बसर में BasCon (Basar Confluence) का तीसरा संस्करण : कायदे से तो मुझे बसर के बारे में लिखने का काम पिछले साल के दिसम्बर तक ही पूरा कर लेना चाहिए था, क्योंकि नवम्बर के आखिर में BasCon 3 ( Basar Confluence का संक्षिप्त रूप, जिसे हम बसर फ़ेस्टिवल भी कहते हैं ) की झलक देखने के बाद बसर के जादू से दुनिया का परिचित होना बनता था । मन मे बार-बार आ रहा था कि सबको चिल्ला-चिल्लाकर को बताऊँ , अरुणाचल प्रदेश की पहाड़ियों में स्थित एक अनजानी सी दुनिया बसर के बारे में, जहाँ के निवासियों की गर्मजोशी ने हमारी पूरी टोली को मंत्रमुग्ध कर दिया था । लेकिन BasCon 3 से लौटने के बाद महसूस हुआ कि इंटरनेट पर हर कोई सिर्फ बसर के बारे में ही बात कर रहा था । उस गहमागहमी के बीच मैंने सोचा कि चलो अभी तो हर तरफ बसर की धूम मची है, कुछ महीनों के बाद जब यह हो हल्ला कुछ कम होगा और BasCon 4 की दस्तक शुरू होगी, तो मैं लोगों तक बसर की कहानियाँ पहुँचाऊँगा । बस इसीलिए इस पोस्ट में इतनी देर हो गई ।
सच पूछिए तो बसर के बारे में मैंने पहले कभी सुना ही नही था । भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित उगते सूरज की धरती अरुणाचल प्रदेश के नक्शे को कई बार देखने के बावजूद कभी भी बसर का नाम मेरे दिमाग के पर्यटन मानचित्र पर अंकित नही हो सका । आसपास स्थित आलो, दापारिजो, मेचुका इत्यादि तो समझ आ गया, लेकिन बसर का कहीं कोई नामोनिशान नही था । बसर से मेरा पहला परिचय हुआ इनबॉक्स में आई एक ई-मेल द्वारा, जिसमें BasCon 3 का जिक्र था । उस ई-मेल को पढ़कर मैंने अरुणाचल प्रदेश का मैप देखा और अंदाजा लगाया कि असम में अपने सबसे समीपवर्ती रेलवे स्टेशन शिलापथार से मात्र 90 किमी दूर स्थित बसर की यात्रा में कोई दिक्कत नही होगी और 2 दिन की छुट्टी में ही BasCon 3 का आनन्द लिया जा सकेगा ।
शिलापथार से बसर का सफ़र: सारा गुणा गणित समझने के बाद मैंने नियत समय पर गुवाहाटी से शिलापथार की ट्रेन पकड़ ली। दिमाग मे था कि सुबह-सुबह शिलापथार पहुँचकर 2 घण्टे में बसर पहुँच जाऊँगा और फिर फ़ेस्टिवल के तीसरे दिन दोपहर बाद वापसी शुरूकर शिलापथार से देर शाम की ट्रेन से गुवाहाटी वापस आ जाऊंगा । इस तरह इस सालाना त्यौहार के तीसरे संस्करण BasCon 3 के तीनों दिन आराम से घूमे-फिरने की योजना थी । लेकिन बाद में पता चला कि वह सब तो सिर्फ ख्याली पुलाव थे । शिलापथार के पास ही स्थित लिकाबाली से बसर की सड़क की स्थिति ऐसी थी कि 100 किमी की यात्रा में 6-7 घण्टे लगने थे, जिसके कारण मेरी सारी गणित गड़बड़ाने वाली थी ।
शिलापथार रेलवे स्टेशन से एक जीप द्वारा हम बसर की तरफ रवाना हो गए । अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करने के लिए इनर लाइन परमिट (ILP) की जरूरत पड़ती है । अमूमन तो मैं अरुणाचल प्रदेश का ILP ऑनलाइन ही ले लेता हूँ, ( अरुणाचल प्रदेश के ऑनलाइन ILP की जानकारी : Inner Line Permit of Arunachal Pradesh ) लेकिन BasCon के दौरान स्थानीय प्रशासन ने लिकाबाली चेकपोस्ट पर ही तुरन्त ILP जारी करने की व्यवस्था कर रखी थी । ILP लेकर लिकाबाली से आगे बढ़ने के बाद हमारी असली लड़ाई शुरू हुई। कुछ दूर आगे जाते ही एक दरकी हुई खतरनाक पहाड़ी दिखाई दी, जहाँ पिछले साल ही सेना की एक बस भूस्खलन के कारण हादसे का शिकार हो गई थी । उस खतरनाक हिस्से के आगे