मिज़ोरम की राजधानी आइजॉल पहुँचने के लिए ज़्यादातर यात्री सिलचर को अपना प्रवेश द्वार बनाते है, लेकिन पता नही मेरे दिमाग़ में कौन सी ख़ुराफ़ात सूझ रही थी कि मैंने असम में स्थित सिलचर के बजाय मणिपुर की राजधानी इम्फ़ाल से आइजॉल जाने की ठान ली और इम्फ़ाल की हवाई टिकट बुक कर वहाँ पहुँच गए । इम्फ़ाल पहुँचकर पता चला कि चौबे जी आए थे छ्ब्बे बनने और दूबे बनकर रह गये । मतलब इम्फ़ाल से आइजॉल का रास्ता भी सिलचर होकर गुज़रता है । अब तो कोई चारा था नही, तो मैंने 23 घंटे सवारी जीप में बैठकर ( इम्फ़ाल से सिलचर, फिर सिलचर से आइजॉल) इम्फ़ाल से आइजॉल की सड़क यात्रा पूरी की और सुबह 6 बजे के क़रीब आइजॉल में स्थित अपने ठिकाने पर पहुँचा ।
23 घंटे की जीप यात्रा ने पूरे शरीर की बैंड बजा रखी थी । शरीर थकान से ऐसा चूर था कि आइजॉल स्थित होमस्टे के बिस्तर पर पड़ते ही नींद ने आ घेरा । 8 बजे के करीब होमस्टे की मालकिन के जगाने से नींद खुली, लेकिन ब्रेकफॉस्ट के लिए पूछने पर मैंने बोल दिया कि 10 बजे तक करूँगा और फिर सो गया । 09.30 बजे जब मैं दुबारा उठा तो खुद को तरोताजा महसूस कर रहा था ।
उठने पर मैंने अपने कमरे को ध्यान से देखा । किसी बड़े होटल के कमरे से कम नहीं लग रहा था । बिल्कुल साफ-सुथरा, हर चीज सलीके से रखी हुई, बाथरूम भी बहुत साफ़-सुथरा था । फिर बाहर निकलकर देखा तो होमस्टे के टेरेस आइजॉल शहर का पूरा नजारा दिख रहा था । आइजॉल उम्मीद से बहुत बड़ा और काफी घना बसा हुआ लगा । होमस्टे की लॉबी में भी हर चीज बड़े सलीके से रखी थी । सच पूछिए तो वहाँ की हर व्यवस्था को देखकर कहीं से भी होमस्टे वाली फीलिंग नहीं आ रही थी । वह होम स्टे कम और एक आलीशान अपार्टमेंट ज्यादा लग रहा था, और एक रात्रि का किराया था मात्र 800 रुपए । होमस्टे की मालकिन से मेरी जान-पहचान इस यात्रा की योजना बनाते समय एक दोस्त के माध्यम से हुई थी ।
शनिवार का दिन था। ब्रेकफॉस्ट करने के बाद मैं आइजॉल घूमने निकल गया । पहले तो मेरी योजना शनिवार के दिन आइजॉल शहर घूमने की थी , और फिर रविवार को कोई मोटरबाइक टैक्सी पकड़ कर करीब 30 किमी दूर स्थित रेइक गाँव तक घूमने की थी । लेकिन कोहिमा का मेरा अनुभव मुझे बस यही आगाह कर रहा था कि रविवार के दिन आइजॉल में किसी भी तरह की यात्रा करना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि आइजॉल के भी ज़्यादातर निवासी ईसाई धर्म को मानने वाले हैं । रविवार के दिन मिज़ोरम में अधिकांश लोग छुट्टी मनाते हैं और चर्च में प्रार्थना करते हैं । इसलिए सड़क पर चलते-चलते मैंने निश्चय किया कि आधा दिन भले निकल गया हो, लेकिन रेइक को शनिवार को ही निबटा देना अच्छा रहेगा, ताकि रविवार को अगर कोई साधन ना भी मिले तो आइजॉल शहर के अंदर पैदल ही घूम फिरकर लुत्फ उठा सकूँ ।
