त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से क़रीब 76 किमी दूर स्थित अमरपुर त्रिपुरा के पूर्वी इलाक़े का एक प्रमुख क़स्बा है । उदयपुर से इसकी दूरी क़रीब 25 किमी है । त्रिपुरा राजघराने के 500 वर्षों से ज़्यादा के इतिहास में राजधानियाँ भी बदलती रहीं । उदयपुर की तरह अमरपुर भी त्रिपुरा राजवंश की पुरानी राजधानी रह चुका है । बंगाल की तरफ़ से होने वाले आक्रमणों से तंग आकर त्रिपुरा राजवंश के राजा अमर माणिक्य ने अपनी राजधानी को उदयपुर से बदलकर अमरपुर कर दिया था । उन्ही के नाम पर इस क़स्बे का नाम अमरपुर पड़ा । अमरपुर एक अच्छी ख़ासी आबादी वाला क़स्बा है, जहाँ देखने के लिए राजा अमर माणिक्य के महल के खंडहर और दो विशाल सरोवर (अमर सरोवर और फटिक सरोवर ) हैं । लेकिन अमरपुर के पास में ही गुमती नदी के किनारे छबिमुड़ा (Chabimura) नामक एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल है, जहाँ पहाड़ी की सीधी ढलानों पर बने देवी-देवताओं के चित्र पर्यटकों के आकर्षण का बड़ा केंद्र हैं ।

छबिमुड़ा के पास धान के खेत
छबिमुड़ा के पास धान के खेत

अपनी त्रिपुरा यात्रा के दौरान मैं एक दिन उदयपुर से दम्बूर झील की तरफ़ घूमने निकल, जो अमरपुर से क़रीब 50 किमी की दूरी पर है । जब मैं सुबह उदयपुर से दम्बूर झील के लिए निकला था, तो लगा कि सारा दिन उधर ही निकल जाएगा, इसलिए उस दिन मेरी छबिमुड़ा घूमने की कोई योजना नहीं थी । लेकिन दम्बूर से वापस लौटते समय अमरपुर पहुँचकर लगा कि अभी उदयपुर वापस लौटने के लिए बहुत समय बचा है, तो क्यों ना लगे हाथ छबिमुड़ा की तरफ़ भी निकल लूँ । बाद में यह निर्णय त्रिपुरा यात्रा का सबसे अच्छा अनुभव साबित हुआ ।

छबिमुड़ा के रास्ते में गुमती नदी का दृश्य
छबिमुड़ा के रास्ते में गुमती नदी का दृश्य

मैप के हिसाब से तो छबिमुड़ा अमरपुर से 8 किमी की दूरी पर है । लेकिन अमरपुर से रास्ता थोड़ा कंफ्यूजिंग सा लग रहा था । स्थानीय लोगों से पूछ-पूछकर मैं एक पतले लेकिन पक्के रास्ते पर आगे बढ़ता रहा । आसपास स्थित गाँवों के निवासी मुख्यतः जमातिया जनजाति के हैं । रास्ते के दोनों तरफ़ बाँस और मिट्टी के बने घर बड़े ही सुंदर लग रहे थे । गाँवों में कहीं- कहीं सब्ज़ी के खेतों को बाड़ों से घेर दिया गया था । कहीं-कहीं खेतों में धान की रोपाई करते गाँव वाले भी दिख जाते थे । ज़्यादातर लोग हिंदी समझ रहे थे और बोल भी रहे थे । चलते-चलते सड़क से नीचे गुमती नदी दिखी । नदी के पास बने हुए खेत, दूर-दूर तक दिखती हरियाली और गाँव में बने घर, सब कुछ मिलाकर सामने दिख रहे दृश्यों से आँखों को बड़ा सुकून मिल रहा था । कुछ दूर तक गुमती नदी का साथ बना रहा । फिर थोड़ा आगे जाकर छबिमुड़ा की तरफ जाने वाली सड़क पर एक बार फिर जंगल शुरू हो गए । लेकिन सड़क की चमक देखकर लग रहा था कि जैसे 2-3 महीने पहले ही बनाई गई हो । उस सड़क पर मैं एक अकेला राही चला जा रहा था, दूर-दूर तक किसी का नमोनिशान नहीं ।

