक जाने में कितने लगने थे टैक्सी के और साइहाँ में क्या है ?….आपके लेख से नो नॉलेज बैंक बनता है वो कही नही मिल सकता….hats off bro आपके जुनून के लिए….बस आप लीखते रहे और में पढ़ता रहूंगा क्योकि आपके जैसा नार्थ ईस्ट घूमने के लिए 6 महीना लगेगा या फिर गुवाहाटी में नौकरी करना पड़ेगी

    1. Solo Backpacker

      इम्फ़ाल फ़्लाइट से गया था ना, इसलिए सीधे इमा मार्केट से पोस्ट शुरू कर दी 🙂 । लेकिन इम्फ़ाल की एक पोस्ट रहेगी, उसको लिखता हूँ एक दिन। आइज़ाल में एयरपोर्ट है तो लेकिन वहाँ का किराया बहुत महँगा रहता है। पूरे दिन में 2 फ़्लाइट हैं कोलकाता और इम्फ़ाल से । एयरपोर्ट से शहर दूर है, क़रीब 30 किमी। साइहा के बारे में लिखूँगा। अभी तो मिज़ोरम शुरू हुआ है:P

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