“ओह बोरोबुदुर ! कितना इंतजार किया मैंने इस पल का, यह एक पल जब मैं तुमसे रूबरू हूँ । अंगकोरवाट के मंदिर और गीज़ा के पिरामिड के बाद अगर मैंने भारत के बाहर किसी को शिद्दत से चाहा तो वो तुम ही थे । हमें मिलना ही था एक दिन । थोड़ी देर जरूर लगी, लेकिन मुझे आना ही था ।”
बोरोबुदुर के महान, भव्य और गौरवशाली बौद्ध मंदिर के सामने पहुँचकर मैं जैसे मंत्रमुग्ध सा हो गया था । आखिर वो पल आ ही गया, जब मैं बोरोबुदुर से रूबरू हुआ । इंडोनेशिया में जावा द्वीप के मध्य भाग में स्थित शहर योग्याकार्ता (आम बोलचाल की भाषा में जोग्जा या जोगजकार्ता ) के पास स्थित बोरोबुदुर का महान मन्दिर स्थापत्य कला का एक बेहतरीन नमूना है । पूरब में स्थित मेरापी-मेराबू और पश्चिम में स्थित सुम्बिंग-सुंदोरो नाम के जुड़वा ज्वालामुखियों के साए में इसके अस्तित्व पर एक विकट संकट हमेशा मंडराता रहा, लेकिन वक्त के थपेड़ों को सहता बोरोबुदुर अपनी जगह पर डटा रहा । सैकड़ों सालों के बाद आज भी उसी भव्यता के साथ यह स्मारक दुनिया के कोने-कोने से हजारों लोगों को आकर्षित करता है ।
बोरोबुदुर केवल इंडोनेशिया का ही गौरव नही है, और ना ही यह केवल बौद्ध धर्म की महानता का प्रतीक है । बोरोबुदुर, पिरामिड या अंगकोरवाट जैसी कालजयी रचनाएं किसी देश, धर्म या समूह मात्र की नहीं होती हैं, ये इस खूबसूरत दुनिया की एक यशकीर्ति होती हैं । बोरोबुदुर जैसे स्मारक मानव सभ्यताओं का एक उत्सव हैं, हमारे पूर्वजों के अद्वितीय साहस के जीते-जागते प्रमाण हैं, जो समस्त विश्व को एक सूत्र में पिरोकर आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देते हैं । यह उन महानुभावों की दृढ इच्छाशक्ति ही थी, जिसने गाहे-बगाहे आग उगलते ज्वालामुखियों के बीच घने जंगलों से घिरी भूमि पर बोरोबुदुर जैसा भव्य मन्दिर खड़ा कर दिया ।
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उसी बोरोबुदुर के सामने पहुँचते ही मेरे शब्द खो से गए, नसों में एक अलग सी तरंग उठने लगी । कुछ ऐसा ही अनुभव तब भी हुआ था, जब मैंने अंगकोरवाट के विशाल प्रांगण में कदम रखा था और तब भी, जब मैं गीज़ा के पिरामिडों के सामने अवाक् सा खड़ा था । जब मैं डाइविंग सूट पहने सिलिंडर लेकर गहरे समन्दर में गोते मारता हूँ या एक बैग टाँगे हिमालय की ऊंचाईयों में भटकता हूँ, तब भी यही अनुभव होता है, शरीर में यहीं तरंगे उठने लगती हैं । बोरोबुदुर से रूबरू होना एक सपना था, ऐसा सपना, जो साकार हो उठा था । शायद इसीलिए वहाँ पहुँचते ही मेरे शब्द खो से गये ।