छबिमुड़ा की तरफ़ जाती सड़क
छबिमुड़ा की तरफ़ जाती सड़क

आगे बढ़ते हुए मैं छबिमुड़ा के प्रवेश द्वार पर पहुँच गया । सामने एक बड़ा सा मैदान था, जिसमें कुछ गाड़ियाँ खड़ी थी । मैदान के परे गुमती नदी से एक बार फिर सामना हो गया । बग़ल में कुछ दूरी पर तेज़ संगीत बजाकर कुछ लोग खाना पका रहे थे । वो पिकनिक मनाने वालों का एक समूह था । गुमती नदी के दूसरे किनारे पर केले के बहुत सारे पेड़ थे और फिर उसके बाद दूर-दूर तक दिखते घने जंगल और उनके बीच से बहती गुमती नदी ।

छबिमुड़ा में गुमती नदी
छबिमुड़ा में गुमती नदी

नदी के किनारे एक घाट के पास 2-4 नावें खड़ी थी । मैं घाट की तरफ़ ही बढ़ गया । छबिमुड़ा में गुमती नदी के किनारे कालाझरी (Kalajhari) पहाड़ की एकदम खड़ी ढलानों पर देवी-देवताओं की आकृतियां उकेरी गई हैं । इनमें मुख्यतः शिव, विष्णु, कार्तिक, माँ दुर्गा इत्यादि के चित्र हैं । पहाड़ी पर उकेरीं गई आकृतियाँ नदी के दूसरे किनारे पर घाट से ही दिखाई पड़ती हैं, लेकिन उन्हें अच्छे से देखने के लिए नाव/मोटरबोट से ही जाना पड़ता है । मैं नदी किनारे पहुँचा ही था कि मुझे एक मोटरबोट में कुछ लोग बैठते हुए दिखे । मुझे लगा कि यही मौका है नही तो दुम्बूर की तरह मैं अकेला ही रह जाऊँगा । मैंने नाववाले से पूछा तो उसने थोड़ा इंतजार करने को कहा । जब सारे लोग बैठ गए, तब उसने कहा कि मैं भी नाव पर चल सकता हूँ, लेकिन 200 रुपये लगेंगे । मुश्किल से 100 मीटर दूर दूसरे किनारे पर दिख रहे चित्रों के लिए 200 रुपये बहुत ही ज्यादा लगे । मैंने कहा कि मैं 100 रुपये दूँगा । नाव वाला लड़का बिना किसी ना-नुकुर के मान गया और मुझे भी नाव में बैठा लिया ।

छबिमुड़ा में गुमती नदी का घाट
छबिमुड़ा में गुमती नदी का घाट

मोटरबोट से घाट छोड़ते ही दूसरे किनारे पर पहाड़ी पर बने चित्रों का पैनल अच्छे से नज़र आने लगता है । इन चित्रों में सबसे प्रमुख पंच देवता का पैनल है, जिसमें शिव, विष्णु, गणेश, कार्तिक और काली की आकृतियाँ उकेरी गयी हैं । कुल मिलाकर छबिमुड़ा में सैंडस्टोन की उन पथरीली पहाड़ियों में क़रीब 37 तरह की आकृतियाँ उकेरी गयी हैं । मोटरबोट आगे बढ़ने पर मुझे पता चला कि सामने दिख रहे चित्र छबिमुड़ा के मुख्य आकर्षण नहीं थे । छबिमुड़ा का सबसे प्रमुख आकर्षण नदी में क़रीब 20-25 मिनट तक नाव से चलने के बाद मिलने वाला था, जहाँ एक पहाड़ी की सीधी ढलान पर दस हाथों वाली महिषासुर मर्दिनी माँ दुर्गा की क़रीब 20 फ़ुट ऊँची आकृति उकेरी गई है ।

छबिमुड़ा में मूर्तियों का समूह
छबिमुड़ा में मूर्तियों का समूह

आगे बढ़ती नाव से नदी के दोनों तरफ़ स्थित घने जंगलों का नज़ारा दिख रहा था । उन जंगलों में बाँस के पेड़ प्रमुखता से थे । नदी से ऐसा लग रहा था, जैसे जंगल के वो अंधेरे स्थायी हों, और आज तक उनमें किसी के क़दम ही ना पड़े हों । वातावरण में पूर्ण रूप से शांति छायी हुई थी । गुमती नदी पर छबिमुड़ा से आगे कुछ दूरी पर एक बाँध बना हुआ है, जिसके कारण नदी का पानी यहाँ स्थिर दिखता है । स्थिर होने की वजह से यहाँ पानी ज़्यादा साफ़ नही है । कुछ आगे जाने पर हमने स्थानीय निवासियों को जंगल से बाँस इकट्ठा करते देखा। स्थानीय निवासी बाँस के पेड़ों को काटकर नदी में डाल देते और किनारे एक जगह बाँध कर रखते । फिर बजड़ों के तरह पानी पर तैराकर उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेज दिया जाता । घने जंगलों के बीच क़रीब 15 आदमियों से भरी हमारी मोटरबोट आहिस्ता- आहिस्ता आगे बढ़ती जा रही थी ।

