हम सब जानते हैं कि प्राचीन समय में भगवान बुद्ध लुम्बिनी में पैदा हुए , बोधगया में ज्ञान प्राप्त किये, सारनाथ में प्रथम उपदेश दिया और कुशीनगर में महापरिनिर्वाण को प्राप्त हुए। लेकिन आधुनिक काल में भारत में एक जगह ऐसी भी है, जहाँ भगवान बुद्ध मुस्कुराये थे। कहानी साल 1974 की है। दुनिया भर की तमाम जासूसी संस्थाएं भारत में किसी बड़ी हलचल की टोह में लगी थी। सारी दुनिया को पता था कि यहाँ कुछ बड़ा हो रहा है, लेकिन वो बात क्या थी, इसकी किसी को भनक भी नही थी। फिर एक दिन पश्चिमी राजस्थान में भारत-पाकिस्तान की अन्तराष्ट्रीय सीमा से थोड़ी ही दूर रेतीली भूमि में एक बड़ा धमाका हुआ, इतना बड़ा कि उसकी गूँज अमेरिका तक सुनाई दी और उसी के साथ भारत नाभिकीय शक्ति से लैस देशों की गिनी चुनी कतार में खड़ा हो गया। भगवान बुद्ध पोखरण (Pokhran) में मुस्कुरा रहे थे। जी हाँ, यह विडम्बना ही थी कि दुनिया के सबसे विनाशकारी हथियार के परीक्षण कार्यक्रम का नाम दुनिया में सत्य और अहिंसा का सन्देश फ़ैलाने वाले भगवान बुद्ध के नाम पर स्माइलिंग बुद्धा (Smiling Buddha) रखा गया। कुछ सालों बाद 1998 में एक बार फिर उसी रेतीली भूमि में भारत ने अपना दूसरा नाभिकीय परीक्षण किया।
लेकिन मैं यहाँ उन नाभिकीय परीक्षणों का विश्लेषण नहीं कर रहा, मैं तो एक छोटे शहर की अपनी यात्रा की बात करने बैठा हूँ। पोखरण, उस धमाके का एक फायदा इस नाम को भी मिला और फिर पोखरण हमारी इतिहास-भूगोल की किताबों का एक अभिन्न अंग बन गया और मानचित्र में स्थान अंकित करने वाले प्रश्नों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा। उस नाभिकीय परीक्षण ने पोखरण का नाम पूरी दुनिया में फैला दिया।
लेकिन समस्या यह थी कि एक सैलानी के लिहाज से इन बातों का ज्यादा महत्व नहीं था। नाभिकीय विस्फोट वाले परीक्षण स्थल जो कि पोखरण से करीब चालीस किमी दूर, पोखरण-जैसलमेर राजमार्ग पर स्थित खेतोलाई गाँव के पास है, वहाँ आम लोगों को जाने की इजाजत नहीं है, इसलिए पोखरण घूमने का कोई सवाल ही नहीं था । मैं तो बस जैसलमेर से जोधपुर वाले हाईवे पर मोटरसाइकिल की सवारी का लुफ्त उठा रहा था। पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार तो मुझे पश्चिमी राजस्थान की सैर के बाद जैसलमेर से ही दिल्ली के लिए वापसी कर लेनी थी, लेकिन जैसलमेर भ्रमण के बाद भी मेरे पास तीन दिन की छुट्टियाँ बच गई थीं । मैंने सोचा की इन तीन दिनों का उपयोग जोधपुर और अजमेर घूमने में कर लेना चाहिए और फिर अजमेर से दिल्ली वापसी।
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बस इसी विचार से मैं जैसलमेर से जोधपुर की तरफ जा रहा था। लेकिन किस्मत में पोखरण से जान-पहचान होनी भी लिखी थी। बस इसीलिए पोखरण से ठीक पहले मेरी मोटरसाइकिल का लगेज कैरियर एक तरफ से टूट कर लटकने लगा और उसकी वेल्डिंग करवाना जरूरी हो गया । 11 बजे तक मैं पोखरण पहुँच गया । वहाँ एक वेल्डिंग की दुकान दिखी तो मैं रुक गया । आधे घंटे की जद्दोजहद के बाद मेरी सीट को जलने से बचाते हुए उन लोगों ने कैरियर को सही जगह पर जोड़ दिया।
वेल्डिंग की दुकान पर ही लोगों से बातों-बातों में पता चला कि पोखरण का किला भी घूमने के लिहाज से अच्छी जगह है। मुझे जोधपुर पहुँचने की कोई जल्दी नही थी और मेरे पास पूरा दिन पड़ा हुआ था। मैंने सोचा चलो पोखरण का किला भी घूम लेते हैं ।
पोखरण का क़िला
