बरसों से मेरे लिए चेरापूँजी एक कौतूहल का विषय रहा है । दुनिया में सबसे ज़्यादा होने वाली बारिश और नदियों पर पेड़ की जड़ों से बने पुल यह सब मुझे बड़ा अनोखा लगता था । फिर एक दिन वो आया जब मेरे क़दम पड़े बादल, बारिश और झरनों के शहर सोहरा में । दुनिया का सबसे बारिश वाला क्षेत्र, जिसे हम चेरापूँजी के नाम से जानते हैं, स्थानीय निवासियों के बीच सोहरा के नाम से प्रसिद्ध है । पहली यात्रा में तो सोहरा के बादलों ने दूर-दूर तक फैली घाटियों और भव्य लगने वाले झरनों को ऐसे ढक लिया कि लगा हमारा उधर जाना ही व्यर्थ हो गया, लेकिन भला हो सोहरा की गुफाएँ का जिसने यात्रा का रोमाँच बनाए रखा ।
अगर बारिश और बादलों से बचना है, तो चेरापूँजी घूमने का सबसे अच्छा समय सर्दियों में होता है, लेकिन तब चेरापूँजी के झरने पानी की एक पतली धार से लगते हैं । इसीलिए चेरापूँजी की एक और यात्रा के लिए मैंने फिर से बारिश के मौसम को ही चुना और तब क़िस्मत ने पूरा साथ दिया । बारिश के मौसम में हर तरफ़ का हरा-भरा विस्तार, घने और अनछुए जंगलों की हरियाली और शानदार झरनों का पूर्ण यौवन; चेरापूँजी की भव्यता, उसकी सुंदरता को क़रीब से देखने का इससे अच्छा अनुभव और कुछ नही हो सकता था । दिल को छू जाने वाले उसी अनुभव के आधार पर मैंने चेरापूँजी के पर्यटन स्थलों के बारे में यह लेख तैयार किया है, ताकि आप भी अपनी यात्रा के दौरान सोहरा की सुंदरता का भरपूर आनन्द उठा सकें ।
विषयसूची
- चेरापूँजी कैसे पहुँचे?
- शिलाँग से चेरापूँजी के रास्ते की अवस्था
- चेरापूँजी में कहाँ ठहरे?
- चेरापूँजी में खाने-पीने के स्थान
- चेरापूँजी के प्रमुख पर्यटन स्थल
चेरापूँजी कैसे पहुँचे?
चेरापूँजी मेघालय की राजधानी शिलांग से क़रीब 50 किमी की दूरी पर है । किसी भी तरफ़ से चेरापूँजी पहुँचने के लिए आपको सबसे पहले शिलांग पहुँचना पड़ेगा । भारत के अन्य हिस्सों से शिलांग की यात्रा के बारे में मैंने एक विस्तृत पोस्ट लिखी है, जिसे आप यहाँ पढ़ सकते हैं :
शिलांग से चेरापूँजी की यात्रा में लगभग दो घंटे लगते हैं । वैसे तो शिलांग से चेरापूँजी की यात्रा के लिए प्राइवेट टैक्सी किराए पर आसानी से मिल जाती है, लेकिन किफ़ायती तरीक़े से यात्रा करने के लिए शेयर्ड सूमो का प्रयोग करना ज़्यादा उचित रहेगा । शेयर्ड सूमो शिलांग में बड़ा बाज़ार/अंजलि सिनेमा ( Bara Bazar/Iewduh) के पास स्थित सोहरा टैक्सी स्टैंड के पास मिलती हैं । गूगल मैप में आप इसे चेरापूँजी सूमो स्टैंड ( Cherrapunji Sumo Stand) के नाम से खोज सकते हैं । यह जगह शिलांग के केंद्र पुलिस बाज़ार से क़रीब डेढ़ किमी दूर है ।
चेरापूँजी तक शेयर्ड सूमो का किराया प्रति व्यक्ति 70 रुपए है । वैसे तो चेरापूँजी के लिए सुबह 6 बजे से रात 8 बजे तक हर 10-15 मिनट में एक शेयर्ड सूमो मिल ही जाती है, लेकिन सूमो स्टैंड से आगे सामान्य तौर पर तभी बढ़ती हैं, जब उनमें दस यात्री हो जाते हैं । शिलांग से चेरापूँजी के व्यस्त रास्ते पर 10 यात्री मिलने में ज़्यादा समय नही लगता है । शिलांग से चेरापूँजी के बीच में दिन भर में 4-5 सरकारी और प्राइवेट बसें भी चलती हैं, जिन्हें आप पुलिस बाज़ार के बस स्टैंड या फिर लैतुमुखरा से पकड़ सकते हैं, लेकिन बस से अच्छा विकल्प आमतौर पर सूमो गाड़ियाँ ही हैं ।
शिलांग से चेरापूँजी के लिए मेघालय पर्यटन की शेयर्ड बस: पर्याप्त बुकिंग (कम से कम 15 पर्यटक ) होने पर मेघालय पर्यटन विभाग द्वारा शिलांग से प्रतिदिन (रविवार को भी) चेरापूँजी के लिए एक पर्यटक बस चलाई जाती है । यह बस शिलांग से सुबह 8 बजे चलती है और चेरापूँजी में मावदोक दिम्पेप वैली, रामकृष्ण मिशन, नोहकलीकाई झरना , मावसाई गुफ़ा, ईको पार्क , सेवेन सिस्टर्स झरना, थांगखरांग पार्क और का कोह रामहा का चक्कर लगाकर शाम को 6.30 बजे तक वापस शिलांग आ जाती है । इस बस का प्रति व्यक्ति किराया 350 रुपए है । इस बस की बुकिंग एक दिन पहले ही पुलिस बाज़ार में स्थित मेघालय पर्यटन के ऑफ़िस में करनी पड़ती है । सीट ख़ाली होने की स्थिति में तुरंत बुकिंग भी हो सकती है ।
शिलाँग से चेरापूँजी के रास्ते की अवस्था
मेघालय के ज़्यादातर हिस्सों में सड़कें इतनी अच्छी है कि गाड़ी या बाइक चलाने में ही यात्रा का मज़ा आ जाता है । शिलांग से चेरापूँजी तक हरी-भरी पहाड़ियों के बीच चमचमाती, टेढ़ी-मेढ़ी घूमती सड़क बहुत ही बेहतरीन स्थिति में है । बारिश या सर्दी के मौसम में सड़क के किनारे फैली हसीन वादियों में उड़ते बादल जब सड़क पर उतरते हैं, तो धुँध की चादर से एक अलग ही नज़ारा दिखता है।
चेरापूँजी में कहाँ ठहरे?