एक दुकानदार से पूछने पर पता चला कि रेइक (Reiek ) की शेयर्ड सूमो खाटला ( Khatla) में स्थित स्टैंड से मिलती हैं । उसी ने यह भी सलाह दी कि खाटला तक जाने के लिए एक मोटरबाइक टैक्सी से जाना सही रहेगा । उसकी दुकान के पास खड़े होकर ही मैं बाइक टैक्सी का इंतजार करने लगा । थोड़ी ही देर में एक बाइक सवार नजर आया। मोलभाव करने पर वह 100 रुपये में खाटला तक ले जाने के लिए तैयार हो गया ।
मोटरबाइक टैक्सी की सेवा अब तो ओला द्वारा भारत के कई शहरों में उपलब्ध है, लेकिन आइजॉल में यह सेवा बहुत पहले से ही उपलब्ध है । वैसे भी अभी आइजॉल में ओला या ऊबर का आगमन नही हुआ है । दक्षिण-पूर्व एशिया के कई देशों में तो मोटरबाइक टैक्सी बहुत ही लोकप्रिय हैं । पहली बार मैंने मोटरबाइक टैक्सी की सेवा कंबोडिया की राजधानी नोमपेन्ह में ली थी । उसके बाद इंडोनेशिया की यात्रा के दौरान इसका लुफ़्त उठाने का मौका कई बार मिला । शहरों की भीड़भाड़ में अगर सामान ज्यादा ना हो तो बाइक से चलना बड़ा ही फायदेमंद साबित होता है और लंबे समय तक जाम में फंसे रहने का डर नहीं रहता है ।
बाइक टैक्सी से खाटला की तरफ़ बढ़ते समय मैंने बाइक वाले से रेइक तक चलने की संभावना पर बात की । उसने पूछा कि रेइक कितनी दूर है आइजॉल से? आशा की एक किरण दिखी और मैंने कहा कि 30 किमी । उसने कहा कि 20 रुपये प्रति किमी के लगेंगें । मेरा तो माथा ही ठनक गया। 800-1000 रुपये में तो आइजॉल से रिज़र्व टैक्सी करके रेइक घूम सकते हैं और भाई साहब 20 रुपये प्रति किमी का हिसाब दे रहे थे । बाइक वाला अपनी ही कैलकुलेशन में मस्त था और थोड़ी देर बाद बोला कि 1200 रुपये लगेंगे । मैंने हाथ जोड़ लिया कि रहने दो ।
थोड़ी देर में हम खाटला स्थित सूमो बुकिंग काउंटर पर पहुँच गए । अन्य जगह की तरह यहाँ भी कोई अलग से बुकिंग काउंटर नहीं है, बल्कि एक दुकान में ही बुकिंग होती है । पता चला कि रेइक जाने वाली सूमो में कोई सीट नही है । जिस सूमो में सीट खाली है, उसका जाने का समय दोपहर 2 बजे है । उस समय 11 बज रहे थे । अगर मुझे उस समय सूमो मिल जाती तो शाम तक आइजॉल वापसी की एक सम्भावना थी, नहीं तो 2 बजे वाली सूमो से जाने पर तो वापस आने का कोई चांस ही नही था । चेहरे पर एक मायूसी सी छा गई ।
