गंगा, यमुना और सरस्वती की पावन धरती प्रयागराज में आए हुए हमें पाँच महीने हो चुके हैं। छोटे-छोटे ठहराव को छोड़ दिया जाए तो प्रयागराज कायदे से दिल्ली और गुवाहाटी के बाद मेरी तीसरी कर्मभूमि है। आखिरी बार जब प्रयागराज आया था तो यह इलाहाबाद के नाम से आबाद था। मैं अक्सर यही सोचता था कि इलाहाबाद प्रयागराज तो हो गया, लेकिन दिल से इलाहाबाद को निकाल पाना बड़ा ही मुश्किल होगा। लेकिन पाँच महीने बाद लगता है कि मुझे प्रयागराज की आदत होती जा रही है। हालांकि मुगलसराय के साथ मैं ऐसा सामंजस्य नहीं बिठा पा रहा । मुगलसराय को कोई कितना भी पंडित दीन दयाल उपाध्याय नगर बोल दे, लेकिन मुगलसराय मेरे लिए मुगलसराय ही है।

Subhash Chauraha, Prayagraj
प्रयागराज का सुभाष चौराहा

दिल्ली और गुवाहाटी में रहते हुए 16 वर्षों की नौकरी का मेरा लगभग पूरा हिस्सा ही शिफ्ट वाली ड्यूटी करते हुए बीत गया। कभी सुबह की शिफ्ट, कभी दोपहर वाली शिफ्ट तो कभी रात वाली। इस तरह की ड्यूटी में समय तो बहुत मिल जाता है, लेकिन कोई तय रूटीन नहीं होने से शरीर की दुर्दशा हो जाती है। साथ ही साथ ऐसी ड्यूटी के कारण सामाजिक ताना बाना भी बिखरा सा रहता है, जिसमें ऐसा हो सकता है परिस्थितिवश किसी आवश्यक त्यौहार पर आप अपने परिवार को समय ना दे पायें, किसी के जन्मदिन तो किसी की शादी में पहुंचने से वंचित रह जाएं।

Night Market, Prayagraj
नाइट मार्केट, प्रयागराज

प्रयागराज में शिफ्ट ड्यूटी से छुटकारा मिल गया और बहुत सारे आमजनों की तरह मुझे भी 9.30 से 6 बजे वाले रूटीन में बंधना पड़ा। एक ऐसा इन्सान जिसने नौकरी का ज्यादातर हिस्सा शिफ्ट ड्यूटी करने में निकाल दिया हो, उसको शुरू शुरू में तय रूटीन वाली यह ड्यूटी बहुत कष्टकारी प्रतीत होती है। परिवारवालों को भी सामंजस्य बिठाने में थोड़ा समय लग जाता है। यही सब मेरे साथ भी हुआ, हालाँकि समय के साथ चीजें बेहतर होती गई।

Sunrise over Ganga River in Prayagraj
प्रयागराज में गंगा किनारे की सुबह

प्रयागराज में आने पर नौकरी में एक और बड़ा परिवर्तन यह आया कि सीधे-सीधे वास्तविक हवाई जहाजों को नियंत्रित करने की जगह अब मुझे यहाँ प्रशिक्षक के तौर पर काल्पनिक सिमुलेटर वाले जहाजों से काम चलाना पड़ेगा। वास्तविक जहाजों को नियंत्रित करते समय हमेशा सतर्क रहने और त्वरित निर्णय लेने की जरूरत होती है और आपके पास गलती करने की कोई गुंजाइश नहीं होती है। इस तरह के कार्य के दौरान आपके सही-गलत निर्णयों और निर्देशों पर सैकड़ों जिंदगियाँ निर्भर करती हैं। एक एयर ट्रैफिक कंट्रोलर के रोल में कान पर हेडसेट लगाते ही आप रोमांच की अलग दुनिया में पहुंच जाते हैं। वह रोमांच और रफ़्तार की एक अलग दुनिया है, जहाँ दांव पर बहुत कुछ लगा होता है । ख़राब मौसम और आपात स्थितियों में तनाव एक प्रेशर कुकर की तरह हो जाता है और तब जिसने अपने स्नायु तंत्रों को नियंत्रित कर लिया, अपनी आवाज और धड़कनों को काबू में कर लिया, वही उस दबाव में निखर कर सामने आ पाता है।

एयर ट्रैफिक कन्ट्रोलर होना कैसा लगता है? What It’s Like To Be An Air Traffic Controller?

