वैसे तो लगभग सत्रह हज़ार द्वीपों वाले देश इंडोनेशिया को क़ुदरत ने एक से बढ़कर एक नेमतें सौंपी हैं, लेकिन वहाँ घूमने का एक प्रमुख आकर्षण सक्रिय ज्वालामुखी पर्वतों की चढ़ाई है । राख के ढेर से ढँके इन पहाड़ों पर चढ़ते समय जिस तरह का संघर्ष करना पड़ता है, उसका एक अलग ही आनन्द है । प्रशांत महासागरीय रिंग ऑफ़ फायर (Pacific Ring of Fire) में स्थित होने के कारण इंडोनेशिया के अधिकांश ज्वालामुखी सक्रिय हैं और गाहे-बगाहे आग उगलते ही रहते हैं । रिंजानी पर्वत भी इंडोनेशिया के ऐसे ही ज्वालामुखी पर्वतों में से एक है । 3726 मीटर ऊँची चोटी वाला रिंजानी पर्वत (Gurung Rinjani) इंडोनेशिया का दूसरा सबसे ऊँचा और एक सक्रिय ज्वालामुखी है । रिंजानी पर्वत बाली के पूर्व में स्थित लोम्बोक द्वीप का एक प्रमुख पर्यटक स्थल है। मुझे पता था कि इंडोनेशिया की तीन हफ़्ते की यात्रा का शानदार समापन रिंजानी की चढ़ाई से बढ़कर और कुछ नहीं हो सकता था। इसलिए गिली द्वीपसमूह में 5 दिन की स्कूबा डाइविंग के बाद मैंने माउंट रिंजानी पर चढ़ाई करने का निश्चय किया।
भारत की तरह ही इंडोनेशिया में भी पहाड़ों को पवित्र मानकर उनकी पूजा की जाती है। देवी-देवताओं का बोध कराने के लिए यहाँ पहाड़ों को भी स्त्री-पुरुष की श्रेणियों में विभाजित किया गया है, जैसे माउंट बातूर को माउंट अगुंग की पत्नी माना जाता है। पवित्र होने के बावजूद अच्छी बात यह है कि आम पर्यटकों को भी इन पहाड़ों पर चढ़ाई करने की इजाज़त है । इसलिए हर दिन इन पर्वतों पर चढ़ने के लिए सैकड़ों स्थानीय और विदेशी पर्यटक पहुँच जाते हैं ।
इंडोनेशिया के सरकारी नियमों के अनुसार किसी भी ज्वालामुखी पर्वत की चढ़ाई बिना किसी स्थानीय गाइड को साथ लिये नहीं कर सकते। इसलिए आप कितने भी अनुभवी पर्वतारोही हों, माउंट रिंजानी या किसी भी ज्वालामुखी पर्वत पर ट्रेकिंग करने के लिए किसी गाइड को साथ लेना ही पड़ेगा। इंटरनेट से ऑनलाइन खोजने पर रिंजानी की ट्रेकिंग बहुत महंगी मालूम पड़ती थी, लेकिन गिली त्रवांगान (Gili Trawangan) में थोड़ी बहुत खोजबीन करने से मुझ वांछित शुल्क में रिंजानी की ट्रेकिंग कराने वाला एक ऑपरेटर मिल गया। इससे समझ आया कि इंटरनेट पर सीधे बुक करने के बजाय अच्छा होगा यदि रिंजानी की ट्रेकिंग गिली या लोम्बोक पहुँच कर ही बुक (Book) की जाये।
रिंजानी ट्रेक पर जाने के दो बेसकैम्प हैं, पहला सेनारु गाँव और दूसरा सेम्बुलन गाँव। ज्यादातर टूर ऑपरेटर ट्रेकिंग की शुरुआत सेम्बुलन की तरफ से करते हैं और फ़िर वापसी में सेनारु गाँव की तरफ़ से उतरते हैं। कुछ लोग उल्टी दिशा में सेनारु से सेम्बुलन के लिए ट्रेक करते हैं, हालाँकि ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम होती है। आमतौर पर रिंजानी पर्वत की चढ़ाई का टूर पैकेज तीन दिन और दो रात्रि का होता है । पहले दिन की सुबह सेम्बुलन गाँव (1156 मीटर) से ट्रेक शुरू करके शाम तक रिंजानी की गोलाकार क्रेटर रिम (Sembulan Crater Rim, 2639 मीटर) पर रात्रि विश्राम के लिए पहुँचते हैं । दूसरे दिन सुबह सूर्योदय से पहले ही शिखर की चढ़ाई (Rinjani Summit, 3726 मीटर) शुरू हो जाती है ताकि सूर्योदय तक शिखर पर पहुँच सकें । शिखर पर कुछ समय बिताने के बाद क्रेटर रिम पर वापस लौटते हैं और वहाँ से अपना सामान लेकर क्रेटर की तलहटी में स्थित झील (Segara Anak, 2000 मीटर) की तरफ़ बढ़ते हैं । वहीं एक गरम पानी का झरना भी है ।