गुमती नदी में मोटरबोट की सवारी
गुमती नदी में मोटरबोट की सवारी

जंगलों के बीच बहती नदी में चलते-चलते हम उस जाग पहुँच गये, जहाँ सामने पहाड़ी पर माँ दुर्गा की भव्य आकृति उकेरी गयी थी । दस हाथों वाली उस आकृति में माँ दुर्गा महिषासुर मर्दिनी के रूप में दर्शाई गयी हैं । नाव एक किनारे लगा दी गई और सब लोगों ने पास जाकर देवी के दर्शन किए ।

छबिमुड़ा में महिषासुर मर्दिनी माँ दुर्गा की आकृति
छबिमुड़ा में महिषासुर मर्दिनी माँ दुर्गा की आकृति

थोड़ी देर वहाँ बिताकर हम वापस चल पड़े । माँ दुर्गा की आकृति वाली जगह से थोड़ी दूर पहुँचने पर एक छोटी सी धारा के सामने नाव रुक गई । वहाँ पास में ही एक गुफ़ा थी । गुफ़ा तक पहुँचने के लिए पहले पानी से भरी एक छोटी धारा में पैदल चलना पड़ता है । फिर आगे थोड़ी दूर तक पत्थरों और चट्टानों पर चलना पड़ता है, जिनपर बहुत ही ज़्यादा फिसलन है । पत्थरों के बीच के संकरे रास्ते पर पत्थरों को थोड़ा-थोड़ा काट काटकर सीढ़ियाँ बनाई गई हैं । पास में बहते पानी के छोटे-छोटे झरने बड़े सुन्दर लगते हैं । लेकिन रास्ता इतना संकरा और फिसलन भरा है कि समझ में नही आता कि कैमरा सम्भाले या अपना शरीर । वहाँ से आगे एक संकरे रास्ते पर बाँस से बनी सीढ़ी पर चढ़कर आगे गुफ़ा तक पहुँच सकते हैं । गुफ़ा में बहुत अंधेरा था । हेड लैम्प और मोबाइल के टार्च को जलाकर हमने गुफ़ा के अंदर देखने की कोशिश की, लेकिन कुछ भी नज़र नही आया । गुफ़ा तो कुछ ख़ास नहीं लगी, लेकिन नदी किनारे से गुफ़ा तक का क़रीब 10 मिनट का रास्ता बड़ा ही मजेदार है ।

गुफ़ा को जाता रास्ता
गुफ़ा को जाता रास्ता

छबिमुड़ा के जंगलों में स्थित इन गुफ़ाओं और पहाड़ियों पर उकेरी गयी देवी-देवताओं की आकृतियों को किस उद्धेश्य से बनाया गया, किसने बनवाया जैसी बातों के बारे में कोई पुख़्ता जानकारी नही है । किवदन्तियों के अनुसार इन गुफ़ाओं में बहुत बड़े-बड़े साँप और अजगर रहते हैं, इसलिए इधर इंसानों का आना-जाना ना के बराबर ही रहा । फ़िलहाल तो उस समय हमें ऐसा कुछ भी नज़र नही आया ।

रास्ते में लकड़ी की सीढ़ी
रास्ते में लकड़ी की सीढ़ी

गुफ़ा घूमने के बाद हम वापस नदी तट पर खड़ी अपनी मोटरबोट के पास आ गए । वही एक स्थानीय आदमी अपनी खुख़री लिए जंगल में कुछ काम करने के उद्देश्य से घूम रहा था । मेरे सहयात्रियों से उसकी खुख़री माँगकर पास ही बाँस के पेड़ों से कुछ पतली-पतली बाँस की टहनियाँ जुटाई, जिसे वो शायद झाड़ू बनाने में प्रयोग करने वाले थे । उसके बाद हम सभी मोटरबोट में बैठकर वापस मुख्य घाट पर आ गए । घने जंगलों के बीच बहती गुमती नदी में क़रीब डेढ़ घंटे का यह सफ़र बड़ा ही मज़ेदार रहा । छबिमुड़ा के पास में देवतामुड़ा नामक पहाड़ी पर भगवान शिव का एक मंदिर बना है, जहाँ तक पहुँचने के लिए पहाड़ में ही काट-काटकर सीढ़ियाँ बनाईं गईं हैं । यह मंदिर भी श्रद्धालुओं में बहुत लोकप्रिय है, लेकिन समयाभाव के कारण मैं मंदिर तक नहीं पहुँच पाया ।