चेरापूँजी में ठहरने के लिए रिज़ॉर्ट, अच्छे होटल, गेस्ट हाउस, होमेस्टे इत्यादि पर्याप्त संख्या में मौजूद हैं , जिसमें से अधिकांश को ऑनलाइन बुक किया जा सकता है । कृपया इस बात का ध्यान रखें कि मेघालय में होटल और गेस्ट हाउस के किराए अपेक्षाकृत ज़्यादा हैं, इसलिए सामान्य तौर पर अच्छे होटल का दो व्यक्तियों के लिए प्रति रात्रि किराया 3000 रुपए और होमस्टे का प्रति रात्रि किराया 1500 रुपए तक माना जा सकता है । थोड़ा खोजबीन करने पर अकेले यात्रियों को साधारण से कमरे 600 रुपए तक भी मिल जाते हैं ।
चेरापूँजी में ज़्यादातर होमस्टे मुख्य क़सबे के अंदर ही हैं, लेकिन कुछ अच्छे रिज़ॉर्ट और गेस्ट हाउस ( जैसे जीवा रिसॉर्ट, सा-इ-मीका रिसॉर्ट,चेरापूँजी हॉलिडे रिसॉर्ट इत्यादि ) मुख्य क़सबे से दूर बने हुए हैं। ऐसे गेस्ट हाउस को बुक करते समय आपके पास ख़ुद का वाहन हो तो ज़्यादा उचित रहेगा अन्यथा एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने के लिए काफ़ी पैदल चलना पड़ सकता है । वैसे चेरापूँजी में किराए पर स्कूटी और साईकिल मिल जाती है, तो ऐसी जगह कमरा बुक करने से कोई साधन किराए पर ले सकते हैं ।
चेरापूँजी में खाने-पीने के स्थान
खाने पीने के हिसाब से चेरापूँजी में कई बेहतरीन विकल्प हैं । आप चाहे शाकाहारी हो या मांसाहारी, चेरापूँजी में खाने-पीने में कोई दिक्कत नहीं होने वाली । चेरापूँजी के रेस्टोरेंट में मुझे मावडोक व्यू प्वाइंट के पास स्थित ऑरेंज रूट्स बहुत पसंद है । इसके अलावा चेरापूँजी कस्बे के समीप स्थित नॉलग्रे और उसके सामने स्थित गोल्डन स्पून ढाबा भी खाने-पीने के अच्छे विकल्प हैं ।
चेरापूँजी के प्रमुख पर्यटन स्थल
आरवाह गुफ़ा (Arwah Cave)
यह गुफ़ा चेरापूँजी के टैक्सी स्टैंड से क़रीब 2 किमी की दूरी पर है । चेरापूँजी में प्रवेश करने से थोड़ा पहले ही मुख्य सड़क पर लगा आरवाह गुफ़ा का बोर्ड दिख जाता है । वहाँ से क़रीब डेढ़ किमी पैदल चलने पर गुफ़ा में प्रवेश शुल्क लेने वाला टिकट काउंटर मिलता है । टिकट काउंटर के बाद क़रीब 500 मी तक पत्थरों से बने हुए एक बहुत ही उम्दा फुटपाथ पर चलते हुए हम गुफ़ा की तरफ़ बढ़ते हैं । टिकट काउंटर से थोड़ा आगे चलने पर एक साइनबोर्ड मिलता है, जो आगे बढ़ने के दो रास्तों को दर्शाता है । एक रास्ता तो फुटपाथ वाला ही है और एक अन्य रास्ता (Rugged Trail) पहाड़ी के ऊपर से जाता है । अगर आप बच्चों या बुज़ुर्गों के साथ हैं तो बेहतर होगा कि फुटपाथ वाले रास्ते से ही आगे बढ़ें । फुटपाथ के साथ-साथ पहाड़ी के किनारे पूरे रास्ते में बाँस की रेलिंग लगी हुई है । बारिश के मौसम में बादलों के कारण छाई धुँध में जंगल के बीच से गुज़रना बहुत ही रोमाँचक प्रतीत होता है ।
आरवाह गुफ़ा के बारे में पर्यटक बहुत कम जानते हैं, इसलिए यहाँ मावस्माई गुफ़ा की तुलना में बहुत कम भीड़ होती है। गुफ़ा के अंदर कुछ हिस्सों में प्रकाश की व्यवस्था है, लेकिन ज़्यादातर गुफ़ा अंधेरे में ही डूबी रहती है । गुफ़ा के रास्तों की गहराई और चौड़ाई ठीक होने से कहीं रेंगकर चलने की नौबत नही आती है, लेकिन कुछ हिस्सों में झुककर चलना पड़ता है । इस गुफ़ा में मुख्य रूप से समुद्री जीवों के जीवाश्म (Fossil) और लाइमस्टोन के बने Stalactites और Stalagmites देखने लायक हैं ।
खुलने का समय : सुबह 09.30 बजे से शाम 05.30 बजे तक प्रतिदिन
प्रवेश शुल्क: वयस्क 20 रुपए प्रति व्यक्ति और बच्चे 10 रुपए । कैमरा 50 रुपए ।
पब्लिक ट्रांसपोर्ट: आरवाह गुफ़ा तक पहुँचने के लिए कोई शेयर्ड पब्लिक ट्रांसपोर्ट उपलब्ध नही है । लेकिन यह गुफा सोहरा के मुख्य टैक्सी स्टैंड से मात्र दो किमी दूर है, तो वहाँ तक पैदल चलकर पहुँचा जा सकता है ।