बाइक वाला भी तब तक खड़ा था कि शायद उसके साथ जाने के लिए हाँ बोल दूँ । लेकिन 1200 रुपये देने का मेरा कोई इरादा ही नही था । मैं दुकान के बाहर आगे क्या करना है यह सोच ही रहा था कि पास खड़ी एक लड़की ने पूछा कि पिक अप वैन से जाना पसंद करोगे ? मुझे तो रेइक पहुँचने से मतलब था, चाहे पिक अप मिले या ट्रक 🙂 मैंने तुरंत जवाब दिया कि हाँ जाऊँगा । उसने वही पास में खड़ी एक बोलेरो पिक अप के ड्राइवर से बात करवा दी । पिक अप बस 15 मिनट में निकलने वाला था, मेरी तो मुराद पूरी हो गई ।
पिक अप चलने को तैयार हुई तो ड्राइवर ने अपने बगल वाली सीट पर बैठने को कहा। कहाँ सूमो में ठूँस के जाने के लिए आया था, कहाँ पिक अप में आगे की सीट पर बैठकर आराम से जाने को मिल रहा था । थोड़ी देर में हम रेइक के लिए रवाना हो गये । आइजॉल शहर की सीमा से बाहर निकलते ही घने जंगल शुरू हो गए। लग ही नही रहा था कि हम इतने बड़े शहर के पास में हैं। रास्ते पर गाड़ियों के साथ-साथ बाइकर्स की भी खूब गहमागहमी थी। मुझे लगा कि सभी लोग रेइक पिकनिक मनाने के लिए जा रहे होंगे । आगे सड़क किनारे एक कार बहुत बुरी तरह से उल्टी पड़ी थी, शायद किसी ने पहाड़ी रास्ते पर जोश में होश खो दिया था ।
करीब 15 किमी चलने के बाद लॉंग ( Tlawng ) नदी का पुल पड़ता है । वहाँ लाइन से खड़ी बाइकों और कारों की कतार देखकर समझ आया कि लोग पिकनिक मनाने रेइक तक नहीं जा रहे थे, बल्कि वहीं आइजॉल फाल्स (Aizul Falls) तक ही जा रहे थे । नदी में पानी थोड़ा कम था, लेकिन बड़ी संख्या में लोग तलहटी में घूमते हुए मस्ती कर रहे थे। कुछ लोग तो नहा भी रहे थे । सड़क पर थोड़ा और आगे बढ़ने पर आइजॉल फाल्स की एक झलक दिखाई दी । पानी बहुत ज्यादा तो नही था, लेकिन दूर से वॉटरफाल सुंदर लग रहा था । चलती गाड़ी से पेड़ों के पीछे छिपे वाटरफॉल की फ़ोटो नही आ पा रही थी ।
थोड़ा आगे बढ़ने पर पहाड़ी में जंगल के साथ-साथ केले के बहुत सारे पेड़ों का सिलसिला शुरू हो गया । जिधर देखो उधर केले के पेड़ ही नजर आ रहे थे । आगे थोड़ी दूर पर पेड़ों को जलाकर पहाड़ी को नंगा किया गया था । ऐसा झूम खेती के प्रचलन के कारण किया गया था । साफ की गई पहाड़ी पर केले के नए पेड़ लगाये जायेंगे। फिर पुराने खेतों में एक नया जंगल उग जाएगा । झूम खेती के इस ढंग से पर्यावरण को नुकसान तो पहुँचता है, लेकिन मिज़ोरम, नागालैंड और मेघालय के पहाड़ी हिस्सों में इसका प्रचलन बहुत जोरों पर है ।