मोटरबोट से उतरने के बाद बढ़ी भूख लग गई थी । घाट के पास ही खाने-पीने की कुछ दुकाने हैं, जहाँ खाने में मैगी, चावल-दाल, सब्ज़ी, मछली जैसे विकल्प मिल जाते हैं । सामने एक बड़ा से मैदान है, जिसके किनारे बने फुटपाथ पर नदी के साथ चलते हुए दूर तक टहला जा सकता है । एक तरफ़ कई सारी गाड़ियाँ खड़ी थी और थोड़ी-थोड़ी दूर पर चद्दरों से घेरा बनाकर लोग खाना पका रहे थे और पिकनिक मना रहे थे । छबिमुड़ा में रात्रि विश्राम के लिए त्रिपुरा टूरिज्म का एक रेस्ट हॉउस भी है, जिसमें 4 कमरे हैं । थोड़ा समय नदी के किनारे बिताकर मैं वापसी की यात्रा पर निकल पड़ा ।

छबिमुड़ा पिकनिक स्पॉट का मैदान
छबिमुड़ा पिकनिक स्पॉट का मैदान

छबिमुड़ा से निकलने के बाद पेट्रोल की चिंता सताने लगी । स्कूटी में पेट्रोल किसी भी समय समाप्त हो सकता था । 04.30 बज चुके थे , इसलिए अंधेरा होने के पूर्व उदयपुर भी पहुँचना था । थोड़ा पूछताछ करने पर पता चला कि अमरपुर में दो पेट्रोल पंप हैं । जब मैं पहले पेट्रोल पंप पर पहुँचा तो वह खराब मिला । लेकिन थोड़ी दूर पर स्थित दूसरे पेट्रोल पंप पर पेट्रोल मिल जाने से जान में जान आई ।

अमरपुर में फटिक सागर
अमरपुर में फटिक सागर

फिर मैं अमरपुर से निकलकर उदयपुर के लिए चल पड़ा । पूरी कोशिश यही थी कि अँधेरा होने से पहले मैं माताबरी के पास स्थित गुनाबाती यात्री निवास पर पहुँच जाऊं । वापसी के समय भी रास्ता पहले जैसा ही वीरान था और गाड़ियों का आवागमन नाम मात्र का था, लेकिन अब उस रास्ते पर बिलकुल भी डर नहीं लग रहा था । दिन भर उन्हीं वीरानों में भटकते रहने के कारण मन का सारा डर ख़त्म हो चुका था । अँधेरा होते-होते मैं माताबारी पहुँच गया और यात्री निवास में पिछले दिन की तरह ही डोरमेट्री में एक बिस्तर ले लिया । लेकिन आज मेरे साथ तीन यात्री और थे । थोड़ा आराम करने के बाद मैं एक बार फिर त्रिपुरा सुंदरी मंदिर गया और वहाँ दर्शन किए ।

अगले दिन सुबह मुझे अगरतला वापस लौटना था, लेकिन वापसी के पहले मैं लगे हाथ सबरूम तक की यात्रा कर लेना चाहता था, जो कि उदयपुर से क़रीब 75 किमी दक्षिण में बांग्लादेश की सीमा पर था । सबरूम की तरफ़ बढ़ना, ट्रॉपिक आफ़ कैंसर (कर्क रेखा) को पार करना, पिलक में बौद्ध गोंपा के अवशेष और बाक़ी जगहों का भ्रमण मैं आप लोगों को अगली पोस्ट में कराऊँगा ।

पब्लिक ट्रांसपोर्ट द्वारा छबिमुड़ा कैसे जाएँ? पूर्वोत्तर भारत के कई हिस्सों की तरह ही त्रिपुरा में आदिवासी जनजातियों का बाहरी व्यक्तियों (ख़ास तौर से बंगाली समूह) से सांस्कृतिक विभिन्नताओं और अन्य स्थानीय मुद्दों को लेकर लम्बा संघर्ष रहा है, इसलिए अतीत में यहाँ भी कई सारे विद्रोही समूह बड़े पैमाने पर ऐक्टिव रहे हैं । यही वजह है कि अमरपुर, दम्बूर झील या छबिमुड़ा जैसी जगहों पर टूरिस्ट आने में कतराते रहे, जिसके कारण पर्यटन उद्योग हमेशा पटरी से उतरा ही रहा और पर्यटन सुविधाओं का उचित विकास नही हो पाया । लेकिन, अब हर तरफ़ शांति का माहौल है और पर्यटन उद्योग भी धीरे-धीरे गति पकड़ रहा है । इसी क्रम में छबिमुड़ा के लिए आने-जाने के बहुत ज़्यादा विकल्प नही हैं, ख़ास-तौर से जब आप पब्लिक ट्रांसपोर्ट से यहाँ पहुँचना चाहें । अगरतला से छबिमुड़ा जाने के लिए उपलब्ध विकल्प निम्नलिखित हैं :