बालागढ़ के नाम से 14वीं सदी में निर्मित पोखरण का किला अपने बाकी पड़ोसियों जैसलमेर, जोधपुर या बीकानेर जैसा भव्य और विशाल तो नहीं है , लेकिन यहाँ से आप पोखरण के प्राचीन इतिहास की एक झलक जरूर देख सकते हैं। पुराने सिल्क रूट पर स्थित होने की वजह से यह भी व्यापारियों के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव था।
प्रवेश शुल्क: यह किला पोखरण के ठाकुर परिवार की निजी सम्पत्ति है। आम दर्शकों के लिए प्रवेश शुल्क 20 रूपये प्रति व्यक्ति है। डिजिटल कैमरा के लिए 50 रूपये और वीडियो कैमरा के लिए 50 रूपये का अतिरिक्त शुल्क लगता है।
इस किले का एक भाग आम दर्शकों के लिये खुला है, जहाँ आप एक संग्रहालय, कुछ मंदिर और दीवारों पर रखी तोपों को देख सकते हैं। संग्रहालय में पोखरण के ठाकुर (The Premier Noble ) परिवार के शस्त्रों , परिधानों, हस्तशिल्पों और स्थानीय कलाकृतियों का आनंद लिया जा सकता है। किले का संग्रहालय वीरान पड़ा रहता है और वहाँ प्रदर्शित वस्तुओं का कोई विवरण नहीं है। शीशे के बॉक्स में सभी चीजे बंद तो हैं , लेकिन उनमें से बहुत धूल -धूसरित सी हो रही हैं।
यहाँ घूमने पहुँचे ज्यादातर सैलानी या तो रामदेवरा में बाबा रामदेव (राजस्थान के बहुत पूज्य संत, योग गुरु नहीं ) की समाधि के दर्शन कर आ रहे होते हैं या फिर वहाँ जा रहे होते हैं। किसी धार्मिक भावना के वशीभूत वो यहाँ संग्रहालय के काँच के बक्सों में रूपये-पैसे, अपनी फोटो और विजिटिंग कार्ड्स वगैरह भी डाल देते हैं , जिससे पूरा संग्रहालय ही अव्यवस्थित सा नजर आता है। अब लोग चढ़ावा चढ़ाये तो समझ में आता है, लेकिन अपनी पासपोर्ट साइज की फ़ोटो, विजिटिंग कार्ड्स लोग उन बक्सों में क्यों डाल देते हैं, यह समझ नहीं आता। किसी एक ने कभी शुरू किया होगा और अब सब लोग वैसा ही करने लगे हैं।
किले में छोटे-छोटे मंदिर भी हैं। मुझे रघुनाथ मंदिर तो बंद मिला, लेकिन एक छोटा सा मंदिर खुला था। प्रथम तल पर स्थित उस मंदिर की पुजारिन वैसे तो नीचे भूतल पर गप्पे लड़ा रही थी , लेकिन मुझे उधर जाता देख एक दूसरी महिला के इशारे पर वो लपककर मंदिर में पहुँच गई , ताकि मुझसे कुछ दान-दक्षिणा मिल सके। भगवानजी को नमन कर और पुजारिन देवी को कुछ रूपये थमाकर मैं आगे बढ़ गया।
एक तरफ किले की दीवारों पर कुछ तोपें भी प्रदर्शित हैं। तोपों के पास दीवार से पोखरण शहर का विहंगम दृश्य दिखता है।
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किले के दूसरे हिस्से में एक हेरिटेज होटल है, जिसका संचालन ठाकुर परिवार खुद करता है। बीकानेर- जैसलमेर, बीकानेर-जोधपुर और जैसलमेर-जोधपुर वाले प्रमुख रास्ते पर स्थित होने की वजह से पोखरण, यात्रा के दौरान थोड़ा विश्राम करने के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है। यहाँ बहुत कम टूरिस्ट ही आते हैं, इसलिए भीड़भाड़ से दूर आप सुकून के कुछ पल आराम से बिता सकते हैं ।
भारत के ज्यादातर छोटे-मोटे किलों की तरह पोखरण भी एक आम सा किला है। ऐसे ज्यादातर किले रख-रखाव के आभाव में जीर्ण-शीर्ण नजर आते हैं, लेकिन शुक्र है कि पोखरण के किले का प्रबंधन अच्छे हाथों में है। हाँ, संग्रहालय को थोड़ा और व्यवस्थित किये जाने की आवश्यकता जरूर महसूस होती है। पोखरण के किले में इधर-उधर घूमकर कुछ फोटो खीचने के बाद मैंने भी अपनी यात्रा की इतिश्री की और किले से बाहर निकलकर जोधपुर के लिए बढ़ गया।