लेकिन सिमुलेटर वाली नौकरी में इन सब बातों का दबाव नहीं रहता है और जिन्दगी में एक ठहराव आ जाता है । प्रशिक्षक के रूप में यहाँ एक अलग तरह की चुनौती होती है, जिसमें आपको अपने अनुभवों के आधार पर नए-पुराने प्रशिक्षुओं को एयर ट्रैफिक कंट्रोल के उस रोमांच के लिए तैयार करना होता है, जिसमें वो सही और गलत के निर्णय और उनके परिणामों को समझते हुए भारत को दुनिया के एविएशन मानचित्र पर ऊंचे पायदानों पर रख सकें।

वास्तविक घर के पास होने की वजह से प्रयागराज कभी अनजाना नहीं रहा। इसलिए गुवाहाटी से यहाँ आकर सेटल होने में किसी प्रकार की दिक्कत नहीं हुई। ईश्वर की कृपा से बड़ी बेटी का एडमिशन भी आराम से एक अच्छे स्कूल में हो गया। गुवाहाटी से निकलने के बाद जून के महीने में प्रयागराज की धधकती गर्मी ने शुरू में तो जरूर परेशान किया, लेकिन धीरे-धीरे सब सामान्य लगने लगा। इसके इतर थोड़ी परेशानी शहर के ट्रैफिक से भी हुई, जिसमें लोगों को जहाँ मौका मिले उधर ही गाड़ी, बाइक, ई-रिक्शा इत्यादि घुसाते देखा। पहले ही महीने में कार में 3-4 स्क्रैच आ गए, लेकिन फिर इस शहर के ट्रैफिक की आदत हो गई।

यहाँ शिफ्ट होने का एक फायदा यह हुआ कि गाँव-घर से जो दूरियाँ हो गई थी, वो समाप्त होने लगी। कहां साल में 2-3 बार घर पहुंचने के लिए तरसते थे, अब यहाँ हर महीने, हर त्यौहार पर घर के चक्कर लगाने लगे। वर्ष 2007 के बाद शायद 2024 ही ऐसा साल है, जब मुझे होली, दिवाली, दशहरा, रक्षाबंधन इत्यादि सारे प्रमुख त्यौहार अपने पैतृक घर पर माता-पिता के साथ मनाने का मौका मिला। रिश्तेदारी, यारी-दोस्ती सब कुछ पटरी पर पहुंचती लग रही है।

Aazad Park, Prayagraj
आजाद पार्क, प्रयागराज

व्यक्तिगत जीवन में सेटल होने के बाद मैंने घूमने पर ध्यान केंद्रित करना शुरू किया। शुरुआत तो गंगा और यमुना के संगम पर 2-3 चक्कर लगाकर हुई। साथ ही साथ बड़े हनुमान जी मंदिर, अलोपी माता मंदिर, नाग वासुकी मंदिर, कल्याणी देवी मंदिर जैसे प्रमुख मंदिरों के दर्शन किए। अंग्रेजों की विरासत के रूप में इलाहाबाद की अंग्रेजी नाम वाली सड़कों पर घूमा, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, सिविल लाइंस, आजाद पार्क और चौक जैसी जगहों से रूबरू हुआ।

Sangam Kshetra, Prayagraj
संगम के पास, प्रयागराज

प्रयागराज से बाहर निकलने की शुरुआत हुई तो पहला नंबर कौशाम्बी में स्थित बौद्ध धर्म के खंडहरों, अशोक स्तंभ और जैन मंदिरों का लगा।आमतौर पर पर्यटकों की भीड़ से उपेक्षित रहने वाले कौशाम्बी की खूबसूरती बारिश के मौसम में देखते ही बनती है। हालाँकि प्राचीन काल में बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण पड़ाव होने के बावजूद यहाँ पर्यटक सुविधाओं का स्पष्ट अभाव नजर आता है।