पब्लिक बस/जीप: अगरतला से बस/जीप पकड़कर उदयपुर या फिर अमरपुर तक जा सकते हैं । अमरपुर से छबिमुड़ा के लिए कोई पब्लिक बस या शेयर्ड जीप नहीं मिलती । इसलिए बेहतर है कि अमरपुर से एक ऑटो/जीप रिज़र्व करके आगे की यात्रा की जाए । छबिमुड़ा पहुँचने पर गुमती नदी में सवारी करने के लिए मोटरबोट रिज़र्व कर सकते हैं या कई लोगों के साथ शेयर्ड मोटरबोट में बैठ सकते हैं ।

इसके अलावा अमरपुर से एक सीधी नाव लेकर गुमती नदी में नौकायन करूते हुए भी छबिमुड़ा तक जा सकते हैं । पहले यह विकल्प उदयपुर से भी मौजूद था, लेकिन हिरापुर के पास नदी पर बाँध बन जाने से यह विकल्प समाप्त हो चुका है ।

छबिमुड़ा घूमने के दौरान रुकने के विकल्प : छबिमुड़ा में प्रवेश द्वार के पास ही एक गेस्ट हाउस है, जहाँ रात्रि विश्राम के लिए चार कमरे मौजूद हैं । मेरे ख़याल से स्थानीय निवासी इस गेस्ट हाउस का को-आपरेटिव के सिद्धांत पर प्रबंधन करते हैं । बुकिंग के लिये नदी के पास स्थित किसी दुकान वाले से सम्पर्क किया जा सकता है है, जो आपको सही व्यक्ति तक पहुँचा देगा । सामान्य तौर पर छबिमुड़ा घूमने वाले यात्री पास-पड़ोस के स्थानीय निवासी ही होते हैं, जो दिन भर पिकनिक मनाकर शाम तक लौट जाते हैं । इसलिए वहाँ रात को क़मरा मिलने में कोई ख़ास दिक़्क़त नही होती है । इसके अलावा अमरपुर में फटिक सागर के किनारे ही सागरिका पर्यटन निवास (Sagarika Parjatan Niwas) है । थोड़ा दूर रहने की सोचें तो जतनबारी के पास नूतन बाज़ार में जतनबारी गेस्ट हाउस (Jatanbari Guest House) है । इन सबके अलावा उदयपुर में भी रहने के बहुतेरे विकल्प उपलबद्ध हैं ।

This Post Has 4 Comments

  1. Pratik Gandhi

    भाई शब्द नही है आपकी तारीफ के लिए…आप ऐसा त्रिपुरा घुमा रहे है जिसके लिए जुनून और सनक चाहिए….अकेले ही आप बहुत हिम्मत से घूम रहे है बहुत शानदार…छबीमुडा के पत्थरों पर अंकित यह आकृतियां वो गुफाएं बहुत अच्छी जगह लग रही है…पिलक के बुद्धा गोम्पा के अवशेष एआप मेरी घुमक्कड़ी प्यास को और बढ़ा रहे है….200 की बोट ride 100 में करके आपने दांबुरा की न बोटिंग करके भरपाई कर ली…शानदार लेखन..

    1. Solo Backpacker

      पूर्वोत्तर भारत में आया हूँ तो इधर का एक- एक कोना देखना तो बनता ही है, इसलिए जब भी समय मिलता है, बस निकल लेता हूँ ।

  2. Rohit Yadav

    एकदम बेहतरीन सीरीज लिखी है आपने। कई बार पढ़ चुका हूं आपका ब्लॉग। जनवरी में त्रिपुरा जाने का प्लान कर रहा हूँ इसलिए अब लगातार चौथी बार आपकी ये पूरी सीरीज पढ़ रहा हूँ। बेहतरीन।

    1. Solo Backpacker

      आपका बहुत-बहुत धन्यवाद । सुनकर अच्छा लगा कि आपको त्रिपुरा के लेख पसंद आए । आपकी यात्रा मंगलमय हो ।

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