दोनों तरफ हरे-भरे पेड़ों और बीच में रंग-बिरंगे फूलों की क्यारियों से सुसज्जित रास्ते पर बोरोबुदुर के प्रांगण में मैं हजारों पत्थरों से बने उस पहाड़ की ओर बढ़ा । पत्थरों के उस पहाड़ की वास्तविक संरचना धीरे-धीरे प्रकट होती गई । सबसे पहले सामने की सीढ़ियां, फिर अगल-बगल की दीवारें, फिर बीसियों बुद्ध प्रतिमाओं को समेटे वर्गाकार चबूतरे और उनके ऊपर के गोलाकार चबूतरे और तब जाकर दिखा बोरोबुदुर का विहंगम स्वरुप, उम्मीद से भी बड़ा, विशाल और भव्य; इतना विशाल कि उसकी भव्यता को एक फोटोग्राफ में कैद करना नामुमकिन सा लगा ।
बोरोबुदुर मन्दिर का डिजाइन एक स्टेप पिरामिड जैसा है । एक के ऊपर दूसरा, फिर उसके ऊपर तीसरा, इस तरह से मन्दिर में कुल 9 प्लेटफॉर्म हैं, जिसमे से 6 वर्गाकार और 3 गोलाकार हैं । सबसे ऊपर केंद्र में एक गुम्बद है । मैं सीढ़ियों पर आगे बढ़ा और फिर एक-एक करके बोरोबुदुर के हर प्लेटफॉर्म की परिक्रमा लगाई, ताकि दीवारों पर उकेरी गई चित्रकारी को कैमरे में समेट सकूँ ।
पूरे मन्दिर परिसर में पत्थरों के नक्काशीयुक्त 2672 पैनल हैं । ये चित्रकारी मुख्यतः भगवान बुद्ध की जीवनी और उनकी शिक्षाओं पर आधारित है, कहीं-कहीं समकालीन जावा संस्कृति के बारे में भी चित्र उकेरे गये हैं । इनमें मंदिर, बाजार, राजाओं, रानियों, पुजारियों, भिक्षुओं इत्यादि के अलावा पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं के चित्रों की नक्काशी भी शामिल है । ऐसा माना जाता है कि पहले यह सारी नक्काशियाँ एकदम रंग-बिरंगी रही होंगी, लेकिन ज्यादा बारिश वाला क्षेत्र होने से धीरे-धीरे चित्रों से रंग गायब हो गए । बोरोबुदुर के मन्दिर के यह प्रस्तर चित्र बौद्ध धर्म से जुड़े दुनिया के सबसे बड़े और अपने आप में लगभग परिपूर्ण श्रेणी के चित्रों में आते है ।
ऊपरी प्लेटफॉर्म पर स्थित केंद्रीय गुंबद, तीन गोलाकार प्लेटफॉर्मों पर, छिद्रित स्तूपों में स्थित 72 बुद्ध मूर्तियों से घिरा हुआ है, हर स्तूप के अन्दर अलग-अलग मुद्राओं में भगवान बुद्ध की मूर्तियां प्रदर्शित हैं । पहले गोलाकार प्लेटफॉर्म पर 32 स्तूप, दूसरे पर 24 और तीसरे गोलाकार प्लेटफॉर्म पर 16 स्तूप हैं । ऊपर से नीचे तक, मंदिर परिसर में मूल रूप से 504 बुद्ध मूर्तियां थीं, जिनमे से 300 से अधिक तो अब क्षतिग्रस्त हैं, उनमे भी ज्यादातर तो सिरविहीन हैं । 19वीं शताब्दी में स्मारक को जंगलों के बीच में दुबारा खोजे जाने के बाद, बड़ी संख्या में उन मूर्तियो से बुद्ध के सिरों की चोरी हो गई, हालांकि बाद की खोजबीन में प्राप्त होने के बाद उनमें से कुछ अब दुनिया भर में फैले संग्रहालयों की शोभा बढ़ा रही हैं ।
बोरोबुदुर मंदिर के ऊपरी प्लेटफॉर्म से आसपास का दृश्य बड़ा ही लुभावना लगता है । जिधर देखो उधर बादलों से ढकी घाटियाँ , दूर तक फैले जंगल और धान के हरे-भरे खेत नजर आते हैं । ऊपरी प्लेटफॉर्म से ही मेरापी और मेराबू ज्वालामुखियों का विहंगम दृश्य दिखता है, लेकिन उस दिन पूरी घाटी ही बादलों से भरी पड़ी थी, जिसकी वजह से मैं ज्वालामुखी पर्वतों को देखने में सक्षम नहीं था ।