नोट: टिकट काउंटर के पास ही गुफ़ा के गाइडेड टूर के लिए कई सारे वालंटियर टिकट काउंटर के पास खड़े रहते हैं । इनका कोई फ़िक्स्ड शुल्क नही होता है और गुफ़ा घूमने के बाद आप अपनी मर्ज़ी से इनको कुछ भी दे सकते हैं।
नोहकालिकाई झरना (NohKaLikai Falls)
यह भारत के सबसे ऊँचे झरनों में से एक है । झरने के केवल एक स्तर के ऊपरी हिस्से से निचले हिस्से तक की लम्बाई के मामले में यह भारत का सबसे लम्बा (कुछ लोगों के अनुसार दूसरा सबसे लम्बा) झरना (Tallest Plunged Waterfall, Single Drop 1115 feet ) है । इस झरने को देखने का असली मज़ा बारिश के मौसम में ही है, क्योंकि बारिश के पानी के ऊपरी पहाड़ियों पर एकत्रित होने से ही इस झरने का असली रूप दिखता है । सर्दियों में लगभग दिसम्बर से मार्च तक यह पानी की पतली सी धार जैसा दिखता है । झरने के निचले स्तर पर पानी का एक प्राकृतिक तालाब बन गया है, जो देखने में बड़ा सुंदर लगता है ।
वैसे तो ज़्यादातर पर्यटक इस झरने को ऊपर सड़क के पास बने व्यू-पॉइंट से ही देखते हैं, लेकिन व्यू-पॉइंट के पास की दुकानों से थोड़ा आगे बढ़ने पर नीचे की तरफ़ जाने के लिए सीढ़ियों वाला एक रास्ता है, जिससे आप थोड़ा नीचे तक जा सकते हैं । सर्दियों में बिल्कुल नीचे तक पहुँचा जा सकता है । नीचे तक आने-जाने में करीब दो घंटे का समय लगता है ।
हो सके तो व्यू-पॉइंट से परे हरी घास के बीच बने फुटपाथ पर इस पठारी हिस्से तक टहल के आएँ । पठार के आख़िरी छोर से मख़मल में टाँट के पैबंद सी लगती सीमेंट फ़ैक्टरी, सीमेंट फ़ैक्टरी के नीचे की पहाड़ी पर एक और झरना, नीचे घाटी में रूट ब्रिज के लिए प्रसिद्ध नोंग्रियात गाँव और रूट ब्रिज ट्रेक का शुरुआती गाँव तिरना इत्यादि का सुंदर नज़ारा दिखता है । वही से एक रास्ता नोंग्रियात गाँव तक भी जाता है, जिसपर चलकर विश्वप्रसिद्ध रूट ब्रिज तक पहुँचा जा सकता है । लेकिन बारिश के मौसम में इस रास्ते पर पड़ने वाली उफ़नती नदियों को पार करना लगभग असम्भव होता है, इसलिए बेहतर है कि रूट ब्रिज ट्रेक के लिए इस रास्ते का इस्तेमाल सर्दियों में ही किया जाए ।
खुलने का समय : सुबह 08.00 बजे से शाम 05.00 बजे तक प्रतिदिन ।
प्रवेश शुल्क: वयस्क 20 रुपए प्रति व्यक्ति । टिकट के लिए अलग से काउंटर नही है। झरने से पहले ही एक बैरियर के पास एक आदमी पार्किंग, प्रवेश शुल्क इत्यादि वसूलता है ।
पब्लिक ट्रांसपोर्ट: नोहकालिकाई झरने तक पहुँचने के लिए सोहरा के टैक्सी स्टैंड से इक्का-दुक्का सवारी गाड़ियाँ मिल सकती हैं, क्यूँकि झरने के पास के गाँव ( क़रीब 20-25 दुकान वाले) के लोग आते-जाते रहते हैं । झरना सोहरा बाज़ार से 5 किमी की दूरी पर है, इसलिए थोड़ा पैदल चलने का मन हो तो पैदल भी पहुँचा जा सकता है । नोहकालिकाई झरने का मंत्रमुग्ध करने वाला दृश्य, आसपास की पहाड़ियाँ, पठार के आख़िरी छोर से घाटी का विहंगम दृश्य सब कुछ मौसम के मिज़ाज पर निर्भर करता है। इसलिए अगर सोहरा में ही लग रहा है कि मौसम बहुत ख़राब है और घाटियाँ पूरी तरह बादलों से घिरी हैं, तो नोहकालिकाई जाने से कोई फ़ायदा नही होगा। लेकिन अगर बादल कम हैं तो कई बार ऐसा होता है कि थोड़ी देर के लिए बादल छँट जाते हैं, उस स्थिति में झरना नज़र आ सकता है।
