दिरांग , अरुणाचल प्रदेश के सबसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थल तवांग के रास्ते में स्थित एक खूबसूरत कस्बा, जिसे ज्यादतर पर्यटक अनदेखा कर आगे बढ़ जाते हैं । जब ज्यादातर लोग दिरांग को छोड़कर आगे ही बढ़ते हैं तो मैं यहाँ क्यों रुकूँ? मुझे भी क्या पता था कि यह छोटा सा कस्बा अपने आसपास कैसी-कैसी अनमोल धरोहरों को समेटे पड़ा है, इसलिए मैं भी दिरांग को अनदेखा कर आगे बढ़ गया । लेकिन, अगले 10 किमी की दूरी तय करने में ही ऐसे हालात बन गए कि ना चाहते हुए भी मुझे रात्रि विश्राम के लिए दिरांग में ही रुकना पड़ गया ।
मैं रुक तो गया, लेकिन उस समय भी मेरे मन में तवांग को लेकर कोई राय नहीं बन पा रही थी। तवांग जाऊं या ना जाऊं, यह सोच-सोचकर बड़ी दुविधा चल रही थी । इन सबके बीच ने तवांग के लिए शेयर्ड सूमो की एडवांस बुकिंग के लिए एक टूर ऑपरेटर से बात भी कर ली । लेकिन फिर समझ आया कि भागादौड़ी करके तवांग घूमने का कोई मतलब नही है । उससे अच्छा यही है कि दिरांग में रुककर आसपास की सैर की जाए और तवांग किसी अन्य यात्रा के लिए छोड़ दिया जाए । वैसे भी उस रास्ते पर दुबारा जाने की कोई वजह तो रहनी चाहिए ना, तो वह वजह तवांग ही सही ।
अरुणाचल प्रदेश के एक अन्य हिस्से में यादगार सड़क यात्रा : Legacy of The Stillwell Road
अब अगली दिक्कत थी कि दिरांग के आसपास के क्षेत्र में ऐसी कौन सी बातें थीं, जो मुझे एक दिन तक रोक सकती थीं? अपने होमस्टे के मालिक से बात की, इंटरनेट के मकड़जाले को खंगाला और एक दोस्त से बात की तो पता चला कि पास में ही सांगती वैली का एक गुमनाम सा स्वर्ग है, जो असम और अरुणाचल प्रदेश के लोगों को तो पर्यटन सीजन में आकर्षित करता है, लेकिन बाकी दुनिया की नजरों से ओझल ही रहता है । सर्दियों के मौसम में पूरी सांगती वैली साइबेरिया से आये मेहमानों से गुंजायमान हो उठती है, जिनमें ब्लैक नेक क्रेन (Black Neck Crane) सबसे प्रमुख हैं। इतनी सारी जानकारी मिलने के बाद मेरा अगले दिन सांगती वैली जाना तय हो गया ।
अगले दिन सुबह मैं दिरांग से 13 किमी की दूरी पर स्थित सांगती वैली की तरफ बढ़ा । दिरांग के मुख्य बाजार से नीचे उतरकर इंस्पेक्शन बंगला (आई.बी.) के बगल से एक रास्ता दिरांग नदी की तरफ जाता है। वहाँ से पुल पारकर दाएँ जाने वाली सड़क सीधे सांगती वैली की ओर जाती है । थोड़ा आगे जाने पर उसी सड़क से नीचे स्थित एक अन्य पुल की ओर एक सड़क निकलती है, जो आगे दिरांग जोंग से थोड़ा पहले बोमडीला-दिरांग मुख्य सड़क में मिल जाती है। कुछ और आगे जाने पर पहाड़ के किनारे से सड़क मुड़ती है, जहाँ से नीचे दिरांग नदी और सांगती नदी का संगम दिखता है । इस दूसरी नदी का नाम सांगती है या कुछ और, मुझे सही जानकारी नही है, लेकिन चूंकि यह नदी सांगती वैली से गुजरती है, तो इसे सांगती नदी ही लिख रहा हूँ।