नवनिर्माण के कारण सड़क की स्थिति थोड़ी अच्छी थी, लेकिन करीब 5 किमी के बाद ही सड़क पर गड्ढे, कीचड़ और पानी नजर आने लगा । भूस्खलन के कारण सड़क जगह-जगह टूटी हुई थी। कीचड़ के बीच से निकलते हुए जीप के पहिए कई बार ऐसे सरकते थे कि एक-दो बार तो डर भी लगा कि कहीं जीप सड़क से नीचे उतरकर खाई में ना चली जाए । टूटे-फूटे हिस्सों में शरीर के अंजर-पंजर ढीले हो गए थे । वह तो सड़क से दिख रहे बेहतरीन दृश्यों का जादू था, जो हमारी हिम्मत को बनाए हुआ था ।
वैसे अरुणाचल प्रदेश की सड़कों पर यह हमारी यात्रा नही थी । इससे भी दुस्साहसी यात्रा हमने वर्ष की शुरुआत में ही कार द्वारा रोइंग से पासीघाट के सफ़र में भी की थी । (पढ़ें: रोइंग से पासीघाट की रोमाँचक कार यात्रा )
जुलाई के महीने में एक बार फिर बाइक द्वारा भालुकपोंग से दिरांग के सफ़र में शरीर के अंजर-पंजर ढीले हो गए थे । (पढ़ें: भालुकपोंग से दिरांग का सफ़र )
BasCon 3 के आयोजन स्थल पर : किसी तरह हिचकोले खाते हुए 100 किमी का वह अभूतपूर्व सफर तय कर हम दोपहर एक बजे तक बसर गाँव पहुँचे । जब तक मैं Basar Confluence के आयोजन स्थल पर पहुँचा, तब तक Bascon 3 का उद्घाटन समारोह ख़त्म हो चुका था और लोग लंच के लिए जा रहे थे । मतलब , BasCon 3 में मेरा सफर सीधे लंच से शुरू हुआ। आयोजन स्थल पूर्णतया प्लास्टिक रहित क्षेत्र था , इसलिए हर निर्माण और हर बात में स्थानीय संसाधनों का प्रयोग कर इस आयोजन को पर्यावरण समर्थक बनाने की पूरी कोशिश की गई थी । मसलन लंच करने के लिए थाली या प्लास्टिक की प्लेटों के बजाय केले के पत्तों का प्रयोग किया गया था । केले के पत्ते पर अपना भोजन लेकर आप आराम से एक जगह बाँस की बनी बेंच पर बैठकर खा सकते थे । पानी पीने के लिए प्लास्टिक की बोतल के बजाय बाँस के तनों का प्रयोग किया जा रहा था । यहाँ तक कि चावल से बनी स्थानीय बीयर पोका भी बाँस में डालकर ही मिल रही थी । आश्चर्य तो तब हुआ जब अगले दिन चाय और काफ़ी भी बाँस के अंदर डालकर परोसी गई । BasCon की धूम से तो परिचय बाद में हुआ, लेकिन इसका प्लास्टिक मुक्त आयोजन पहली नजर में ही मन को भा गया ।
पेट पूजा के बाद मैंने मुख्य आयोजन स्थल के इर्द-गिर्द नजर डाली । तैयार हो चुके धान के पीले-पीले खेतों के बीच से बहती कल-कल करती हेइ (Hei) और किदी (Kidi) नदियाँ , दूर-दूर तक फैले हरे-भरे जंगलों से ढँके पहाड़ और दोनो नदियों के संगम के आसपास दोनों तरफ सपाट मैदान में फैला विस्तृत आयोजन स्थल । सब कुछ विलक्षण लग रहा था । नदी की धारा बहुत तेज नही थी और उस पर आर पार आने-जाने के लिए बाँस के दो अस्थायी पुल बनाये गए थे । रंग-बिरंगे परिधानों में सजे स्थानीय युवक-युवतियाँ आयोजन स्थल के चारों तरफ फैले हुए थे । कुछ लोग नदी में बाँस के बजड़े पर नौकायन का लुत्फ भी उठा रहे थे । बच्चे, बूढ़े, जवान सब बसर के पारम्परिक और सांस्कृतिक समागम में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे थे।
लेकिन बसर हमेशा से ऐसा नही था । यह तो अरुणाचल प्रदेश के एक दूर-दराज़ वाले हिस्से का एक शांत सा क़स्बा था । बसर में दिखने वाली इस रौनक़, आसपास के क्षेत्रों के विकास और स्थानीय निवासियों में भाईचारे की प्रबल भावना का मुख्य श्रेय GRK को जाता है । BasCon की चमक-दमक भी GRK के ज़िक्र के बिना अधूरी है । आख़िर यह GRK है क्या ?