नोहकालिकाई झरने के नामकरण की दुखद कहानी : लिकाई पास के गाँव में रहने वाली ख़ासी समुदाय की एक महिला का नाम था । उसकी एक बेटी थी जो कि बहुत छोटी थी तभी उसके पिता की मृत्यु हो गई । लिकाई ने कुछ दिन तो मेहनत करके अकेले बेटी के साथ गुज़ारा करने की कोशिश की, लेकिन फिर उसे लगा कि बेटी का लालन-पालन अकेले कर पाना मुश्किल है । इस वजह से उसने दूसरी शादी कर ली । लिकाई दिन भर बाहर मज़दूरी करती और शाम को घर आकर बेटी के साथ समय बिताती। कुछ समय बाद उसके दूसरे पति को लगा कि उसको उपेक्षा हो रही है और उसे अपनी बेटी से ही ईर्ष्या होने लगी ।
एक दिन जब शाम को लिकाई घर वापस आई, तो देखा कि उसके पति ने उसके लिए बहुत अच्छा खाना पकाया हुआ है, लेकिन बेटी कही नज़र नही आई । भूख और थकान से बोझिल होकर उसने पहले खाना खाया । खाना खाने के बाद वह जब सुपारी लेने गई तो देखा कि पास में ही एक छोटी ऊँगली पड़ी हुई थी । तब उसे सारी कहानी समझ आ गई । अपनी ही बेटी को पकाकर खाने के विचार से वह विक्षिप्त सी हो गई और अपनी कुल्हाड़ी लेकर बाहर की तरफ़ दौड़ पड़ी । अपराधबोध से ग्रसित लिकाई ने इसी झरने के पास पहाड़ी से छलाँग लगाकर जान दे दी । ख़ासी भाषा में ‘का’शब्द महिलाओं के लिए प्रयोग किया जाता है, जैसे हिन्दी में कुमारी या श्रीमती । तभी से इस झरने का नाम नोहकालिकाई (नोह-का-लिकाई, Leap of Likai) पड़ गया । नोह का मतलब छलाँग लगाने से है ।
सेवेन सिस्टर्स झरना (Seven Sistes Falls)
ज़्यादातर लोग इसे सेवेन सिस्टर्स फ़ॉल्स के नाम से जानते हैं, लेकिन इसका असली नाम Nohsngithiang Falls है । मावस्माई गाँव के पास होने के कारण इसे मावस्माई झरना भी बोलते हैं । लाइमस्टोन के चौड़े पठार से एक के बाद एक कई धाराओं के साथ गिरने का दृश्य एक जादुई अनुभव लगता है । बारिश के मौसम में तो सात के बजाय 10-12 धाराएँ नज़र आने लगती हैं । इस झरने को देखने का असली मजा बारिश के मौसम में ही है, बशर्ते कि मौसम साफ़ रहे ।
सेवेन सिस्टर्स फ़ॉल्स को देखने के लिए दो प्रमुख व्यू-पॉइंट्स (view-points) हैं । व्यू-पॉइंट ईको पार्क के अंदर है । यहाँ आप झरने के ऊपरी हिस्से, जहाँ यह पहाड़ी से गिरना शुरू करता है, को देख सकते हैं । दूसरा व्यू-पॉइंट मावस्माई गाँव से थोड़ा सा आगे सड़क के किनारे है, जहाँ दूर से झरने के विस्तृत फैलाव का विहंगम दृश्य दिखता है ।सूर्यास्त के समय दूसरे व्यू-पॉइंट से झरने का दृश्य बड़ा ही सुहावना लगता है । अगर मौसम साफ़ नही है और पहाड़ियाँ बादलों से घिरी हों, तो दूसरे व्यू-पॉइंट से कुछ भी नज़र नही आता है । ऐसी स्थिति में पास में स्थित मावस्माई गुफ़ा को घूम सकते हैं या फिर धुँध में ही ईको पार्क के अंदर वाला व्यू-पॉइंट घूम सकते हैं ।
खुलने का समय : सूर्योदय से सूर्यास्त तक प्रतिदिन ।
प्रवेश शुल्क: दूसरे व्यू-पॉइंट से देखने का कोई शुल्क नही
पब्लिक ट्रांसपोर्ट: सेवन सिस्टर्स झरने तक पहुँचने के लिए सोहरा के टैक्सी स्टैंड से मावस्माई गाँव (सोहरा बाज़ार से लगभग पाँच किमी दूर) की तरफ़ जाने वाली शेयर्ड टैक्सी पकड़ी जा सकती है । टैक्सियाँ सुबह से शाम तक आराम से मिल जाती हैं । मावस्माई गाँव में ईको पार्क, मावस्माई गुफ़ा और सेवन सिस्टर्स झरने का व्यू-पॉइंट सब आसपास ही हैं, इसलिए पैदल ही हर जगह घूम जा सकता है । सोहरा से आते समय सबसे पहले ईको पार्क पड़ता है । यह मुख्य सड़क से क़रीब आधा किमी दूर है । ईको पार्क से मावस्माई गुफ़ा क़रीब दो किमी और गुफ़ा से सेवेन सिस्टर्स झरने का व्यू-पॉइंट क़रीब एक किमी दूर है ।
मावस्माई गुफ़ा (Mawsmai Cave)
यह मेघालय की सबसे प्रसिद्ध, सबसे ज़्यादा सुविधाओं से युक्त और सबसे ज़्यादा लोगों द्वारा घूमी जाने वाली गुफ़ा है । मेघालय की कुछ ही गुफ़ाओं के अंदर प्रकाश की व्यवस्था है, जिसमें से एक मावस्माई गुफ़ा है । आरवाह गुफ़ा की तुलना में यह गुफ़ा ज़्यादा मज़ेदार और संकरी है, इसलिए कुछ हिस्सों में रेंगकर चलना पड़ता है । गुफ़ा में कई जगह पानी भी भरा रहता है, जिससे जूते गीले हो सकते हैं ।