झील के किनारे रात्रि विश्राम के लिए पड़ाव डाला जाता है । तीसरे दिन झील से चढ़ाई शुरू करके क्रेटर रिम के दूसरी साइड (Senaru Crater Rim, 2641 मीटर) पहुँचते हैं । वहाँ से फिर पहाड़ उतरते हुए शाम तक सेनारू गाँव (601 मीटर) पहुँच जाते हैं । सेनारु गाँव से ट्रेक शुरू करने से भी रास्ता यही रहता है, लेकिन फिर चोटी की तरफ़ दूसरे दिन की बजाय तीसरे दिन बढ़ते हैं और फिर उसी दिन शाम तक सेम्बुलन गाँव पहुँच जाते हैं । कई लोग झील की तलहटी में नही जाते हैं और सेम्बुलन क्रेटर से ऊपर-ऊपर ही सेनारू क्रेटर की तरफ़ पहुँच जाते हैं और फिर वहाँ से उतरकर सेनारू गाँव पहुँच जाते हैं ।
सेम्बुलन की तरफ से चढ़ने का एक फायदा यह है कि पहले दिन की चढ़ाई थोड़ी आसान है और दूसरे दिन रिंजानी पर्वत शिखर पर चढ़ने के लिए आप तरोताजा रहते हैं। सेनारु गाँव से चढ़ाई थोड़ी कठिन है और चट्टानी रास्ते पर पहले चढ़ने, फिर रिंजानी क्रेटर की झील तक उतरने और फिर क्रेटर रिम तक चढ़ने में ही सारा दम निकल जाता है। इस स्थिति में तीसरे दिन रिंजानी पर्वत शिखर की चढ़ाई थोड़ी मुश्किल हो जाती है। लेकिन अगर रिंजानी पर्वत शिखर पर ना चढ़कर खाली झील या क्रेटर रिम से वापस आना हो तो किसी भी दिशा से ट्रेक शुरू कर सकते हैं । मैंने अपनी यात्रा के दौरान सेम्बुलन गाँव से चढ़ाई शुरू कि और फिर तीसरे दिन सेनारू गाँव की तरफ़ से वापसी की ।
सेनारू गाँव में घूमते समय जब मैंने माउंट रिंजानी को पहली बार देखा, तो लगा कि इस पर्वत पर चढ़ना तो बच्चों का खेल है। बाद में सेम्बुलन के घुमावदार रास्तों से जब भी रिंजानी नज़र आता तो दिमाग़ में यही आता कि यह ट्रेकिंग तो खेल -खेल में हो जायेगी, आख़िर हिमालय में इतनी ट्रेकिंग जो कर रखी है । लेकिन अगले दिन की सुबह ज्वालामुखी की राख में धँसते पैरों और बेदम हुए शरीर को घसीटते हुए जब मैं सेम्बुलन क्रेटर रिम पर स्थित अपने रात्रि पड़ाव से आगे बढ़ रहा था, तो लगा की सामने रिंजानी नही माउंट एवरेस्ट खड़ा है । हर उठते कदम के साथ ही पैरों ने विद्रोह करना शुरु कर दिया, लेकिन दिल में बस यही था कि जैसे भी हो आज रिंजानी नाम के इस एवरेस्ट को फतह करना ही है। सर हिलेरी ने कहा था कि हम पहाड़ों को नहीं बल्कि खुद को जीतते हैं। कहाँ एवरेस्ट का वह उत्तुँग शिखर (8848 मीटर) और कहाँ रिंजानी की यह पर्वत चोटी (3726 मीटर) ! जवाब देते कदमों के बावजूद मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया और अंततः रिंजानी की वो चोटी फतह हो ही गई।
चूँकि रिंजानी पर्वत पर ट्रैकिंग किसी टूर ऑपरेटर या गाइड के बिना नहीं हो सकती है, इसलिए सभी लोग सामान्यतः एक दिन पहले ही ट्रेक बुक कर लेते हैं । यह नियम इंडोनेशिया के स्थानीय निवासियों के लिए नहीं है, इसलिए वो बिना किसी गाइड के भी ट्रैकिंग कर सकते हैं। रिंजानी पर्वत पर चढ़ाई करने के लिए सैकड़ों स्थानीय नागरिक रोज़ ही पहुँचते हैं और ट्रेक का रास्ता भी बहुत अच्छी स्थिति में है, इसलिए भटकने का कोई चांस नहीं है। ज्यादातर ट्रैकिंग पैकेज लोम्बोक एयरपोर्ट, माताराम, सेंगेगी या गिली से शुरू होकर फिर इन्ही गंतव्यों में से कहीं एक जगह समाप्त होता