सांगती की ओर जाने वाली सड़क ऊंचाई पर है, संगम बहुत नीचे पहाड़ की तलहटी में है । दोनों नदियों के संगम से आगे पहाड़ के किनारे-किनारे सड़क सांगती वैली की तरफ बढ़ती है। सड़क पर कभी-कभी इक्का दुक्का गाड़ियाँ दिख जा रही थी। ज्यादातर गाड़ियाँ सामान ढोने वाली थी, जो स्थानीय निवासियों के लिए सवारी गाड़ी की तरह भी काम करती थी, लेकिन उनके अलावा सांगती जाने के लिए और कोई सवारी गाड़ी जाती नही दिखी । इससे तो यही लगा कि पर्यटकों को सांगती पहुँचने के लिए ज्यादातर मौकों पर दिरांग से गाड़ी किराए पर ही लेनी पड़ेगी ।
अरुणाचल प्रदेश में सड़क यात्रा मतलब रोमांच का दूसरा नाम, ऐसी ही एक अन्य सड़क यात्रा: रोइंग से पासीघाट का कार से सफ़र
हवा में ठंडक तो थी, लेकिन धूप बहुत तीखी थी । आगे बढ़ने पर दो रास्ते मिले । मैं ऊपर पहाड़ी की तरफ जा रहे रास्ते पर बढ़ गया । वह एक पतला रास्ता था, इसलिए थोड़ी देर बाद ही समझ में आ गया कि वह सांगती का रास्ता नही हो सकता । आसपास कोई रास्ता बताने वाला मिल नहीं रहा था, इसलिए मैं आगे बढ़ता रहा । करीब 2 किमी चलने के बाद एक बाइक से 2 बन्दे पहाड़ी से नीचे आते हुए मिले । उन्होंने कन्फर्म किया कि सांगती का रास्ता नीचे से ही है । मैंने पूछा कि फिर यह रास्ता कहाँ जाता है ? उन्होंने बताया कि ऊपर पहाड़ी पर एक गाँव है और ऊपर सेब और आडू के बगीचे हैं । पहाड़ों पर सेब के बगीचे तो हमेशा से ही आकृष्ट करते रहे हैं , इसलिए वहाँ भी मुझे पहाड़ी के ऊपर वाले गाँव की तरफ जाने की एक वजह मिल गई ।
ऊपर जाने पर टमाटर और मक्के के कई सारे खेत मिले । थोड़ा आगे बढ़ा तो सेब और आडू के बगीचे भी मिलने लगे । कुछ पेड़ों पर लगे सेब अभी हरे ही थे, लेकिन आगे एक बगीचे में लाल- लाल सेब भी मिले । ऊपर से सामने नजर आ रही सांगती घाटी का विहंगम दृश्य दिल को मोहित कर देने वाला था ।
वहीं बाँस की खपच्चियों के साथ काम करते दो स्थानीय निवासी भी मिल गए । बातचीत में पता चला कि पहाड़ी पर बने वो खेत कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम के अच्छे उदाहरण हैं । पूरे गाँव में से जो भी चाहे पहाड़ पर जितना भी चाहे खेती कर सकता है , लेकिन जमीन किसी एक बन्दे की नहीं होगी । पूर्वोत्तर में अन्य जगहों की तरह वहाँ भी झूम खेती का प्रचलन तो है , लेकिन अरुणाचल प्रदेश के हरे भरे जंगल ज्यादा घने, पहाड़ ज्यादा ऊँचे हैं , इसलिए यहाँ झूम खेती उतने बड़े पैमाने पर नहीं होती है । इस वजह से जंगलों की प्राकृतिक सुन्दरता काफी हद तक बरक़रार है ।