रेइक के रास्ते मे मुझे जगह-जगह HIV/AIDS से जुड़े बोर्ड लटके दिखे। बोर्ड पर क्या लिखा था, वह तो बिल्कुल समझ में नही आ रहा था, लेकिन ऐसा लगा कि AIDS को लेकर लोगो को कोई संदेश दिया गया है । लेकिन जब ऐसे बोर्ड मुझे हर कदम पर दिखे, तो मेरा माथा ठनका । मैंने इंटरनेट पर मिज़ोरम में AIDS खोजकर पढ़ना शुरू किया तो हैरान रह गया । जनसंख्या के प्रतिशत के मामले में मिज़ोरम में पूरे भारत मे सबसे ज्यादा AIDS रोगी हैं । विभिन्न आकड़ों के अनुसार करीब साढ़े आठ-नौ लाख की जनसंख्या वाले मिज़ोरम का लगभग हर 50वाँ आदमी/औरत एड्स से पीड़ित है । जिसमें सबसे ज्यादा एड्स पीड़ित आइजॉल में हैं । मुझे लगा कि आइजॉल जैसे भीड़भाड़ वाले शहर में तो 50 आदमी हर बीस कदम पर मिल जाते हैं, मतलब उस शहर में हर बीस कदम पर आप एक एड्स रोगी के पास से गुजर जाते हैं। ऊपर से लुभावना नजर आने वाला आइजॉल शहर, अत्यंत ही सुन्दर युवतियों का मंत्रमुग्ध करता फैशन , फर्राटे से दौड़ती बाइकों पर दौड़ते-भागते हुए युवा, चर्च में तैयार होकर पहुँचे जेंटलमैन…आइजॉल वाकई में एक शानदार शहर जैसा दिखता है, लेकिन इस शहर को एड्स की बीमारी ने जिस हद तक जकड़ रखा है, उसे देखकर लगता है कि यह शानदार शहर अदंर से कितना खोखला है । एड्स के बढ़ने के प्रमुख कारणों में बिना किसी सावधानी के किया गया सेक्स और ड्रग्स के आदी हो गए लोगों द्वारा असुरक्षित सिरिंजों का प्रयोग है ।
हम रेइक के रास्ते में थोड़ा और आगे बढ़े तो पहाड़ी पर अन्नानास (Pineapple) की खेती का एक बड़ा हिस्सा नजर आया । जब से मैं गुवाहाटी में रहने लगा हूँ, अन्नानास से एक विशेष लगाव सा हो गया है । वैसे सुना है कि यह फल पौष्टिक दृष्टिकोण से भी अच्छा होता है । अन्नानास के खेत को पारकर हम आइलॉंग ( Ailawng ) गाँव में पहुँच गए । बहुत ही साफ सुथरा गाँव था और कहीं भी गन्दगी का कोई नामोनिशान नही नजर आ रहा था ।
खाटला से चलकर करीब एक घन्टे में हम रेइक गाँव पहुँच गये । गाड़ी वाले ने गाँव में अपने घर के पास मुझे छोड़ दिया । गाड़ी से उतरकर मैं उसको कुछ पैसे देने लगा तो उसने मना कर दिया कि यह मुफ़्त में था । बहुत कोशिश करने के बाद उसने 50 रुपये लिए । वैसे जानकारी के लिए बता दूँ कि सूमो का किराया 90 रुपये होता है । गाड़ी वाले को धन्यवाद बोलकर मैं आगे गाँव में बढ़ गया ।
रेइक में एक सरकारी टूरिस्ट लॉज है, जहाँ रात्रि विश्राम के लिए रुका जा सकता है । टूरिस्ट लॉज के पास से ही रेइक पीक (Reiek Peak) के लिए रास्ता जाता है, जहाँ एक घन्टे के ट्रेक के बाद पहुँचा जा सकता है । लेकिन मेरे पास इतना समय ही नही था । मुझे अंधेरा घिरने से पहले आइजॉल वापस लौटना था । इसलिए मैं पीक की तरफ ना जाकर गाँव के अन्दर मुख्य सड़क पर बढ़ गया ।
सड़क किनारे लोग अपने-अपने घरों में रोजमर्रा के कामों में लीन थे । गाँव मे साफ-सफ़ाई पर विशेष जोर था, इसलिए जगह-जगह कूड़ेदान रखे हुए थे । हर घर सलीके से साफ-सुथरा लग रहा था । घरों के बाहर गमलों में लोगों ने बड़े सुंदर-सुंदर फूल पौधे लगा रखे थे । ऐसे ही चलते-चलते मैं गाँव के आखिरी छोर पर पहुँच गया । सामने पहाड़ की ढलानों पर घने जंगल और नीचे की गहरी घाटियाँ बहुत सुन्दर लग रही थी । उन्हें निहारता हुआ मैं और आगे बढ़ता रहा ।