है। पैकेज में सामान्यतः इन स्थानों में स्थित होटलों से पिक अप और ट्रेक समाप्त होने के बाद होटल तक का ड्राप शामिल रहता है । रात को टेंट में रुकना (एक टेंट में दो व्यक्ति) , नाश्ता, लंच, शाम की चाय और डिनर भी पैकेज का हिस्सा होते हैं । पैकेज में गाइड और पोर्टर के शुल्क, रिन्जानी पार्क में प्रवेश शुल्क और परमिट इत्यादि की व्यवस्था भी शामिल होती है । हर सदस्य को ट्रेक शुरू करते समय २ लीटर वाली एक मिनरल पानी की बोतल मिलती है , लेकिन उसके खत्म होने के बाद पहाड़ों पर मिलने वाले पानी से ही काम चलाना पड़ता है ।
मैंने गिली त्रवांगन में ही एक ऑपरेटर खोजकर अपने बजट के लिहाज़ से सही दाम में ट्रेकिंग बुक कर ली थी । पैकेज के मुताबिक़ ऑपरेटर द्वारा मुझे गिली त्रवांगन में मेरे हॉस्टल से पिक करके सेनारू गाँव पहुँचाना और फिर रिंजानी ट्रेक की समाप्ति के बाद मातारम के एक हॉस्टल तक छोड़ना था । लेकिन फिर रात में मुझे एक दोस्त ने बताया कि 30 मीटर की स्कूबा डाइविंग के अगले ही दिन रिंजानी की चढ़ाई अच्छा आइडिया नही है और किसी भी समय डिकम्प्रेशन सिकनेस (Decompression Sickness) का ख़तरा बना रहेगा । इसलिए मैंने रात में ही टूर ऑपरेटर से बात करके रिंजानी की ट्रेकिंग एक दिन और आगे करवा दी, लेकिन अब मुझे सेनारू गाँव पहुँचने के बाद रात्रि में रहने का प्रबंध और डिनर की व्यवस्था ख़ुद करनी थी, हालाँकि यह काम भी मेरे टूर ऑपरेटर ने कर दिया, जिसके लिए मैंने अलग से पेमेंट कर दी । हालाँकि इसकी वजह से मुझे सेनारू गाँव के पास ही स्थित दो बहुत ही सुंदर झरने (Sedang Gile Waterfall and Tiu Kelep Waterfall) देखने का मौक़ा मिल गया।
पैकेज के मुताबिक़ मुझे अगले दिन सुबह 5.15 बजे नाव से लोम्बोक जाने के लिए गिली त्रवांगन की जेटी पर मिलने को कहा गया । तय समय पर जब मैं जेटी पहुँचा तो नार्मल इंजन वाली बोट की टिकट लेकर एक व्यक्ति वहाँ पहले से ही मौजूद था । उसने मुझे जमा किये गये एडवांस और ट्रेक बुकिंग की एक रसीद थमायी और बोला कि उस पार बंगसल जेटी पर उनका एक आदमी मेरा इन्तजार कर रहा है । बोट में सवार ज्यादातर यात्री स्थानीय निवासी थे, जो लोम्बोक स्थित बंगसल जेटी और गिली त्रवांगन जेटी के बीच की उस सबसे सस्ती बोट में सफर कर रहे थे । विदेशी पर्यटकों के लिये ज्यादातर समय इस पब्लिक बोट का टिकट खरीदना मुश्किल ही होता है। 15-20 मिनट में ही हम गिली त्रवांगन से लोम्बोक पहुँच गए । सुबह-सुबह ही लोम्बोक द्वीप पर स्थित बंगसल जेटी पर स्थानीय यात्रियों की चहल-पहल शुरू हो गयी थी । बहुत सारे लोग स्कूटी लेकर अपने घर वालों को लेने के लिए आए हुए थे । बग़ल में एक घोड़ागाड़ी वाला खड़ा होकर सवारियों का इंतज़ार कर रहा था ।
मैं भीड़ से थोड़ा अलग हो ही रहा था कि एक व्यक्ति ने मुझसे सम्पर्क किया । सैकड़ों की भीड़ में अकेले भारतीय को पहचानना कोई मुश्किल काम नहीं था । रसीद देखने के बाद एक स्कूटी पर बिठाकर वह मुझे क़रीब दो किमी दूर स्थित एक रेस्टोरेंट में ले गया । वह रेस्टोरेंट ही ट्रेकिंग एजेंसी का ऑफिस था, जहाँ से आगे की सारी जानकारी मिलनी थी। वहीं मुझे ब्रेकफास्ट दिया गया और बताया गया कि मेरे साथ रिंजानी की ट्रेकिंग पर जाने वाले और भी लोग हैं और सब थोड़ी देर में वहीं इकट्ठा हो जाएँगे ।