GRK का परिचय: बसर एक अकेला गाँव नही है, यह वास्तव में आस पास के कई गाँवों का एक समूह है । इन गाँवों में मुख्य रूप से गालो जनजाति के लोग निवास करते हैं । गाँवों में रोज़गार के पर्याप्त साधन ना होने की वजह से कई सारे लोग बसर से बाहर चले गए । बहुत सारे लोग सरकारी नौकरियों में उच्च पदों पर भी तैनात हुए । इन सभी लोगों ने मिलकर बसर और आसपास के क्षेत्रों के सतत टिकाऊ विकास और पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से Gumin Rego Kilaju ( GRK ) नामक एक लाभरहित NGO बनाया, जिसके संचालन में स्थानीय निवासी सक्रिय भूमिका निभाते हैं । बसर और आसपास के क्षेत्र में जहाँ भी GRK काम करती है, वहाँ के सभी परिवार इस NGO को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए कुछ ना कुछ आर्थिक योगदान देते हैं । हर गाँव में GRK की एक स्थानीय इकाई है, जो अपने क्षेत्र के सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण पर काम करती है ।
स्थानीय निवासियों के योगदान से किसी विशेष क्षेत्र का विकास करने के ऐसे उदाहरण मुझे ज़्यादातर पूर्वोत्तर भारत में ही मिले, असम, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड हर जगह; लेकिन बसर में GRK का काम सबसे अनूठा लगा । बसर की सड़कों पर, गलियों में या घरों के आसपास कहीं कोई गंदगी या कूड़े के ढेर नही दिखते क्योंकि यहाँ लोग सफ़ाई को लेकर बेहद जागरूक हैं । GRK की तरफ़ से जगह-जगह डस्टबिन लगाए गए हैं । GRK की तरफ़ से कौशल प्रशिक्षण (Skill Development) के तहत युवाओं को छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है, जिससे वो कम्प्यूटर, पर्यटन, खेती इत्यादि से जुड़े प्रोफ़ेशनल कोर्स या डिप्लोमा कर सकते हैं । इसके लिए उन्हें अरुणाचल प्रदेश से बाहर भी भेजा जाता है । पर्यावरण संरक्षण के लिए भी यहाँ कई तरह के कार्य किए गये, जैसे प्लास्टिक के उपयोग पर धीरे-धीरे रोक, नदी में मछली पकड़ने पर रोक, वृक्षारोपण को बढ़ावा इत्यादि । यह सारा काम GRK को स्थानीय निवासियों द्वारा दिए गए नियमित वित्तीय अनुदान से ही होता है । सामुदायिक विकास (Community Development) के ऐसे उदाहरण भारत में बहुत कम जगह ही मिलते हैं ।
पर्यटन के विकास से स्थानीय समुदाय को होने वाले लाभों को ध्यान में रखते हुए GRK द्वारा बसर में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए अनेक विकास कार्य किए गए । GRK के सदस्यों द्वारा अपनी जन्मभूमि बसर को कुछ देने और इसे पर्यटन के विश्व मानचित्र पर इसे खड़े करने के उद्देश्य से बसर फ़ेस्टिवल को शुरू किया गया । हेइ (Hei) और किदी (Kidi) नदियों के संगम (Confluence) पर आयोजित होने के कारण इस फ़ेस्टिवल को Basar Confluence का नाम दिया गया, जिसे हम संक्षेप में BasCon कहते हैं । यह त्यौहार मुख्यतः बसर और आसपास के क्षेत्रों में रहने वाली गालो जनजाति के रीति-रिवाजों, खान-पान, नृत्य, खेल, कृषि इत्यादि से दुनिया को परिचित कराने का एक प्रयास है, जिससे लोगों को बसर की समृद्ध सांस्कृतिक और पारम्परिक विरासत का पता चल सके । BasCon के आयोजन में स्थानीय युवक-युवतियों को भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया जाता है, ताकि वो अपनी संस्कृति और परम्पराओं से जुड़ाव को महसूस कर सकें । बसर के अलावा BasCon में अरुणाचल प्रदेश के अन्य हिस्सों, अन्य जनजातियों और पूर्वोत्तर भारत के दूसरे राज्यों के लोक नृत्यों का प्रदर्शन भी होता है।