करीब एक किमी चलने के बाद एक बहुत बड़ी गुफ़ानुमा संरचना मिली । सड़क के किनारे वाली पहाड़ी सड़क के ऊपर लटकी हुयी थी, जिससे एक बहुत बड़ी गुफ़ानुमा संरचना बन गयी थी । गुफ़ा की सतह पर मधुमक्खी के छत्तों जैसे बहुत सारे छेद बने थे, जिनका कारण मुझे समझ नही आया । गुफा से थोड़ा और आगे मैं मुख्य सड़क पर बढ़ता रहा । सामने रेइक पीक नजर आ रही थी, लेकिन मेरा पीक तक जाने का कोई इरादा नही था, इसलिए मैं वापस गाँव की तरफ मुड़ गया ।
गाँव के आसपास घूमने में बड़ा अच्छा लग रहा था । अगर कोई और समय होता तो आइजॉल की जगह मैं रेइक में ही रुकना ज्यादा पसन्द करता, लेकिन इस यात्रा की शुरुआत से ही मेरे घूमने के दिन घटते जा रहे थे, इसलिए मैं थोड़ा जल्दी में था । उस दिन मेरा रेइक में रुकने का कोई इरादा नही था । मैं गाँव मे करीब 2 घंटे बिताकर वापस सूमो स्टैंड पहुँच गया, जहाँ से मुझे आइजॉल की सूमो पकड़कर वापसी करनी थी ।
लेकिन सूमो स्टैंड पहुँचकर मुझे बड़ा झटका लगा । रेइक से आइजॉल की आखिरी सूमो 12.30 बजे ही चली जाती है और उस समय 2 बज चुके थे । मैंने आसपास लोगों से पूछा कि कोई गाड़ी तो होगी आइजॉल जाने के लिए, लेकिन सबने कहा कि अब कोई गाड़ी नही मिलेगी । मुझे तो भरोसा ही नही हो रहा था कि मिज़ोरम राज्य की राजधानी आइजॉल से मात्र 30 किमी की दूरी पर स्थित पर्यटन स्थल से शहर वापसी के लिए दोपहर 12.30 बजे के बाद कोई गाड़ी ही नही थी । पहाड़ी गाँवों की कई यात्राएँ कर लेने के बाद रेइक का लॉजिक तो मुझे समझ आ रहा था कि गाँव वाले सुबह आइजॉल जाते हैं और बाजार वगैरह घूम कर दोपहर में गाँव वापसी करने लगते हैं । इसलिए सुबह ज्यादातर शेयर्ड गाड़ियाँ रेइक से आइजॉल जाती हैं और फिर दोपहर में वापसी करती हैं । लेकिन हैरानी इस बात की थी कि आइजॉल के इतना पास होने के बावजूद दोपहर में 12.30 बजे के बाद रेइक से आइजॉल की कोई गाड़ी नही थी । सबसे बड़ी दिक्कत यह थी कि अगले दिन रविवार था । शनिवार को रेइक में फँसे तो बिना गाड़ी रिज़र्व किए सोमवार के पहले निकल ही नही सकते थे । रविवार को तो लोग सड़क पर विरले ही होते हैं, इसलिए गाड़ी वाले भी अनाप-शनाप पैसे माँगने लगते हैं ।