बोरोबुदुर मंदिर के आधार पर, एक छिपी हुई नक्काशी युक्त पैनल की दीवार है, जिसे हिडेन फुट (Hidden Foot) के नाम से जाना जाता है । हिडेन फुट में बौद्ध धर्म की विभिन्न अवधारणाओं को प्रदर्शित करने वाले कार्मिक कृत्यों से सम्बंधित 160 पैनलों का चित्रण हैं । ऊपरी प्लेटफार्म पर बने पैनलों के विपरीत, हिडेन फुट के पैनलों में तरह-तरह की यातनाओं और सजाओं का चित्रण है , जैसे दूसरों के बारे में गपशप के कारण सजा , कदाचार और हत्या के कारण दंड, नर्क में दंड पा रहे एक दोषी का चित्रण इत्यादि । इसके अलावा कुलीन परिवारों की रोजमर्रा की जिंदगी का भी चित्रण है । एक अन्य बाहरी दीवार बनाकर हिडेन फुट के इन सारे पैनलों को ढक दिया गया, जिसका उद्देश्य अभी भी एक रहस्य ही है । कुछ लोगों का मानना है कि स्मारक के आधार पर अतिरिक्त सहारा देने के लिए यह नई दीवार बनाई गई, क्योंकि पूरे मन्दिर के गिरने का खतरा था । कुछ लोगों का मानना है कि वास्तु शास्त्र के अनुसार हिडेन फुट में कुछ वास्तु दोष थे, इसलिए एक विस्तृत और सतर्कतापूर्ण डिजाइन से हिडेन फुट को छुपा दिया गया ।
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वर्ष 1890 में स्मारक के संरक्षण कार्यों के दौरान हिडेन फुट को अकस्मात ही देखा गया और फिर एक-एक करके इसके सभी 160 पैनलों को उजागर किया गया । काफी सोच विचार के बाद यह निश्चित हुआ कि हिडेन फुट को दुबारा से ढक दिया जाये । एक फोटोग्राफर से उन पैनलों की फोटोग्राफी करवाने के बाद 1891 में हिडेन फुट को दुबारा ढक दिया गया । इन फोटोग्राफ की प्रतियाँ बोरोबुदुर के संग्रहालय में प्रदर्शित हैं । वर्ष 1940 में जब जापान ने जावा द्वीप पर कब्जा किया तो हिडेन फुट के दक्षिण पूर्व कोने को तोड़ दिया गया, जिससे चार पैनल और पांचवें पैनल का आधा भाग एक बार फिर उजागर हो गये । ये साढ़े चार पैनल ही आज की तारीख में हिडेन फुट के एक हिस्से की कहानी कहते हैं । बाकी तो बोरोबुदुर के संग्रहालय में प्रदर्शित हिडेन फुट की तस्वीरें ही उसके छिपे रहस्यों को जानने का एकमात्र तरीका है ।
चारों ओर घूमने के बाद, पूरे मंदिर की एक फोटो लेने के लिए मैं मंदिर परिसर में एक कोने में गया । मैं मुख्य स्मारक से अच्छी-खासी दूरी पर था, फिर भी बोरोबुदुर की भव्यता और विशालता को एक फोटो में समेटना लगभग असम्भव सा ही लगा । अगर कोई ड्रोन से फोटो ले तो दूसरी बात है ।