एक-एक करके ट्रेकिंग करने वाले लोग वहाँ पहुँचते रहे और धीरे-धीरे कुल मिलाकर आठ लोग जमा हो गए । फिर एक जीप के द्वारा हम लोग बंगसल से करीब 55 किमी दूर स्थित सेनारू गाँव के लिए चल पड़े । पूरा रास्ता लोम्बोक द्वीप पर बसे छोटे-छोटे गाँवों, बाज़ारों और हरे-भरे पेड़ों के बीच से गुज़रता है। काफ़ी दूर तक समुद्र का किनारा भी साथ में ही रहता है । बंगसल से करीब एक घन्टे का सफर, सडक के एक किनारे स्थित हरे भरे खेतों और दूसरी तरफ स्थित समुद्र की लहरों को आनन्द लेने में ही कट गया । मुझे छोड़कर समूह के बाकी सदस्यों को उसी दिन ट्रेकिंग शुरू करनी थी । इसलिए जीप सीधे सेम्बुलन गाँव की ओर चल पड़ी । एक छोटी सी मार्केट में उन्होंने मुझे उतार दिया और बताया कि वहाँ से एक अन्य आदमी मुझे सेनारू गाँव तक ले जाएगा । मार्केट में ज़्यादातर लोग ट्रेकिंग एजेन्सी वालों को जानते ही थे, इसलिए मुझे वहाँ इंतज़ार करने में कोई दिक़्क़त भी नही हुई । थोड़ी देर बाद एक आदमी स्कूटी पर आया और मुझे बैठाकर सेनारु गाँव में स्थित मेरे होटल तक पहुँचा दिया ।
11 बजे तक हम सेनारू गाँव पहुँच गए और मेरे पास आराम करने के लिए पूरा दिन ही पड़ा था । होटल पहुँचकर मैं सो गया । थोड़ी देर बाद जब नींद खुली तो दिमाग़ में आया कि सेनारू गाँव के आसपास ही घूम लेना चाहिए । मेरा यह निर्णय बड़ा अच्छा साबित हुआ और मुझे सेनारू गाँव से थोड़ी ही दूर पर स्थित दो आलीशान झरनों (Sedang Gile Waterfall and Tiu Kelep Waterfall) को देखने का मौक़ा मिला। इन दोनों झरनों के बारे में बाद में एक अन्य पोस्ट लिखूँगा ।
अँधेरा घिरते ही वहाँ घनघोर बारिश होने लगी । तेज़ बारिश के कारण बाहर थोड़ी दूर स्थित दुकान तक जाकर खाना भी नही खा सकते थे । सौभाग्य से हमारे फ़ोन काम कर रहे थे, तो मैंने ट्रेकिंग गाइड को फ़ोन करके सारी समस्या बताई । उसने बताया कि मेरे साथ ट्रेकिंग पर जाने वाले तीन और लोग उसी होटल में रुके हैं । उसने बताया कि वह सबके लिए खाने की व्यवस्था कर देगा और थोड़ी देर बाद ट्रेकिंग की पूरी ब्रीफ़िंग देने के लिए होटल में आएगा । इस तरह एक और समस्या का समाधान हो गया ।
रात में ब्रीफ़िंग के दौरान यह पता चला कि हमारे समूह में कुल मिलाकर आठ सदस्य थे, जिनमें चार सदस्य पास स्थित किसी अन्य होटल में रुके हुए थे। मेरे होटल में रुका एक लड़का पेरिस से था और बाक़ी दो लड़कियाँ लंदन से थीं । दूसरे होटल में रुके बाक़ी चार लोग भी ब्रिटेन से ही थे । ब्रीफ़िंग में हमें रिंजानी का रूट मैप, अगले तीन दिन का प्रोग्राम और कुछ ध्यान रखने योग्य निर्देशों के बारे में बताया गया । रिंजानी के बारे में ज़्यादातर बातें वही बताई गई जो इस ट्रेक के बारे में पता करते समय हम इंटरनेट पर पढ़ चुके थे। लेकिन रिंजानी का असली रोमांच तो अगले दिन शुरू होने वाला था, जिसका एहसास इंटरनेट पर पढ़कर नहीं, बल्कि उन रास्तों पर ख़ुद चलकर होता है। रिंजानी का रोमांच अभी आगे की पोस्ट में जारी रहेगा ।
लगभग इस इलाके के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है….इसलिए आपके लिखे गाव जगह क्षेत्र सब पहली बार पढ़ रहां था लगभग तो इतना तो याद नहीं रहेगा लेकिन अपने बढ़िया लिखा…<ज्वालामुखी का ट्रैक वाह….मिस्त्र मेघालय और इंडोनेशिया तीनो एक साथ लिख रहे है आप बढ़िया है