खुलने का समय : सुबह 9.30 बजे से शाम 5.30 बजे तक ।
प्रवेश शुल्क: वयस्क 20 रुपए प्रति व्यक्ति । बच्चे 5 रुपए । डिजिटल कैमरा 20 रुपए । विडियो कैमरा 50 रुपए । बाइक पार्किंग 10 रुपए । कार पार्किंग 20 रुपए ।
ईको पार्क (Eco Park)
मावस्माई गाँव के पास एक बड़े क्षेत्र में फैले इस पार्क में परिवार के साथ घूमने में बड़ा मज़ा आता है । यहाँ जगह-जगह बच्चों के खेलने के लिए झूले और चकरियाँ लगी हैं । एक कुँए जैसे गहरे गड्ढे में झरने की तरह पानी गिरता हुआ दिखाई देता है, जिसे Missing Falls के नाम से जाना जाता है । थोड़ा आगे एक तरफ़ कई सारे मोनोलिथ्स (Monoliths) हैं।
इस पार्क के एक हिस्से में बहता पानी पहाड़ी से नीचे गिरकर सेवेन सिस्टर्स फ़ॉल्स के रूप में दूर से दिखता है, मतलब एक तरह से यह पार्क सेवेन सिस्टर्स फ़ॉल्स का उद्ग़म स्थान है । जब आसपास की घाटियों में छाई धुँध की वजह से किसी व्यू-पॉइंट से सेवेन सिस्टर्स फ़ॉल्स नही नज़र आता है, तब भी ईको पार्क में घूमकर उसके ऊपरी हिस्से का आनन्द उठाया जा सकता है ।
खुलने का समय : सुबह 9.30 बजे से शाम 5.30 बजे तक ।
प्रवेश शुल्क: वयस्क 10 रुपए प्रति व्यक्ति । बच्चे 5 रुपए । डिजिटल कैमरा 15 रुपए । विडियो कैमरा 50 रुपए ।
डैन्थलेन झरना (Dainthlen Falls)
यह झरना सोहरा से क़रीब 10 किमी दूर है । डैन्थलेन झरने के पास के पठारी इलाक़े में बहने वाली नदी झरने के गिरने वाले स्थान से थोड़ा पहले मुख्य सड़क पर बने एक पुल के पास से एक चौड़े हिस्से में फैल जाती है और फिर पठार के आखिरी छोर से नीचे गिरती हुई इस झरने का निर्माण करती है । इस झरने का आनंद उठाने के लिए दो प्रमुख व्यू-पॉइंट्स (view-points) हैं । पहला व्यू-पॉइंट तो पठार के आख़िरी हिस्से के पास है जहाँ से पानी नीचे गिरता है । पास ही पार्किंग में गाड़ी लगाकर झरने का आनंद लिया जा सकता है । लेकिन इस व्यू-पॉइंट से कुछ ख़ास नज़र नही आता ।
नदी में पानी का स्तर बहुत कम होता है, इसलिए उसको पारकर नदी के दूसरी तरफ़ पहुँचने से झरना थोड़ा अच्छा नज़र आता है । नदी के आख़िरी हिस्से पर लोहे की रेलिंग तो है, लेकिन वह जगह-जगह टूट गई है ।नदी में पानी का स्तर भले कम हो, लेकिन पठार का आख़िरी छोर होने के कारण यहाँ पानी का बहाव बहुत तेज़ आता है, इसलिए नदी को पार करते समय ( ख़ास तौर से बारिश के मौसम में) विशेष सावधानी बरतने की ज़रूरत है । पुल से लेकर आख़िरी हिस्से तक नदी के तल पर बड़े-बड़े रोचक गड्ढे दिखते हैं ।
दूसरे व्यू-पॉइंट के लिए नदी का पुल पार करके पार्किंग की तरफ़ मुड़ने के बजाय आगे बढ़ना पड़ता है । आगे तिराहे पर बाएँ घूमकर क़रीब एक किमी आगे चलने पर इस झरने का विहंगम दृश्य दिखता है, बस शर्त यही है कि मौसम साफ़ हो । गूगल मैप में Cascade Homestay खोजकर दूसरे यू-पॉइंट तक पहुँचा जा सकता है ।
खुलने का समय : सूर्योदय से सूर्यास्त तक
प्रवेश शुल्क: गाड़ी की पार्किंग का शायद 20 रुपए हैं और कोई बाक़ी व्यक्तिगत शुल्क नही है । दूसरे व्यू-पॉइंट का कोई भी शुल्क नही है ।
पब्लिक ट्रांसपोर्ट: डैन्थलेन झरना तक पब्लिक ट्रांसपोर्ट की उपलब्धता लगभग ना के बराबर है । वैसे तो झरने के आगे स्थित मावडान, लाइदुह, रूमनोंग, रामदाइत इत्यादि गाँवो की तरफ़ जाने वाली शेयर्ड गाड़ियाँ इस झरने के बिल्कुल बग़ल से गुजरती हैं, लेकिन एक पर्यटक के लिए इन गाड़ियों का पता लगाना थोड़ा कठिन है । यह झरना प्रसिद्ध सा-इ-मीका रिसॉर्ट वाले रास्ते पर सोहरा से क़रीब 10 किमी दूर है । अगर शिलाँग-सोहरा मुख्य सड़क पर आरेंज रूट रेस्टोरेंट के पास, जहाँ से डैन्थलेन झरना की सड़क निकलती है या फिर सा-इ-मीका के सामने खड़े होकर इंतज़ार करे, तो शायद कोई सवारी गाड़ी मिल सकती है । लेकिन इसमें भी दिक़्क़त ये है कि सोहरा से चलने के बाद ज़्यादातर समय गाड़ियों की सीट पूर्णतया भरी होती है, तो बीच से गाड़ी का मिलना मुश्किल हो सकता है ।