Buddhist Ruins at Kaushambi with Ashoka Pillar
कौशांबी के प्राचीन अवशेष (दूर स्थित अशोक स्तम्भ)

घूमने की कड़ी में अगला पड़ाव मध्य प्रदेश के रीवा जिले में स्थित तीन जल प्रपात क्योटी जल प्रपात, चचाई जल प्रपात और पूर्वा जल प्रपात थे। इन तीनों जल प्रपातों पर मैं पहले भी जा चुका था । क्योटी और पूर्वा की सुंदरता तो देखते ही बनती है, लेकिन चचाई अब सूख चुका है। क्योटी में नदी के पास नहाने में भी बहुत मजा आता है। सूख जाने के बावजूद चचाई के आसपास की घाटियां मनमोहक लगती हैं।

Purva Falls, Rewa, Madhya Pradesh
पूर्वा जलप्रपात, रीवा, मध्य प्रदेश

प्रयागराज के पड़ोसी राज्य बिहार का एक प्रसिद्ध तीर्थ गया: गया तीर्थ की महिमा और फल्गु नदी की पीड़ा

जल प्रपात घूमने की अगली कड़ी में एक दिन मैने दोस्तों के साथ चन्दौली जिले में चंद्रप्रभा वन्यजीव अभयारण्य में स्थित देवदरी और राजदारी जल प्रपात घूमने का मन बनाया। कई वर्षों के बाद अपने बचपन के दोस्तों के साथ यह यात्रा भी अविस्मरणीय बन गई।

Devdari Falls in Uttar Pradesh
देवदरी जलप्रपात, उत्तर प्रदेश

जब से प्रयागराज आया हूँ, बनारस जाने के दसियों अवसर मिले। लेकिन हर बार शहर की भीड़-भाड़ से बचते हुए मैं रिंग रोड पकड़कर सीधे अपने पैतृक आवास पर निकल जाता था। जीवन में जिस शहर को जीने की चाह सबसे ज़्यादा रही हो, जिसकी गलियों में भटकने से सुकून महसूस होता है, उसी शहर से यूँ कतरा-कतरा के भागते हुए निकल जाना हमेशा अखरता है। इसलिए जब देव दीपावली पर बनारस को क़रीब से देखने का मौक़ा मिला तो मैं यह मोह छोड़ नहीं पाया। संयोग से देव दीपावली के दिन एक छुट्टी और वो भी शुक्रवार होने से मुझे तीन दिन की लगातार छुट्टियाँ भी मिल गईं। फिर क्या था, मैं निकल पड़ा बनारस की ओर । बनारस- मोक्षस्थली; बनारस- औघड़, अवधूत और फ़क़ीरों का शहर, बनारस- जहाँ मृत्यु एक जश्न है और जीवन एक मस्ती।

Keoti Falls, Rewa, Madhya Pradesh
केवटी (क्योटी) जलप्रपात, रीवा, मध्य प्रदेश

कहने को तो यह सब घुमक्कड़ी दिल्ली में शुरू हुई। वह दिल्ली ही थी जिसने पैरों में चक्करघिरनी लगाई और हौसलों को एक नई उड़ान दी। लेकिन उसके पहले कुएँ के मेढक ने खुली हवा में साँस लेना बनारस में ही सीखा। 12वीं के बाद पास के एक उनींदे क़स्बे से काशी हिंदू विश्वविद्यालय के उस त्वरित सफ़र ने मेरे सपनों को नए पँख लगा दिए थे।