बोरोबुदुर संग्रहालय: मुख्य मंदिर घूमने के बाद मैं बोरोबुदुर के पुरातात्विक संग्रहालय की तरफ बढ़ गया, जो मंदिर परिसर में ही कुछ सौ मीटर की दूरी पर स्थित है । बोरोबुदुर संग्रहालय, जिसे कर्मविभान्गा संग्रहालय भी कहा जाता है, अपने आप में एक विशाल परिसर है । इसमें बोरोबुदुर के हिडेन फुट के नक्काशीदार पैनलों की तस्वीरें, बोरोबुदुर के मन्दिर से अलग हुए पत्थर के बड़े-बड़े भाग, बोरोबुदुर और मध्य जावा के अन्य स्थानों से प्राप्त पुरातात्विक कलाकृतियों का अनूठा संग्रह है । संग्रहालय में 1975 से 1982 के बीच में यूनेस्को के मार्गदर्शन के तहत किये गये पुनर्निर्माण कार्यों के विस्तृत दस्तावेज भी प्रदर्शित हैं ।
संग्रहालय से निकलकर मैं EXIT साइनबोर्ड की ओर बढ़ा । लेकिन बाहर निकलना इतना आसान नहीं था । संकरी गलियों के दोनों तरफ दुकानों के बीच से गुजरता रास्ता बनारस की गलियों की याद दिलाने के लिए काफी था । दुकानों के बीच से गुजरते हुए एक के बाद एक कई सारे EXIT साइनबोर्ड मिलते गये और मैं आगे बढ़ता गया । पहले साइनबोर्ड से बोरोबुदुर परिसर से वास्तविक रूप से बाहर आने में करीब 15 मिनट लग गए ।
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नोट: 1. बोरोबुदुर घूमने की योजना बनाते समय यह ध्यान रखने योग्य बात है कि आप मन्दिर परिसर में सुबह-सुबह जितनी जल्दी हो सके, उतनी जल्दी पहुंच जाएँ । अगर आप होटल मनोहारा के बोरोबुदुर सूर्योदय वाले पैकेज का चुनाव करते हैं, तब तो मंदिर परिसर में सुबह 4.30 तक पहुँच ही जायेंगे । लेकिन अगर आपके पास यह पैकेज नहीं है या आप सूर्योदय फुनटुक सेतुम्बू (Phuntuk Setumbu) की पहाड़ी से देखना चाहते हैं, तो कोशिश करिए कि सुबह 6.00 बजे तक मन्दिर परिसर में पहुंच जाएँ । इस स्थिति में पर्यटकों की भीड़-भाड़ से परे बोरोबुदुर की भव्यता को शांतिपूर्ण ढंग से निहारने का अच्छा अवसर मिल जाता है । एक बार जब योग्याकार्ता से टूरिस्ट बसों में भरी पर्यटकों की भीड़ 8.00 बजे के करीब बोरोबुदुर पहुंचना शुरू करती है तो मंदिर परिसर में सिर्फ इंसानों का हुजूम नजर आने लगता है और नजर आता है सेल्फी स्टिक लिए पोज मारते लोगों का झुण्ड ।
नोट: 2. टिकट काउंटर से अधिकांश पर्यटक पेड़ों से घिरे खूबसूरत रास्ते पर पैदल चलकर ही मुख्य स्मारक तक जाना पसंद करते हैं , लेकिन पर्यटकों की सुविधा के लिए 5000 इन्डोनेशियाई रुपिया के शुल्क पर एक खिलौना ट्रेन भी मौजूद है , जो बोरोबुदुर परिसर में मुख्य स्मारक और संग्रहालय का भ्रमण कराती है ।
