हर दिन की तरह तीसरे दिन सुबह भी वही कहानी शुरू हों गयी। तीनों लोग उठ तो चुके थे, लेकिन ठण्ड के कारण स्लीपिंग बैग से बाहर नहीं निकल रहे थे। पहले आप-पहले आप के चक्कर में एक बार फिर सुबह निकलने में देर हो गई।  वैसे तीसरे दिन का हमारा लक्ष्य तो युरुत्सु (Yurutsu) गाँव की तरफ बढ़ना था, लेकिन हमने सोचा कि वहाँ जाने की जगह रुम्बक (Rumbak) गाँव जायेंगे, ताकि वहाँ से एक गाइड और खच्चर का जुगाड़ हो सके ।

भारी बैगों की वजह से चलना बहुत मुश्किल हो रहा था। इस बार बैग हल्का करने की गाज कई सारे बिस्कुट के पैकटों पर गिरी। उन्हें बैग से निकाल कर हमने एक किनारे टांग दिया, ताकि कोई गाँव वाला आकर ले जाना चाहे, तो ले जा सके । बाद में जब हम वापसी की यात्रा कर रहे थे तो ज़िंगचेन के पास ही एक औरत हमारे पास आई और बताया कि उसने वो सारे बिस्कुट के पैकेट ले लिए थे।

जिंगचेन गाँव में कैंपिंग स्थल
जिंगचेन गाँव में कैंपिंग स्थल

ज़िंगचेन गाँव के सामने से होकर हम उन खेतों की तरफ गए, जहाँ दूसरी कैंप साईट है । जैसा कि मैंने पिछले पोस्ट में लिखा था कि दोनों ही कैंपिंग स्थल एक से बढ़कर एक हैं। 5-6 घरों वाले गाँव में बहुत सारे लोग अपने-अपने खेतों में काम कर रहे रहे। हर किसी के चेहरे पर मुस्कान थी और नज़र मिलने पर हर कोई या तो मुस्कुरा देता या जूले कहकर अभिवादन करता। शहरों से परे दुर्गम स्थानों में गाँवों की इस जिंदगी में किसी तरह का कोई भी बनावटीपन नही था।

जिंगचेन की सुंदरता को निहारती निगाहें
जिंगचेन की सुंदरता को निहारती निगाहें

सड़क पर गाड़ियों का आवागमन बता रहा था कि वहाँ बहुत सारे लोग आने वाले थे। लेह से स्पितुक गाँव होकर ज़िंगचेन की तरफ आने वाली यह सड़क ज़िंगचेन गाँव से एक किमी आगे हेमिस राष्ट्रिय पार्क के प्रवेश द्वार तक जाती है। वैसे हेमिस पार्क तो स्पितुक से ही शुरू हो जाता है, लेकिन पार्क का मुख्य क्षेत्र ज़िंगचेन के बाद शुरू होता है । सड़क भी रुम्बक नदी के किनारे पर समाप्त हो जाती है । पूरी तरह जमी हुई उस पहाड़ी नदी के किनारे 8-10 लोगों की अच्छी-खासी भीड़ लगी थी। पूछने पर पता चला कि बी बी सी का एक दल हेमिस के विश्वप्रसिद्ध बर्फीले तेंदुए पर कोई डॉक्यूमेंट्री बनाने के लिए पहुँचा था और वो सभी लोग हेमिस पार्क में ही कैंप लगाने वाले थे।

   हेमिस नेशनल पार्क के मुख्य क्षेत्र में प्रवेश के पहले की चेकपोस्ट
हेमिस नेशनल पार्क के मुख्य क्षेत्र में प्रवेश के पहले की चेकपोस्ट

उस जगह पर रुम्बक नदी का हिस्सा काफी चौड़ा है और पूरी तरह जमी नदी बर्फ की चादर पर चलने का अनुभव लेने के लिये बिल्कुल सटीक जगह है । हमने भी काफी देर तक जमी बर्फ पर चलने का मजा लिया। तब तक बी बी सी की टीम भी पहुँच गयी । अपने कन्धों पर बड़े-बड़े कैमरों के बैग लटकाये वो तेजी से आगे बढ़ गए । अपने बैगों के बोझ तले दबे हम लोग धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे ।