आसपास के खेतों में आडू, सेब, कीवी इत्यादि के बगीचों के अलावा सब्जियों की खेती भी बड़े पैमाने पर होती है । खेतों की देखभाल के उद्देश्य से गाँव वाले खेतों के पास ही बाँस-बल्लियों की झोपड़ियां बना लेते हैं । बचपन में मैं अपने गाँव में देखता था कि टमाटर के खेत में बहुत सारे टमाटर नीचे लटकने पर मिट्टी और पानी के सम्पर्क में आकर सड़ने लगते थे । लेकिन वहाँ पहाड़ों पर बाँस की खपच्चियाँ टमाटर के पेड़ों के बीच -बीच में इस तरह से लगी थी कि टमाटर के नीचे लटकने का सवाल ही नहीं था । वह एक सीधा और सरल सा तरीका था , जिससे बहुत सारा टमाटर ख़राब होने से बच जाता था ।
पहाड़ी पर स्थित सेब और आडू के बगीचों से घूमकर मैं नीचे आ गया और एक बार फिर अपनी मंजिल सांगती वैली की ओर बढ़ चला । सांगती वैली में प्रवेश करते ही दिलो-दिमाग कहीं अटक सा गया । जब सेब के बगीचों वाली पहाड़ी से सांगती वैली को देखा था तभी सांगती वैली की सुन्दरता की एक दूरगामी झलक दिख गयी थी, लेकिन यहाँ तो जैसे एक हरा-भरा स्वर्ग मेरे आगे बिखरा पड़ा था । जिधर भी नजर घुमा लो, प्रकृति की ऐसी चित्रकारी दिखती मानो विधाता ने सांगती वैली को पूरी फुर्सत से सजाया हो । सांगती गाँव पहुँचते-पहुँचते लगने लगा कि एक दूसरी हरी-भरी दुनिया में कदम रख रहा हूँ । धान के हरे-भरे खेत, बीच में बहती नदी और फिर सांगती के चारों तरफ चीड़ के पेड़ों से ढँके ऊँचे-ऊँचे पहाड़, आँखों को उससे सुन्दर नजारा और क्या दिख सकता था । नदी घाटी में स्थित खेतों में स्थानीय निवासी धान की रोपाई कर रहे थे । थोड़ा ऊँची ढलानों पर टमाटर और मक्के की प्रमुखता के साथ अन्य सब्जियों के खेत थे।
सांगती के ज्यादातर निवासी मोंपा जनजाति के हैं और हीनयान बौद्ध धर्म के उपासक हैं । गाँव में कोई मोनेस्ट्री नही है । सड़क के किनारे पूर्वजों की याद में दिवालनुमा संरचना खड़ी करके उसमें लगे प्रार्थना चक्र (मणि चक्र ) जगह-जगह दिख जाते हैं । ज्यादातर पहाड़ी गाँवों की तरह ही सांगती गाँव के ज्यादातर घर दो मंजिला हैं, लेकिन हर जगह जहाँ निचली मंजिल में लकड़ी और पशुओं को रखा जाता है और ऊपरी मंजिल में परिवार के सदस्य रहते हैं, सांगती के ज्यादातर घरों में ऐसा नहीं दिखा । लकड़ियों के ज्यादातर ढेर तो घरों से बाहर ही लगे थे और निचले तल का उपयोग भी रहने में या किसी तरह के व्यवसाय में किया गया था । कुछ घरों में जरूर नीचे के हिस्से में पशुओं को बाँधा जाता है । घर के बाहर फूलों की क्यारियाँ या गमले में फूल लटकते रहते हैं ।