BasCon 3 का पहला दिन : अब वापस चलते हैं BasCon 3 के पहले दिन । बसर के मुख्य आयोजन स्थल पर लंच करने के थोड़ी देर बाद हम धान के खेतों की तरफ गए, जहाँ कुछ युवतियाँ धान के काटने, सटकने से लेकर कूटकर चावल निकालने और फिर उसे संग्रहित करने की पारम्परिक विधियों का प्रदर्शन कर रही थीं । चावल बसर के निवासियों के रोजमर्रा के खानपान का एक प्रमुख हिस्सा है । हमारी तरफ उत्तर प्रदेश या बिहार में धान के पौधों को जड़ के पास से काटकर फिर उसे एक तख्त पर पीट-पीटकर या मशीन से सटककर धान को पौधे से अलग करते हैं । फिर धान को कुटाई वाली मशीन में डालकर चावल अलग किया जाता है । लेकिन बसर में पीठ पर टोकरी लटकाए युवतियाँ खेत में जाकर पके धान की बालियाँ तोड़-तोड़कर टोकरी में रखती जाती हैं । फिर एक जगह उन बालियों को जमीन पर फैलाकर उन्हें पैरों से कुचला जाता है, ताकि धान बालियों से अलग हो सके । फिर उस धान को ओखली में कूट-कूटकर चावल प्राप्त किया जाता है । ओखली की कुटाई कई बार उत्तर प्रदेश के गाँवों में भी होती है । बालियाँ तोड़ लेने के बाद धान के पौधों को खेतों में छोड़ दिया जाता है, जहां बारिश में सड़ गलकर वो जैविक खाद की तरह काम करते हैं ।
धान के खेतों से निकलकर हम मुख्य आयोजन स्थल पर बने एक बड़े से स्टेज के पास पहुँच गए, जहाँ स्थानीय लोकनृत्य के रंगारंग कार्यक्रम शुरू हो रहे थे । सबसे पहले गालो जनजाति के एक समूह द्वारा शादी-विवाह के अवसर पर उच्चारित होने वाले यान (Yann) मन्त्रों के साथ एक नृत्य प्रस्तुत किया गया । फिर एक वृद्ध दादी ने गालो समाज में किसी बच्चे के पैदा होने पर उच्चारित होने वाले यान मन्त्रों को हमारे सामने प्रस्तुत किया ।
शाम घिरने लगी थी और BasCon के समारोह स्थल पर स्थानीय लोगो की चहल पहल बढ़ती जा रही थी । रंग-बिरंगे परिधानों में सजे झुण्ड के झुण्ड बसर के इस उत्सव का हिस्सा बनने के लिए आयोजन स्थल पर इकट्ठा हो रहे थे । मुख्य स्टेज पर पूर्वोत्तर भारत के अन्य राज्यों के लोक नृत्यों का प्रदर्शन शुरू हुआ, जिसमें असम का बीहू लोक नृत्य प्रमुख रूप से दिखाया गया । एक के बाद एक कुछ स्थानीय लोगों ने गालो जनजाति के पारम्परिक गानों और लोक नृत्यों को भी प्रस्तुत किया ।
मुख्य स्टेज पर चल रहे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हम इतने मशगूल थे कि कब रात हो गई, पता ही नही चला । BasCon 3 का पहला दिन समापन की ओर अग्रसर था और पेट में चूहे भी कुलबुलाने लगे थे । रात के डिनर की व्यवस्था वैसे तो GRK चेयरमैन के घर पर थी, लेकिन वहाँ रवाना होने में अभी कुछ समय बाकी था । पेट पूजा के उद्देश्य से हम एक बार फिर आयोजन स्थल के इर्द-गिर्द घूमने निकल पड़े । मुख्य स्टेज से थोड़ा दूर एक तरफ़ ख़ाली पड़े खेतों में खाने-पीने के बहुत सारे स्टॉल लगे हुए थे । अरुणाचल प्रदेश के विभिन्न गाँवों और विभिन्न जनजातियों के रोजमर्रा के खाने-पीने की चीजों का मज़ा लेने के लिए हम इन स्टालों की खाक छानने लगे । वहाँ मोमोज़, कॉफी, ब्राऊनी केक , स्थानीय पोका बीयर इत्यादि का जमकर लुत्फ़ उठाया गया ।