जमी रूम्बक नदी पर चहलकदमी
जमी रूम्बक नदी पर चहलकदमी

ज़िंगचेन से करीब 2 किमी आगे ही बढ़े होंगे, तभी सामने से एक आदमी आता हुआ दिखा । उसने बताया कि वह हेमिस पार्क का गॉर्ड है और हमारा परमिट मांगने लगा । लेकिन हमारे पास तो कोई परमिट ही नही था। जल्दबाजी में हमने जहाँ-जहाँ भी मारखा घाटी के ट्रेक के बारे में पढ़ा था, कहीं भी परमिट का कोई जिक्र नहीं था। हमने उसका पहचान पत्र देखना चाहा, तो उसने कहा कि पहचान पत्र नहीं है । हमें लगा कि कोई हमें बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रहा था, इसलिए हम भी अड़ गए कि रुम्बक जाने के लिए परमिट की आवश्यकता नहीं है और ना ही हमें रास्ते में ऐसा कोई साइनबोर्ड दिखा। उसने हमें आगे जाने से मना कर दिया और कहा कि अपने बड़े अधिकारियों को फ़ोन कर देगा। पिछले पोस्ट में मैं आप लोगों को यह बताना भूल गया था कि ज़िंगचेन गाँव तक बी एस एन एल का नेटवर्क आता है। बाकी सारे नेटवर्क स्पितुक गाँव से 3-4 किमी आगे साथ छोड़ देते हैं।

हेमिस पार्क में ऊँचे ऊँचे पहाड़
हेमिस पार्क में ऊँचे ऊँचे पहाड़

करीब 15 मिनट तक बहस होती रही। फिर हमें लगा कि नेशनल पार्क में तो बिना परमिट के प्रवेश की अनुमति नही है, तो हो सकता है उसकी बात भी सही हो। हमने कहा कि ठीक है, पैसे ले लो और परमिट बना कर दे दो । लेकिन उसने बताया कि वहाँ बीच में परमिट देने का कोई सिस्टम नहीं है और परमिट लेह शहर में वाइल्डलाइफ वार्डन के यहाँ से ही लेना पड़ेगा। अब समस्या यह थी कि हम परमिट लेने लेह नहीं जा सकते थे, क्योंकि लेह जाने, परमिट लेने और फिर वापस आने में दो दिन लगने थे । इधर, गॉर्ड हमें आगे जाने नहीं दे रहा था। कोई चारा नहीं होने की वजह से हमने निश्चय किया अब मारखा घाटी की योजना कैंसिल कर देते हैं। लेकिन अभी तो हम प्रकृति के खूबसूरत नजारों के बीच पहुँचे ही थे। इसलिए, लेह वापसी का मन बिल्कुल नहीं था।

रूम्बक को जाने वाली निर्माणाधीन सड़क
रूम्बक को जाने वाली निर्माणाधीन सड़क

हमने गार्ड से केवल रुम्बक तक जाने देने की अनुमति माँगी, उसने फिर मना कर दिया। फिर हमने कहा कि कोई ऐसी जगह बता दो, जहाँ बिना परमिट के जा सकें। उसने ज़िंगचेन से 3 किमी की दूरी पर पहाड़ी के दूसरी तरफ स्थित एक गाँव रूमचुक (Rumchuk) के बारे में बताया।

तभी दिमाग में एक विचार आया। मैंने उससे पूछा कि ये बी बी सी वाले कहाँ तक जा रहे हैं? उसने बताया कि आगे करीब 3 किमी दूर उनका कैंप लगेगा। वहाँ तेंदुएं दिखने का अच्छा चांस होता है । फिर मैंने भी उससे रिक्वेस्ट किया कि आज हमें भी वहीं टेंट लगा लेने दो, सुबह हम वापस चले जायेंगे। उसने मना कर दिया। मैंने फिर जोर डाला कि आज तो आपके द्वारा बताये रूमचुक गाँव तक पहुँच नही पायेंगे, इसलिए आगे ही कही कैंप कर लेने दे। कुछ सोचकर वह राजी हो गया। हमारी हालत देखकर उसने कहा कि लगता नहीं है कि आप लोग आज बी बी सी कैंप वाली जगह तक पहुँच पाओगे। फिर उसने हमें जाने दिया।

जिंगचेन से आगे रूम्बक की ओर बढ़ते कदम
जिंगचेन से आगे रूम्बक की ओर बढ़ते कदम

लगातार आगे बढ़ते हुए हम भी करीब 2 घंटे में वहाँ पहुँच गए। वो जगह उतनी भी दूर नहीं थी, जितना कि हमें गार्ड ने बताया था । वहाँ कुछ टेंट पहले से ही लगे थे । उनमें 2 टेंट तो गार्ड्स के ही थे, बाकि 3-4 बी बी सी या उनके सहायकों के थे । हमने भी एक अच्छी जगह देखकर अपना तम्बू लगा दिया ।

हेमिस पार्क में कैंपिंग
हेमिस पार्क में कैंपिंग

हर बार की तरह इस बार भी हमें पानी तलाशना था, लेकिन बगल में और भी टेंट्स होने से हमें यह काम बहुत मुश्किल नहीं लगा। इसलिए तनवीर जी को पानी का बंदोबस्त करने की जिम्मेदारी देकर हम दोनों आस-पास घूमने के लिए निकल गए ।