कुछ देर तो मुझे समझ ही नही आया कि क्या करूँ । फ़िर मैंने अपनी दिमागी चेष्टाओं को समेटकर यह निष्कर्ष निकाला कि रात होने में तो बहुत समय है, इसलिए आगे बढ़ते हैं और किसी से लिफ्ट माँगने की कोशिश करते हैं । थोड़ी दूर चलने पर एक बाइक वाला नजर आया, लेकिन वो नजरअंदाज कर आगे बढ़ गया । थोड़ा और आगे बढ़ा तो सड़क किनारे एक वैन खड़ी दिखाई दी । मैंने पूछा कि आइजॉल जाओगे तो उसने मना कर दिया । फिर कुछ सोचकर बोला कि 2000 रुपये लगेंगे, रिज़र्व करके चलना है तो चलो । मैंने भी मुस्कुराते हुए मना कर दिया ।
आगे बढ़ते हुए मैं रेइक गाँव की आखिरी सीमा पर पहुंचा ही था कि लकड़ी के पटरों से लदी एक पिक अप वैन आती दिखाई दी । मेरे हाथ देने पर ड्राइवर ने गाड़ी रोक दी । मैंने पूछा कि आइजॉल जाओगे, उसने मुझे पीछे लकड़ी के ढेर पर बैठने का इशारा किया । कसम से इतनी राहत महसूस हुई कि क्या बताऊँ । मैं फटाफट पीछे चढ़कर बैठ गया ।
पिक अप गाड़ी में पीछे बैठने का अपना ही मजा था । चारों तरफ के पहाड़ों और जंगलों का 360 डिग्री का नजारा दिख रहा था । हर तरफ से फ़ोटो खींचने का मौका भी मिल रहा था । सड़क किनारे एक घर बिलकुल खाई में लटका हुआ लग रहा था । वैसे तो घर की सतह के नीचे कंक्रीट के खम्भे थे, लेकिन उन खम्भों पर टिके घर को देखकर डर ही लग रहा था । ज़ोरदार बारिश से अगर पहाड़ी जरा भी दरकी तो ऐसे घरों के टिके रहने की क्या गारंटी है?
हम थोड़ी देर के लिए आइजॉल फॉल्स पर नदी के किनारे रुके । फिर वहाँ से चलकर गाड़ी वाले ने मुझे खाटला में उसी काउंटर के पास उतार दिया, जहाँ से मैंने रेइक की गाड़ी पकड़ी थी । गाड़ी से उतरकर मैं ड्राइवर को 100 रुपये देने लगा, तो उसने मना कर दिया । लेकिन काफी रिक्वेस्ट करने पर उसने रख लिया । सुबह से ऐसा मेरे साथ दूसरी बार हुआ था ।
शनिवार का दिन तो अब कट चुका था । रविवार सारा मिज़ोरम बन्द रहता है, तो उस दिन भी मुझे आइजॉल शहर में घूमने के अलावा और कुछ नहीं करना था । मैंने सोचा कि लगे हाथ चम्फई या ज़ोखतावर के लिए सोमवार को जाने वाली सूमो बुक कर लेता हूँ । फिर घूमते-फिरते मैंने लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि चम्फई की तरफ जाने वाली सूमो का बुकिंग काउंटर इलेक्ट्रिक वेंग में है। वेंग यहाँ मुहल्लों को बोलते हैं । मैं इलेक्ट्रिक वेंग की ओर बढ़ गया ।
चम्फई को लेकर दिमाग में बहुत सारा कंफ्यूजन था । इसलिए बुकिंग काउंटर की ओर ना जाकर मैं थोड़ा और सोच विचार करने के उद्देश्य से पास में ही स्थित चॉपस्टिक्स रेस्टोरेंट में चला गया। यह रेस्तरां अपने मोमोज़ और थुकपा के लिए बहुत प्रसिद्ध है । अन्दर बैठने के बाद अटेंडेंट एक पेन और पेज लेकर आया ताकि मैं उसपर अपना ऑर्डर लिख सकूँ । मैंने सीधे अपना आर्डर पेज पर लिखा- चिकन मोमोज़ और कोक । इस पर अटेंडेंट ने