Beautiful ghats of Varanasi
बनारस के घाट

देव दीपावली की लोकप्रियता तो इधर कुछ सालों में बढ़ी है, लेकिन मेरा और इसका साथ तो करीब 24 वर्ष पूर्व का है। 2001 में मैं काशी हिंदू विश्वविद्यालय का एक छात्र था। लगभग हर शाम को अस्सी घाट घूमना या लंकेटिंग करना (BHU के बाहर लंका पर घूमना) हमारा सबसे पसंदीदा काम था। एक दिन शाम को मैं लंकेटिंग के बाद वापस अपने हॉस्टल की तरफ़ लौट रहा था, जब मैंने छात्रों के हुजूम के हुजूम विश्वविद्यालय से बाहर निकलते देखें। उत्सुकतावश मैंने मुख्य द्वार पर खड़े गार्ड से पूछ लिया कि वे सारे लोग किधर जा रहे थे। वहीं मेरा परिचय बनारस की देव दीपावली से हुआ। उसके बाद के वर्षों में भी 3-4 बार देव दीपावली देखने का अवसर प्राप्त हुआ। लेकिन 24 वर्षों के इस सफ़र में समय के साथ इस आयोजन की भव्यता और भीड़ भड़ती ही गई।

Dev Deepawali decoration at Varanasi
वाराणसी मे देव दीपावली की सजावट

कुल मिलाजुलाकर प्रयागराज में शुरू के पाँच महीने बहुत ही अच्छे से बीते। नई जगह सेटल होने में थोड़ा समय तो लगता है, लेकिन धीरे-धीरे सब कुछ पटरी पर आ रहा है। घूमने की कई सारी योजनाएं दिमाग में बन चुकी हैं, जिससे लग रहा कि आने वाले समय में घूमने के कई अवसर मिलेंगे। अभी तो पटना, उत्तराखंड, चित्रकूट, लखनऊ, कोलकाता इत्यादि की यात्राएं एक के बाद एक होने की संभावनाएं हैं।

Greenery in Kaushambi during Rains
बरसात के समय कौशांबी की हरियाली

इसके अलावा अगले साल की शुरुआत में जनवरी और फरवरी के महीने में प्रयागराज मे महाकुम्भ का आयोजन होना है । महाकुंभ के दौरान लाखों-करोड़ों लोग पवित्र संगम में डुबकी लगाने के लिए प्रयागराज की पावन धरती का रुख करते हैं । हर 12 वर्ष बाद लगने वाला महाकुंभ दुनिया भर के श्रद्धालुओं के समागम का साक्षी बनता है, जिसका लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं । महाकुंभ के इस आयोजन को भव्य और सफल बनाने के लिए पूरे प्रयागराज में जोर-शोर से तैयारियां चल रही हैं । कही सड़क खुदी पड़ी है, तो कही फ्लाइओवर उठाए जा रहे हैं, कहीं दीवारों पर कलाकृतियाँ उकेरी जा रही हैं । अभी तो पूरे शहर में अव्यवस्था का आलम है, लेकिन उम्मीद है कि महाकुंभ के आगमन तक प्रयागराज जगमगाने लगेगा और करोड़ों श्रद्धालुओं के स्वागत के लिए पूर्णतया तैयार हो जाएगा ।

बनारस की गंगा आरती के बारे में यहाँ पढ़ें: Ganga Aarti in Varanasi

इन सबसे इतर प्रयागराज में सबसे अच्छी बात यह हुई है कि मेरा फिर से लिखने का मन करने लगा है । यह एक बात मुझे पिछले कई सालों से कचोट रही थी कि मैने लिखना क्यों छोड़ दिया। गुवाहाटी में अनगिनत कहानियां होते हुए भी लाख कोशिशों के बावजूद मेरा लिखने का मन नहीं करता था। कहते हैं कि लिखते-लिखते हर किसी के जीवन में एक रचनात्मक अवरोध (Writer’s Block) आ जाता है। मैने भी गुवाहाटी में बहुत बार कोशिश की, लेकिन ज्यादा नहीं लिख पाता था। प्रयागराज तो महादेवी, निराला और धर्मवीर भारती जैसे दिग्गज साहित्यकारों की धरती रही है। इस पावन धरती की फिजाओं में एक अलग ही जादू है, जहाँ पहुंचते ही शब्द खुद ब खुद मिलने लगे हैं और किस्से-कहानियों में एक बार फिर से दिलचस्पी बढ़ने लगी है। अभी तो बस यही कामना है कि फिजाओं का यह जादू यूं ही बरकरार रहे ताकि मेरी लेखनी चलती रहे।

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