बोरोबुदुर का इतिहास: बोरोबुदुर का निर्माण किसने करवाया या इसके निर्माण के पीछे का उद्देश्य क्या था , इसके बारे में कोई लिखित प्रमाण नहीं है । ऐसा माना जाता है कि मध्य जावा में शैलेंद्र राजवंश ने अपनी कीर्ति के चरम पर वर्ष 800 ई में बोरोबुदुर का निर्माण करवाया । दुनिया के कई अन्य कालजयी स्मारकों की तरह ही बोरोबुदुर की कहानी भी अपने गौरव की चोटी पर पहुंचकर वक्त के थपेड़ों में खो जाने वाली है । अपने गौरवशाली अतीत की चोटी पर पहुँचने के बाद पिरामिडों की भव्यता को रेगिस्तान की रेत ने ढँक दिया , अंगकोरवाट के महान मन्दिरों को जंगल निगल गये और बोरोबुदुर के शानदार अतीत पर ज्वालामुखियों की राख बिछ गई । माना जाता है कि 14 वीं शताब्दी में जावा द्वीप में बौद्ध और हिंदू साम्राज्यों के पतन के बाद मंदिर को उसके हाल पर छोड़ दिया गया । कालांतर में पास स्थित मेरापी ज्वालामुखी की राख और आसपास जंगलों के विकास ने सदियों तक इस भव्य स्मारक को दुनिया की नजरों से ओझल बनाये रखा ।
यद्यपि मध्य जावा में इस्लाम के तेजी से बढ़ते प्रभाव के कारण बोरोबुदुर मंदिर का महत्व समय के साथ लुप्त सा हो गया, फिर भी स्थानीय निवासियों की लोक-कथाओं में इस मन्दिर की यादें हमेशा जीवित रही । 1814 में एक ब्रिटिश अधिकारी सर थॉमस स्टैमफोर्ड रैफल्स ने उन लोक कथाओं का बारीकी से अध्ययन किया और स्थानीय निवासियों की मदद से एक बार फिर जावा के घने जंगलों में बोरोबुदुर को खोज निकाला । जब सर थॉमस वहाँ पहुंचे तो मंदिर की हालत बहुत जीर्ण-शीर्ण थी, इसलिए मन्दिर के गिर जाने के खतरे के कारण वो किसी भी गैलरी को नहीं देख सके । यद्यपि सर थॉमस की खोज बोरोबुदुर के जीर्णोद्धार के बाद के व्यापक प्रयासों का अंश मात्र ही थी, फिर भी इस स्मारक के गौरव को पुनः दुनिया के सामने लाने का श्रेय उनको ही जाता है ।
सर थॉमस द्वारा स्मारक खोजे जाने के बहुत वर्षों बाद डच औपनिवेशिक साम्राज्य द्वारा वर्ष 1907 से 1911 के बीच इसके पुनर्निर्माण और बहाली के कई प्रयास किये गये, लेकिन धन की कमी के कारण सारे प्रयास अधर में ही लटक गए । इंडोनेशिया सरकार की अपील पर यूनेस्को ने वर्ष 1975 से 1982 के बीच बोरोबुदुर के पुनर्निर्माण और संरक्षण पर बड़े पैमाने पर कार्य किया, जिसके परिणामस्वरूप बोरोबुदुर अपनी वर्तमान अवस्था में पूरे गौरव के साथ फिर से खड़ा हो गया । 1991 में बोरोबुदुर को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया गया ।
बोरोबुदुर मंदिर परिसर में प्रवेश के लिए टिकट : साल 2017 में बोरोबुदुर मन्दिर प्रशासन द्वारा बोरोबुदुर और प्रंबानन ( Prambanan) के प्रवेश शुल्क में करीब 5 डॉलर की वृद्धि की गई। शुल्क वृद्धि के बाद की नवीनतम शुल्क दरें निम्नलिखित हैं:
बोरोबुदुर में सामान्य प्रवेश शुल्क: 25 अमरीकी डालर (325,000 इंडोनेशियाई रुपिया), सुबह 06:00 बजे से शाम 05:00 बजे तक