नोट: डैन्थलेन झरना तक पहुँचने वाले ज़्यादातर पर्यटक पार्किंग में गाड़ी खड़ी करके नदी और झरने के आसपास टहलकर वहीं से सोहरा वापस हो जाते हैं । इसीलिए उन्हें डैन्थलेन झरने की तरफ़ घूमना बड़ा साधारण सा लगता है । लेकिन डैन्थलेन झरने के आसपास का क्षेत्र ही मेरी नज़र में सोहरा का सबसे छुपाकर रखा हुआ रहस्य है । इस क्षेत्र में मेघालय के एक से बढ़कर एक सुन्दर झरने हैं, जो जंगलों में छुपे हुए हैं और ज़्यादातर पर्यटक वहाँ तक नही जाते हैं । उन सारी जगहों के बारे में लिखने से यह पोस्ट बहुत लंबी हो जाती, इसलिए मैंने उनके लिए एक अलग लेख लिखने का विचार किया है । मेरी अगली पोस्ट सोहरा के ऐसे शानदार झरनों के बारे में रहेगी, जो ज़्यादातर दुनिया की नज़रों से दूर जंगलों में छुपे हुए हैं ।
डैन्थलेन झरना की लोक किंवदन्ती : यह कहानी रूट ब्रिज की ट्रेकिंग के दौरान तिरना गाँव में रुकने पर होमेस्टे के मालिक ने मुझे सुनाई । कहा जाता है कि इस झरने के पास एक गुफ़ा में थलेन नाम का एक बहुत बड़ा साँप रहता था । वह साँप उधर से गुज़रने वाले लोगों को खा जाता था । लेकिन इसमें एक ख़ास बात यह थी कि साँप केवल विषम संख्या में लोगों के होने पर ही खाता था, जैसे अगर 2, 4 या 6 लोग साथ चलते थे तो वह सुरक्षित निकल जाते थे, लेकिन लोगों की संख्या 1, 3 या 5 इत्यादि होने पर साँप एक व्यक्ति को खा जाता था ।
इससे तंग आकर गाँव वालों ने उससे छुटकारा पाने के लिए एक वीर पुरुष से गुहार लगाई । वह आदमी थलेन के पास गया और धीरे-धीरे उससे दोस्ती कर ली । जब थलेन को उस पर पक्का विश्वास हो गया तो उसने एक लोहे के टुकड़े का आग की भट्टी में एकदम लाल गरम होने तक तपाया और फिर थलेन के पास जाकर खाने के लिए आवाज़ लगाई । थलेन ने लाल रंग के उस टुकड़े को माँस समझकर गटक लिया, जिससे थोड़ी देर में उसकी मृत्यु हो गयी ।
यह शुभ समाचार पाकर आसपास के सभी लोग वहाँ इकट्ठा हुए और थलेन को गुफ़ा से खींचकर बाहर निकाला । फिर उसको टुकड़ों में काट-काटकर पकाया गया और हर किसी ने जमकर दावत उड़ाई । झरने के पास नदी तल पर बने गड्ढे थलेन को काटकर उसके माँस को पकाने के पहले मसाला, तेल इत्यादि मिलाने के लिए बनाए गए थे। इसी कारण इस जगह को डैन्थलेन (जहाँ थलेन को काटा गया) बोलते हैं ।
लेकिन इस कहानी में एक और मोड़ था । दावत के दौरान एक वृद्ध महिला ने माँस के एक टुकड़े को बचाकर रख लिया, क्योंकि उसका पोता दावत में नही पहुँच पाया था । घर पहुँचकर वह उसे पोते को देना भूल गई और माँस का टुकड़ा वैसे ही रखा रह गया । आगे चलकर उससे एक बार फिर एक नए थलेन का जन्म हुआ । उसके बाद की कहानी थलेन द्वारा मानव ख़ून (वो भी ख़ासी समुदाय से) की माँग, थलेन कीपर्स द्वारा लोगों की हत्या इत्यादि से जुड़ी हुई है । कहा जाता है कि थलेन कीपर्स अभी भी कभी-कभी ख़ासी पहाड़ियों के जंगलों में अकेले आदमी को पाकर उसकी हत्या कर देते हैं । हालाँकि इसकी सच्चाई का मुझे कोई अनुमान नहीं है।
माकदोक दिम्पेप वैली (Mawkdok Dympep Valley)