पर्यटन सुविधाओं के नाम पर गाँव में बस 2-3 होमस्टे हैं । गाँव के बीच में स्थित नदी पुल को पारकर दूसरे किनारे पर स्थित मैदान में आधुनिक सुविधाओं से लैस टेंट की भी व्यवस्था है । नदी के किनारे थोड़ा टहलकदमी करने के बाद मैं बाइक पर बैठकर सांगती वैली के आखिरी छोर की तरफ बढ़ गया, ताकि एक जगह से सांगती की खूबसूरती को कैमरे में कैद कर सकूं । वही लोहे के एक पुल के पास फोटो खीच रहा था कि एक स्कार्पियो गाड़ी बगल में आकर रुकी । बातचीत में पता चला कि वह महाशय सांगती के एक होमस्टे के मालिक थे और नदी के पार लगे लक्ज़री टेंट्स भी उन्ही के थे । उन्होंने ही बताया कि सांगती में स्थानीय पर्यटक तो आते रहते हैं , लेकिन बाहरी लोगों में अभी सांगती वैली का उतना प्रचार- प्रसार नहीं है, जिसकी वो हकदार है ।
अरुणाचल प्रदेश का एक और ख़ूबसूरत क़स्बा : रोइंग की सैर
सांगती वैली में कुछ घंटे बिताकर मैं वापस दिरांग की तरफ बढ़ चला । दिरांग नदी और सांगती नदी के संगम के आगे स्थित पुल से होकर एक रास्ता दिरांग के बाहरी हिस्से में स्थित दिरांग जोंग की ओर जाता है । दिरांग जोंग या दिरांग फोर्ट को प्राचीन समय में बोमडीला और आसपास के क्षेत्रों को बाहरी आक्रमणों से बचाने के लिए बनाया गया था । एक छोटी सी पहाड़ी पर पत्थर की दीवारों से घेरकर कई सारे घर बने हैं , जहाँ अब भी कई परिवार रहते है । इस पूरे घेरे की वर्तमान में सड़क से ऊंचाई मुश्किल से 50 फीट की होगी , हालाँकि 100-200 साल पहले यही जोंग एक पहाड़ी पर अच्छी ऊंचाई पर सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा होगा । कालांतर में इसका उपयोग एक जेल की तरह भी किया गया, जहाँ दिरांग के साथ-साथ अन्य जगहों से आये कैदियों को भी रखा जाता था । ज्यादातर घरों को बनाने में पत्थर और लकड़ी का इस्तेमाल हुआ है । पत्थर के मजबूत आधार और ऊपर लकड़ी के प्रयोग से बने कमरे और खिड़कियाँ हैं । दिरांग जोंग का पूरा क्षेत्र एक छोटी सी बस्ती जैसा दिखता है , जहाँ रोजमर्रा के कार्यों में व्यस्त लोग दिख जाते हैं । घरों की बनावट से कोई छेड़छाड़ नही होने से इसके अतीत की झलक दिख जाती है । हालाँकि, इतिहास के पन्नों के इतर दिरांग जोंग अब एक पर्यटक की दृष्टि से आकर्षक नहीं लगता है ।
दिरांग जोंग से आगे दिरांग टाउन की तरफ बढ़ने पर मोनास्टिक गेस्ट हाउस का एक बोर्ड मिलता है, जिसके साथ-साथ एक अन्य रास्ता ऊपर की तरफ जाता है । मैं भी उसी रास्ते पर बढ़ गया । ऊपर गेस्ट हाउस के पास में ही एक सुन्दर मोनेस्ट्री भी है । कभी यह मोनेस्ट्री दिरांग की सबसे प्रमुख मोनेस्ट्री रही होगी, लेकिन 2017 में नई मोनेस्ट्री के बन जाने से यहाँ जाने वालों की संख्या कम हो गई । वैसे दोनों ही गोम्पा बौद्ध धर्म के अलग-अलग सम्प्रदायों का प्रतिनिधित्व करते हैं । मोनेस्ट्री से दिरांग टाउन और दिरांग नदी के साथ-साथ ही आसपास की पहाड़ियों का भी सुंदर नजारा दिखता है । साफ-सुथरे मोनास्टिक गेस्ट हाउस में रात को ठहरने और खाने-पीने की उत्तम व्यवस्था है ।