Artist Residency : जब पेट की भूख कुछ कम हुयी तो हम स्टेज के पास ऊँचे टीले पर बनी एक झोपड़ी की तरफ़ बढ़ गए, जिसके बाहर आर्टिस्ट रेजीडेंसी (Artist Residency) का बोर्ड लगा था । बाँस की टहनियों से बने बीसियों लैम्प आर्टिस्ट रेज़ीडेंसी को रोशन कर रहे थे । वहाँ जाकर पता चला कि आर्टिस्ट रेजीडेंसी प्रोग्राम के तहत देश-विदेश से रचनात्मक कार्य करने वाले उभरते कलाकारों से आवेदन मँगाए जाते हैं , जिसमें फोटोग्राफर, चित्रकार, कवि, संगीतज्ञ, शिल्पकार इत्यादि भाग ले सकते हैं । इनमें से 5-6 चुनिंदा उम्मीदवारों को बसर में लगभग एक महीने तक स्थानीय समुदाय के साथ रहने के लिए आमंत्रित किया जाता है । ये चुनिंदा कलाकार बसर के स्थानीय तौर-तरीक़ों और रीति-रिवाजों से प्रेरणा प्राप्त कर पारस्परिक सहयोग द्वारा बसर की मनमोहक संस्कृति को दुनिया के सामने पेश करते हैं ।
Tree Houses : आर्टिस्ट रेजीडेंसी से थोड़ा आगे पेड़ों के एक समूह के ऊपर दो बहुत ही सुन्दर ट्री हॉउस (Tree House) का निर्माण किया गया था । 50 रुपये का शुल्क देकर इन ट्री हॉउस के अंदर जाकर इनके आर्किटेक्चर की झलक देखने की व्यवस्था थी । पास ही बने एक स्टाल से खाने-पीने की चीज़ें ख़रीदने के बाद ट्री हॉउस में बैठकर संगीत का आनंद भी लिया जा सकता था ।
इधर-उधर घूमते फिरते डिनर का समय हो गया । हम GRK चेयरमैन के घर पहुँचे, जहाँ डिनर से पहले गीत-संगीत का आयोजन था । यही पता चला कि बसर को जिला मुख्यालय बनाने की स्थानीय निवासियों की लम्बे समय से चल रही माँग को सरकार ने मान लिया था और बसर अरुणाचल प्रदेश के नवनिर्मित जिले ‘लेपा राडा’ का जिला मुख्यालय बनने वाला था । डिनर के बाद BasCon 3 में पहले दिन की गहमागहमी तो शाँत हो गई, लेकिन बसर में अभी दो दिनों का धूमधड़ाका बाक़ी थी, जिनके बारे में आप इस शृंखला के भाग 2 ( बसर में BasCon 3 की धूम) में पढ़ सकते हैं ।
क्या बात कही कि चिल्ला चिल्ला के बताऊं की अरुणाचल में अनजानी दुनिया बसर…गालों जनजाति के और उसके थोड़े रीति रिवाज गुमी से पता चले है तबसे बसर जाना है…आपने बहुत अच्छे से बसर के बारे में बताया है….GRK का बसर में उल्लेखनीय योगदान है…बढ़िया शानदार लेख..
एक अनछुए जगह की शानदार जानकारी देने के लिये आभार.
धन्यवाद सर जी
सुंदर लेखन शैली पूर्वोत्तर के बारे में पढ़ना हमेशा बहुत प्रतीक्षित रहता है कोई सारगर्भित लेख मिल जाए तो जागरूकता व उत्सुकता जाने की होने लगती है ।
पूर्वोत्तर भारत एक अनछुआ सा क्षेत्र लगता है और इस पर लेख भी बड़ी सीमित मात्रा में मिलते हैं, ख़ास तौर से हिन्दी भाषा में । इसलिए प्रयास कर रहा हूँ, यहाँ के बारे में ज़्यादा से ज़्यादा लिखने का ।