शिलाँग से चेरापूँजी जाते समय शिलाँग से क़रीब 30 किमी दूर दुवान सिंग सिएम पुल ( Duwan Sing Syiem Bridge) पार करते ही हम सोहरा की वादियों में प्रवेश कर जाते हैं । यहीं पुल के पास और थोड़ा आगे तक जगह-जगह बने व्यू-पॉइंट्स (view-points) से सामने दूर-दूर तक फैली माकदोक दिम्पेप घाटी का भव्य नज़ारा दिखता है । सड़क किनारे लगी दुकानों के पास से नीचे जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई है, जिनसे नीचे जाकर घाटी के नज़ारों का आनन्द लिया जा सकता है । रोमाँच के शौक़ीन लोगों के लिए यहाँ ज़िपलाईनिंग की सुविधा 800-1000 रुपए में उपलब्ध है ।
खुलने का समय : सूर्योदय से सूर्यास्त तक
प्रवेश शुल्क: कोई शुल्क नही है ।
पब्लिक ट्रांसपोर्ट: शिलाँग से सोहरा के मुख्य रास्ते में होने के कारण यहाँ के लिए शेयर्ड गाड़ियाँ पर्याप्त मात्रा में सुबह से शाम तक उपलब्ध हैं । लेकिन उसमें भी शिलाँग से चेरापूँजी के बीच चलने वाली पब्लिक बसों का प्रयोग करना ज़्यादा उचित रहेगा । सूमो या छोटी कार से जाने पर शिलाँग से सोहरा तक का पूरा किराया देना पड़ता है । माकदोक दिम्पेप वैली के यू-पॉइंट पर एक बाद उतर जाने के बाद वहाँ से फिर आगे सोहरा की तरफ़ जाने के लिए शेयर्ड जीप और कारों का मिलना कठिन होता है, क्योंकि ज़्यादातर गाड़ियाँ तो शिलाँग से ही सारी सीटें भरकर चलती हैं । ऐसी स्थिति में वहीं रूककर पब्लिक बसों के आने का इंतज़ार कर सकते हैं ।
का खोह रामहा (Ka Khoh Ramahah)
यह एक विशाल लंबी से कोन के आकार वाली चट्टान है । इसकी लम्बाई क़रीब 200 फ़ीट है । इस चट्टान को Giant Pillar और Motrop के नाम से भी जाना जाता है । वैसे तो यह चट्टान एक बहुत विशाल शिवलिंग की तरह दिखती है, लेकिन ख़ासी किंवदन्ती के अनुसार यह चट्टान एक दुष्ट राक्षस के उल्टे रखे हुए ख़ासी बास्केट को दर्शाती है । राक्षस की हरकतों से तंग आकर लोगों ने उसको लोहे के नुकीले टुकड़ों, कीलों इत्यादि से भरा भोजन दे दिया जिसकी वजह से उसकी मृत्यु हो गई ।
यहाँ से सामने के मैदानों में बांग्लादेश का विहंगम दृश्य दिखता है । मेघालय की पहाड़ियों के ख़त्म होते ही अचानक से बांग्लादेश का मैदानी इलाक़ा शुरू हो जाता है, इसलिए आसपास का ज़्यादातर हिस्सा पानी में डूबा रहता है । साफ़ मौसम वाले दिन में यहाँ से सिलहट शहर की ऊँची-ऊँची इमारतें भी नज़र आती हैं ।
इस चट्टान से वापस आकर सोहरा से शेल्ला के रास्ते पर थोड़ा आगे बढ़ने पर मुख्य सड़क से Giant Pillar का सुंदर दृश्य दिखता है । बारिश के मौसम में उस सड़क से चट्टान के बग़ल में गिरता भव्य झरना भी नज़र आता है । इसी सड़क पर क़रीब 8 किमी आगे बढ़ने पर सोहरा के सबसे भव्य झरनों में से एक किनरेम झरना (Kynrem Falls) मिलता है । लेकिन मावस्माई गाँव से थोड़ा आगे निकलने के बाद सोहरा से शेल्ला जाने वाली यह सड़क बहुत ही ख़राब स्थिति में हैं । Giant Pillar से किनरेम झरने के रास्ते में सड़क के गड्ढों का आकार और बड़ा होता जाता है, जिससे सड़क की हालत और ख़राब हो जाती है ।
खुलने का समय : सूर्योदय से सूर्यास्त तक
प्रवेश शुल्क: कोई शुल्क नही है ।
पब्लिक ट्रांसपोर्ट: सोहरा से शेल्ला के मुख्य रास्ते में होने के कारण यहाँ के लिए शेयर्ड गाड़ियाँ मिल तो जाती हैं, लेकिन उनकी उपलब्धता बहुत सीमित हैं। रास्ते की हालत भी बहुत ख़राब है । शेल्ला को जाने वाली गाड़ियाँ आगे किनरेम झरने से भी गुज़रती हैं ।
रामकृष्ण मिशन (Ramakrishna Mission)
यह सोहरा का सबसे आसानी से नज़र आने वाला लैंडमार्क है । किसी भी रास्ते से सोहरा में घुसने से पहले रामकृष्ण मिशन की भव्य और विशाल इमारत नज़र आने लगती है । सोहरा में वर्ष 1924 में स्थापित रामकृष्ण मिशन की इस इमारत में एक स्कूल है, एक खेलकूद का मैदान है, पुस्तकालय है और स्वामी रामकृष्ण परमहंस का एक मेमोरियल है ।