मनोहारा रिज़ॉर्ट द्वारा सूर्योदय टूर के साथ बोरोबुदुर में प्रवेश शुल्क: 450,000 इंडोनेशियाई रुपिया। सूर्योदय टूर के लिए प्रवेश सुबह 04:30 बजे से शुरू होता है। टिकट की कीमत में मंदिर का प्रवेश शुल्क, एक टॉर्च और हल्का-फुल्का स्नैक्स शामिल हैं।
बोरोबुदुर और प्रंबानन मंदिर के लिए साझा टिकट: 40 अमरीकी डालर ( 520,000 इंडोनेशियाई रुपिया) । जब तक कि आप बहुत जल्दी में नही हो, इस साझा टिकट को ना ही खरीदे तो अच्छा है ।
टिकट की उपरोक्त कीमतें केवल एक बार प्रवेश के लिए ही मान्य हैं । इंडोनेशियाई नागरिकों के लिए कीमतें अलग हैं। विदेशी आगंतुकों और इंडोनेशियाई नागरिकों के लिए टिकट काउंटर और प्रवेश द्वार अलग- अलग हैं। अंतरराष्ट्रीय पर्यटक अमरीकी डॉलर या इंडोनेशियाई रुपिया में शुल्क का भुगतान कर सकते हैं । अंतरराष्ट्रीय स्टूडेंट कार्ड और 3-10 साल के बीच के बच्चों के लिए 10 अमरीकी डालर की छूट उपलब्ध है । यह छूट सूर्योदय वाले टूर और बोरोबुदुर-प्रंबानन के साझा टिकट पर नही लागू होती है । कुछ साल पहले तक बोरोबुदुर-प्रंबानन साझा टिकट 48 घंटों के लिए मान्य था,लेकिन अब यह केवल 24 घंटे के लिए ही मान्य है । सिर्फ 24 घण्टे में ही बोरोबुदुर और प्रंबानन जैसे महान मंदिरों को घूमना बड़ी ही टेढ़ी खीर है ।
बोरोबुदुर मंदिर परिसर में भ्रमण का समय: बोरोबुदुर का मंदिर परिसर सामान्य जनता के लिए हर दिन सुबह 06:00 बजे से शाम 05:00 बजे तक खुला रहता है। अतिरिक्त शुल्क देकर रोजाना 04:30 बजे से मनोहारा रिजॉर्ट के सूर्योदय टूर का लुत्फ़ भी उठाया जा सकता है ।
पब्लिक ट्रांसपोर्ट द्वारा योग्याकार्ता से बोरोबुदुर तक कैसे पहुंचे?बोरोबुदुर, मध्य जावा में योग्याकार्ता शहर से करीब 40 किमी की दूरी पर स्थित है । योग्याकार्ता शहर में इस क्षेत्र का एक प्रमुख हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन है, इसीलिए यह शहर बोरोबुदुर के प्रवेश द्वार के रूप में काम करता है । इंडोनेशिया के सभी बड़े शहरों से योग्याकार्ता के लिए नियमित घरेलू उड़ानें उपलब्ध हैं । सिंगापुर और कुआलालंपुर से योग्याकार्ता के लिए अंतर्राष्ट्रीय कनेक्शन भी उपलब्ध हैं ।
योग्याकार्ता हवाई अड्डे से बोरोबुदुर तक सीधी सार्वजनिक “डामरी” बसें भी मिल जाती है, लेकिन उनकी उपलब्धता पर संदेह बना रहता है । बेहतर तो यही होगा कि योग्याकार्ता हवाई अड्डे से मागेलंग (Magelang) या मुंतिलन ( Muntilan) तक डामरी बसों से जाकर वहाँ से सार्वजनिक परिवहन के रूप में प्रयुक्त होने वाली छोटी वैन से बोरोबुदुर पहुँचा जाए ।
योग्याकार्ता शहर की सार्वजनिक बस सेवा को ट्रांसजोग्जा (TransJogja) के नाम से जाना जाता है । ट्रांसजोग्जा बस नम्बर 1A नियमित अंतराल पर सुबह 07:00 बजे से शुरू होकर हवाई अड्डे से शहर के केंद्र में स्थित मलिओबोरो (Malioboro) तक चलती हैं । मलिओबोरो से एक अन्य बस 2A पकड़कर योग्याकार्ता शहर के जोम्बोर बस टर्मिनल ( Terminal Jombor) तक पहुंचा जा सकता है । बोरोबुदुर की ओर जाने वाली सभी सार्वजनिक बसें योग्याकार्ता शहर में जोम्बोर बस टर्मिनल से ही मिलती हैं ।