एक छोटी सी पहाड़ी पर बी बी सी वाले अपने कैमरों और दूरबीनों के साथ बर्फीले तेंदुएं की तलाश में लगे थे। हम उधर ना जाकर रुम्बक के रास्ते पर थोड़ा आगे बढ़ गए । ज़िंगचेन के आगे रुम्बक तक सड़क मार्ग का विस्तार किया जा रहा है, हालाँकि उस कार्य की गति बहुत ही धीमी है।  इधर-उधर घूमने के बाद हम अपने कैंप की तरफ आ रहे थे कि तभी एक भाई साहब पास के टीले पर दूरबीन लगाकर तेंदुए की तलाश करते नजर आये। हम भी उनके पास चले गए और उनकी दूरबीन इधर-उधर घुमाकर पहाड़ों की चोटियों का आनंद उठाया। उनके साथ साथ हम भी थोड़ी देर तक बर्फीले तेंदुए को तलाशते रहे। लेकिन हिमालय की बर्फीली ऊँचाइयों में स्वछंद विचरण करने वाले उस छलावे को ना तो दिखना था, ना ही वो दिखा।

बर्फीले तेंदुए को तलाशती बी बी सी की टीम
बर्फीले तेंदुए को तलाशती बी बी सी की टीम
बर्फीले तेंदुए की तलाश
बर्फीले तेंदुए की तलाश

थोड़ा समय वहाँ बिताकर हम वापस अपने टेंट की तरफ आ गए। वहाँ आकर तनवीर जी से पानी का जुगाड़ पूछा , तो पता चला कि पानी के लिए एक बार फिर संघर्ष करना था। उन्होंने बताया कि हमारे जाने के बाद वह पास वाले तम्बू में पानी मांगने गए थे। बी बी सी टीम के लिए खाना पका रहे लोगों ने बताया कि वहाँ पानी ही सबसे कीमती चीज है और उन्हें पीने के लिए आधा गिलास पानी थमा दिया । पानी का एकमात्र छोटा सा स्रोत था वहाँ। बर्फ में एक छेद करके करीब डेढ़ फ़ीट की गहराई में पानी तक पहुँचा जा सकता था। लेकिन वहाँ भी पानी की मात्रा बहुत कम थी। 2-3 गिलास में ही पानी खत्म हो जाता था और फिर थोड़ी देर तक पानी के रिस-रिसकर जमा होने का इन्तजार करना पड़ता था।

हेमिस नेशनल पार्क में पानी की तलाश
हेमिस नेशनल पार्क में पानी की तलाश

हमें लगा कि हो सकता है आगे बढ़ने पर पानी का कोई अच्छा स्रोत मिल जाये। गार्ड भी नहीं दिख रहा था कि उसी से पूछ ले। हम थोड़ी दूर तक गए, लेकिन पानी नहीं मिला। पूरी नदी ही जमी हुयी थी। फिर हमने जमी नदी के ऊपर की ताजा बर्फ को बटोरकर बर्तनों में भरा और फिर उसको गर्म कर थोड़ा और पानी प्राप्त किया।

बर्फ खुरचकर पानी प्राप्त करने की कोशिश
बर्फ खुरचकर पानी प्राप्त करने की कोशिश

हमारे स्टोव का वॉल्व ख़राब था, इसलिए खाना बनाना एक समस्या थी। वहाँ तो कोई होमस्टे भी नही था। बी बी सी टीम के तम्बू से उम्मीद थी कि शायद कुछ पैसे लेकर वही से खाने का इंतजाम हो जाये । लेकिन वहाँ जाने के पहले मैंने सोचा कि एक बार स्टोव को जलाने की कोशिश करनी चाहिए। किस्मत से स्टोव उसी समय बिना किसी परेशानी के जल गया, जब उसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी।

इस तरह हम खा-पीकर स्लीपिंग बैग में घुसकर सो गए। थकान की वजह से नींद तो अच्छी आई और ठण्ड का भी पता नही चला। लेकिन जब हम सोकर उठे तो टेंट की भीतरी सतह के बाहर अच्छी खासी बर्फ जमी हुई थी। डी के साहब का तो स्लीपिंग बैग भी बाहर से पूरी तरह गीला हो चुका था, लेकिन हमारे स्लीपिंग बैग्स के साथ ऐसा नहीं था। हमें लगा कि हो सकता है रात को सोते समय वो टेंट की सतह से चिपक कर सो गए होंगे, इसीलिए स्लीपिंग बैग गीला हो गया। बाद में गार्ड ने बताया कि रात में तापमान कम से कम -20 डिग्री सेल्सियस था। लेकिन हम तो आराम से सोये थे। मुझे लगा कि शायद हमारा शरीर कम तापमान के अनुकूल ढल रहा था। अब हमें एक बार फिर आगे के सफ़र पर रूमचुक गाँव की तरफ निकलना था, जिसकी कहानी अगले पोस्ट में जारी रहेगी।

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