डेविड स्कॉट मेमोरियल (David Scot Memorial)
डेविड स्कॉट एक ब्रिटिश प्रशासक थे, जिन्होंने क़रीब तीस सालों तक इस क्षेत्र में प्रशासनिक तौर पर विकास के कई कार्य किये । सोहरा बाज़ार से क़रीब ढाई किमी दूर स्थित डेविड स्कॉट मेमोरियल उनके सम्मान में बनाया गया है।
खुलने का समय : सूर्योदय से सूर्यास्त तक
प्रवेश शुल्क: कोई शुल्क नही है ।
नोंगशालिआ चर्च (Nongsawlia Church)
सोहरा के आगे क़रीब ढाई किमी के बाद मुख्य सड़क के किनारे ही पूर्वोत्तर भारत के पहले प्रेसबिटेरीयन चर्च की सुंदर सी इमारत है । यह चर्च वर्ष 1841 में वेल्श मिशनरियों द्वारा बनाया गया । वर्ष 1897 में भूकम्प से नष्ट होने के बाद इस भव्य इमारत को पुनः खड़ा किया गया । चर्च के आहते में घुसते ही वेल्श मिशनरी थामस जोंस की याद में बना एक स्मारक है, जिन्होंने पहली बार ख़ासी भाषा में रोमन स्क्रिप्ट का प्रयोग किया था । चर्च के बग़ल में एक स्कूल की सुंदर सी इमारत है, जो उन्ही के द्वारा शुरू किया गया था ।
खुलने का समय : सूर्योदय से सूर्यास्त तक
प्रवेश शुल्क: कोई शुल्क नही है ।
चेरापूँजी में बाइक रेंटल
सोहरा के आसपास के क्षेत्र में घूमने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट की स्थिति बहुत अच्छी नही होने के कारण क़स्बे से एक बाइक या साइकिल लेकर घूमने से आराम मिल जाता है । सोहरा में आसपास घूमने के लिए स्कूटी और साइकिल किराए पर मिल जाती है ।
चेरापूँजी में एटीएम
चेरापूँजी में एस बी आई का एक एटीएम मौजूद है और सामान्य तौर पर बिना किसी दिक्कत के काम करता है ।
चेरापूँजी में मोबाइल नेटवर्क
मुझे वोडाफोन और जिओ के नेटवर्क में हर तरफ कोई दिक्कत नही हुई ।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
1. सबसे महत्वपूर्ण बात तो बारिश से बचाव की है । चेरापूँजी में बारिश कभी भी हो सकती है, इसलिए अचानक आई बारिश से बचने के लिए एक छाता या रेनकोट हमेशा अपने पास रखें ।
2. कई बार स्थानीय लोगों से वार्तालाप करते समय हिंदी की जगह अंग्रेज़ी के प्रयोग से ज़्यादा सुविधा होती है । और सुदूर गाँवों में आख़िरी उपाय के रूप में सांकेतिक भाषा तो है ही ।
3. वैसे तो पूर्वोत्तर भारत में लोगों का व्यवहार बहुत अच्छा है, लेकिन फिर भी मुसीबत में फँसे होने पर कुछ ज़्यादा मदद मिल जाने की आशा ना करें । पूर्वोत्तर भारत के सभी राज्यों में कदम रखने के बाद मेरा व्यक्तिगत अनुभव तो यही कहता है कि ज़्यादातर समय लोग आपको नज़रंदाज करके आगे बढ़ जाएँगे । होटल, गाड़ी इत्यादि रिज़र्व करते समय या कोई सामान ख़रीदते समय भी बहुत ज़्यादा मोलभाव की आशा ना रखें । वैसे इन अनुभवों को लेकर आपकी राय मुझसे भिन्न हो सकती है । मुझे भी कुछ बहुत अच्छे अनुभव हुए हैं जैसे तिरना गाँव में होमस्टे के मालिक ने मुझे अपना छोटा भाई समझकर आवभगत की । खट्टे-मीठे अनुभवों से ही घुमक्कड़ी चलती रहती है ।
4. महिलाओं की सुरक्षा के मामले में पूर्वोत्तर का हर इलाक़ा अच्छा है । इसलिए अकेली लड़कियाँ भी सुरक्षा के प्रति निश्चिन्त होकर घूम सकती हैं । सामान्य सावधानियाँ तो हर जगह ही रखनी पड़ती हैं ।
5. वैसे तो चेरापूँजी दुनिया का सबसे ज्यादा बारिश वाला क्षेत्र है , लेकिन चपटा पठारी क्षेत्र होने के कारण बारिश का सारा पानी बहकर नीचे चला जाता है । यह विडम्बना ही है कि दुनिया के सबसे ज्यादा बारिश वाले क्षेत्र में भी जीवनयापन करने में पानी की कमी का सामना करना पड़ता है ।
बेहतरीन लेख…. क्या नही है इसमे….. मेघालय की हर छोटी बड़ी जानकारी है इसमे….आपकी मेहनत को सलाम…