ट्रांसजोग्जा बसों का किराया फ्लैट 3600 इंडोनेशियाई रुपिया है । एक बार टिकट लेने के बाद आप बिना टर्मिनल से बाहर निकले बसें बदल-बदलकर कहीं भी जा सकते हैं । पब्लिक ट्रांसपोर्ट द्वारा योग्याकार्ता से बोरोबुदुर तक पहुँचने में लगभग 2 घन्टे का समय लगता है । वैसे तो ट्रांसजोग्जा बसें सुबह 05:30 बजे से रात 9:30 बजे तक चलती हैं, फिर भी बोरोबुदुर के लिए बस पकड़ने हेतु जोम्बोर बस टर्मिनल पर जल्दी पहुंचना बेहतर है । मेरी यात्रा के दौरान मैं 04:00 बजे शाम को जोम्बोर पहुंचा और मुझे बोरोबुदुर के लिए कोई सीधी बस नही मिली । बाद में मैंने मुंतिलन के लिए एक अन्य सार्वजनिक बस पकड़ी और फिर मुंतिलन से बोरोबुदुर तक जाने के लिए एक टैक्सी किराए पर ली ।
बोरोबुदुर में ठहरने के विकल्प: वैसे तो बोरोबुदुर में रात्रि विश्राम के लिए उच्च कोटि और बजट दोनों तरह के कई सारे विकल्प हैं, लेकिन फिर भी मनोहारा रिज़ार्ट और पोंडोक टिंगल का उल्लेख मेरे ख्याल से जरूरी है:
1. मनोहारा रिज़ॉर्ट: पर्यटकों के बीच में काफी लोकप्रिय यह रिजॉर्ट बोरोबुदुर मन्दिर के परिसर में ही, मन्दिर से लगभग 200 मीटर की दूरी पर स्थित है । इसका संचालन बोरोबुदुर मन्दिर प्रशासन द्वारा किया जाता है । इसके बुकिंग अमाउंट में ही नाश्ता और बोरोबुदुर मन्दिर में 2 व्यक्तियों के प्रवेश का शुल्क शामिल होता है । लेकिन यह प्रवेश सूर्योदय के बाद का होता है । बोरोबुदुर से सूर्योदय देखना हो तो उसके लिए अलग से टिकट लेना पड़ता है, जो रिजॉर्ट में ही ट्रैवेल डेस्क से मिल जाता है । भीड़भाड़ के बढने से पहले बोरोबुदुर का लुफ़्त उठाने का यह एक अच्छा विकल्प है ।
2. पोंडोक टिंगल: बोरोबुदुर परिसर से करीब एक किमी दूर मुख्य सड़क पर ही कई तरह के विकल्पों से युक्त यह एक हरा-भरा सुन्दर होटल है । यहाँ की सबसे अच्छी बात है, मात्र 30000 इंडोनेशिया रुपिया प्रति व्यक्ति, प्रति रात्रि में डोरमेट्री की उपलब्धता । बोरोबुदुर के दिल में कम बजट में यात्रा करने वालों के लिए इससे अच्छा विकल्प हो ही नही सकता । डोरमेट्री में 6 बेड हैं, जिसे पुरुष और महिलाएं दोनों ही बुक कर सकते हैं । बाथरूम की व्यवस्था बाहर है, और करीब 4-5 बाथरूम को साझा करके रहना पड़ता है ।
नतमस्तक हु बोरोबुदुर मंदिरों की नक्काशी और खूबसूरती के लिए… हिडन फुट कही भारत के बोध मंदिरों में देखने को मिलता है क्या ?
नहीं, मैंने तो भारत के मंदिरों में अब तक इसके बारे में नहीं सुना ।