मेरा अगला पड़ाव दिरांग का सबसे प्रमुख आकर्षण और नई – नई बनी टी डी एल मोनेस्ट्री (Thupsung DhargyeLing Monastery ) थी । 2017 में शुरू हुई यह मोनेस्ट्री स्थापत्य कला का एक शानदार नमूना है । पूरे परिसर में मुश्किल से 4-5 पर्यटक नजर आ रहे थे । गोम्पा परिसर में चारों तरफ एक अद्भुत सी शांति छाई हुई थी । रंग-बिरंगे सुन्दर फूल पूरे परिसर की शोभा में चार चाँद लगा रहे थे । गोम्पा के चारों तरफ हजारों मणि चक्रों ( Prayer Wheels) की एक लम्बी श्रृंखला है । मणि चक्रों को घुमाते हुए मैंने पूरे गोम्पा का एक चक्कर लगाया । मोनेस्ट्री से दिरांग टाउन और आसपास का नयनाभिराम नजारा मन को मोहित कर देने वाला था ।
वहाँ से निकलने के बाद घूमने के लिए दिरांग में बस गर्म पानी का सोता (Hot Springs) शेष रह गया था , तो मैं उधर बढ़ चला । हॉट स्प्रिंग सड़क से नीचे की तरफ स्थित है, जहाँ जाने के लिए सीढियां बनी हुई हैं । सड़क किनारे मोटरसाइकिल खड़ी कर मैं सीढ़ियों से उतरकर हॉट स्प्रिंग के पास पहुँच गया ।सामने दिरांग नदी के दूसरी तरफ पहाड़ों के बीच घाटी में खेतों और घरों का भव्य नजारा था । ऐसा लग रहा था मानो हरी मखमल की एक चादर बिछ गयी हो ।
लेकिन मेरे बिल्कुल बगल में स्थित गर्म पानी के सोते के पास स्थित नहाने के कुंडों की हालत बहुत ही दयनीय थी । पूरी यात्रा में कचरे का ऐसा ढेर मैंने वही देखा । नहाने के तीन कुंड में से दो कुंड तो बहुत ही गंदे थे और तीसरे में नाममात्र का पानी था । हर तरफ प्लास्टिक, चिप्स के पैकेट और बीयर की बोतलें बिखरी हुयी थी । कचरे के उस ढेर के बीच में नहाने की तो छोड़िये, हाथ – पैर भी धुलना पड़ जाये तो उबकाई आ जाएगी । मात्र एक साल पहले पूरे तामझाम के साथ बने हॉट स्प्रिंग की दुर्दशा निराशाजनक और सोचनीय थी ।
हॉट स्प्रिंग घूमकर मैं वापस दिरांग टाउन आ गया । दिरांग में अब कुछ करने को था नही और तवांग जाने लायक छुट्टियाँ बची नहीं थी, तो अगली सुबह मैंने वापसी की राह पकड़ी और बोमडीला की तरफ बढ़ गया । रास्ते में एक छोटा सा चक्कर लगाकर थेम्बांग (Thembang) हेरिटेज गाँव भी पहुँच गया । थेम्बांग और बोमडीला की यात्रा अगले पोस्ट में जारी रहेगी ।
सही कहा आपने तवांग के रास्ते मे दिरांग को लोग अनदेखा करके ही आगे बढ़ जाते है…यह आपने बिल्कुल सही कहा भाई संगति vally बाहर के लोग ज्यादा जानते भी नही है और जाते भी नही है…संगति में जाकर दिमाग अटक गया वैसे जगह बहुत खूबसूरत है…..मोनपा जनजाति हीनयान के अनुयायी है यह अच्छी बात पता चली…. संगति घाटी को प्रसिद्धि मिलना चाहिए क्योंकि यह 13 km road से अंदर होने की वजह स्व छूट जाती है…आपका लेख पढ़कर आत्मिक शांति मिली….धन्यवाद…