कहा कि मोमोज़ खत्म हो गए हैं । मैंने पूछा कि थुकपा मिलेगा क्या तो जवाब मिला हाँ । मैंने पुराना आर्डर काटकर नीचे थुकपा लिख दिया । थोड़ी देर में अटेंडेंट थुकपा और कोक लेकर आया । मैंने कहा कि कोक का आर्डर तो कैंसिल कर दिया था , तो जवाब मिला कि सर आपके लिए कोक हमारी तरफ से मुफ्त में । एक ही दिन में मुझे मिज़ो लोगों की गर्मजोशी और मेहमाननवाजी के लगातार उदाहरण मिलते जा रहे थे ।
चम्फई का कंफ्यूजन दूर नहीं हो पा रहा था । फिर मैंने अपना पुराना तरीक़ा आज़माया , मैप पर नज़र दौड़ाओ, कोई एक सड़क पसंद करो और उसपर आगे बढ़ते जाओ 🙂 । मैने अपने बैग से मिज़ोरम का मैप लिया और सुदूर दक्षिण में आखिरी छोर पर स्थित कस्बे फुरा का नाम देखा । फुरा के आगे पलक नाम की एक झील भी थी । तो मैंने सोचा कि चम्फई और बर्मा सीमा के अंदर रिह दिल ( Rih Dil) देखने तो सारी दुनिया ही जाती है । उसे किसी और की नजर से देख लूंगा । लेकिन मिज़ोरम का दक्षिणी भाग आमतौर पर पर्यटकों की नजर से अछूता ही है । इसलिए मैं सुदूर दक्षिण में स्थित पलक दिल (Palak Dil) चलता हूँ । मिज़ो भाषा और शायद बर्मा की भाषा मे भी झील को दिल बोलते हैं । बस यह विचार आते ही मैं चम्फई की जगह साइहा कस्बे तक जाने के लिए मिलेनियम सेंटर के पास स्थित सूमो काउंटर पर गया और सोमवार को साइहा के लिए एक सीट बुक करवा दी ।
इधर-उधर भटककर जब शाम को होमस्टे पहुँचा तो वहाँ पूछा कि डिनर यही करेंगे या बाहर। मैंने कहा कि होमस्टे में ही करूँगा । विकल्प पूछने पर मैंने चिकन (शाकाहारी लोग माफ़ करे, मैं तो सर्वाहारी हूँ) बोल दिया । रात को डिनर में एक बार फिर स्वादिष्ट चिकन के साथ मिज़ो मेहमाननवाजी का एक और सबूत मिला ।
मुझे आज भी याद है आपकी GDS पे query आयी थी इम्फाल फ्लाइट वाली तब कहा पता था कि आपको मिजोरम जाना है खैर…मोटरबाइक टैक्सी वाह यह चलता है वहा ग़ज़ब…होमस्टे कैसे मिला वो दोस्त कौन था यह आपने लिखा नही लेकिन अगर वो लाइन आप नही लीखते तो में पूछता जरूर की आपको होमस्टे कैसे मिला..फिर नही वो दोस्त कौन है होंसके तो बताना…बेहतरीन लेख भाई आपकी घुमक्कड़ी का में दीवाना हो चुका हूं फैन….बिल्कुल आपके अंदाज लिखने के जैसे ही में घूमना पसंद करता हु या घूमता हु बस नक्शा उठाओ और किसी नही जगह को देख कर उसे पढ़ो सुनो देखो और पहुच्च जाओ…हैरानी की बात है कि मिजोरम की राजधानी से 30 km दूर 12.30 pm दोपहर को जाने का साधन नही है….आपकी दक्षिण मिजोरम घूमने वाली बात बहुत अच्छी लगी…कहा से लाते है आप यह सब जानकारों…ग़ज़ब हों सर आप
आइजोल व आपकी विचारधारा लेख दोनों प्रशंसनीय हैं ।
धन्यवाद सर जी