रात में हड्डियाँ कँपकँपा देने वाली ठंडी हवाएं, आधी रात को स्लीपिंग बैग के अंदर किटकिटाते दाँत और फिर सूरज की रोशनी से नहाई एक ख़ुशनुमा सुबह..हेमिस पार्क में यह रोज का चक्र बन चुका था। अब जनवरी के महीने में जाने पर लेह में ऐसी कड़कड़ाती ठण्ड तो मिलनी ही थी। हेमिस पार्क में हमारा वह चौथा दिन था। परमिट नहीं होने की वजह से हमें वापस तो लौटना था, लेकिन लेह वापसी से पहले रूमचुंग (Rumchung) गाँव में एक और दिन बिताने का मौका मिल गया था।

 हेमिस नेशनल पार्क से अपना बोरिया बिस्तर समेटते हुए
हेमिस नेशनल पार्क से अपना बोरिया बिस्तर समेटते हुए

चौथे दिन की वो सुबह बहुत ही खुशनुमा थी। जब हम टेंट से बाहर निकले तो सूरज की किरणें चारों तरफ फैल चुकी थी। गार्ड ने बताया कि रात को तापमान -20 डिग्री तक गिर गया था, लेकिन सुबह खिली उस धूप ने कड़ाके की ठण्ड के एहसास को खत्म कर दिया था। अपने कैम्पिंग स्थल से हम वापस ज़िंगचेन की तरफ़ लौटने लगे, जहाँ एक पहाड़ के दूसरी तरफ से घूमकर हमें रूमचुक पहुँचना था।

हमारे आगे-आगे ही बी बी सी का काफिला भी अपने पूरे साजो-सामान के साथ ज़िंगचेन की तरफ बढ़ रहा था। पूछने पर पता चला कि उस दिन बर्फीले तेंदुएं की खोज ज़िंगचेन के आस पास के क्षेत्र में होनी थी।

कैमरे से बर्फीले तेंदुए का शिकार
कैमरे से बर्फीले तेंदुए का शिकार

बगल की एक पहाड़ी पर भराल का बहुत बड़ा झुण्ड कूद-फाँद मचा रहा था। इस पूरे इलाके में भराल के कूदते-फाँदते झुण्ड अक्सर दिख जाते हैं। पहाड़ों की ढलानों पर एक जगह से दूसरे जगह कूदते समय उनका संतुलन आश्चर्यचकित कर देता है। कहने को तो हमें हेमिस पार्क में आगे नही बढ़ने दिया गया, लेकिन दिल में कोई मलाल नहीं था। पिछले तीन दिनों का हमारा सफर बहुत ही रोमांचक रहा था। कहते हैं ना कि हिमालय आपकी इच्छाशक्ति को पूरी तरह परखता है और बहुत कुछ सीख भी देता है। हम बहुत कठिनाइयों वाले सफर पर तो नही थे, लेकिन जनवरी की ठण्ड ने पूरे सफर को रोमांचक बना दिया था। हमें भी कुछ ना कुछ सीखने को मिल ही रहा था।

 पहाड़ियों पर कूदता-फाँदता भराल का एक झुण्ड
पहाड़ियों पर कूदता-फाँदता भराल का एक झुण्ड

ज़िंगचेन के पास रुम्बक नदी काफी चौड़े क्षेत्र में जम गई थी। बर्फ की सफेद चादर देखने में ही बहुत ठोस लग रही थी। पास में ही बी.बी.सी. का पूरा दल अपने उन्नत कैमरों और दूरबीनों के साथ बर्फीले तेंदुए की तलाश में जोर शोर से लगा पड़ा था। उस छोटी सी पहाड़ी नदी पर जमी बर्फ की सफेद चादर हमें बार-बार अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। अंततः दिल से रहा नहीं गया। हमने बैकपैक एक तरफ उतारे और कैमरा लेकर बर्फ की उस चादर पर बढ़ चले। चादर ट्रेक ना कर पाने का जो भी मलाल बचा था, वो सब हमने यहाँ खत्म कर दिया।

पूरी तरह जमी हुई पहाड़ी नदी
पूरी तरह जमी हुई पहाड़ी नदी

बर्फ की चादर पर लंबे फोटोशूट के बाद हमने बी बी सी वालों को अलविदा कहा और आगे बढ़ गये। ज़िंगचेन से करीब 7-8 सौ मीटर आगे बढ़ने के बाद हमें वो दूसरा रास्ता मिला, जो पहाड़ी के दूसरी तरफ स्थित रूमचुंग गाँव को जा रहा था। हमारे अंदाजे से रूमचुंग वहाँ से करीब 2 किमी दूर था। उधर से भी पूरी तरह जम चुकी एक पहाड़ी धारा आकर रुम्बक धारा में मिल रही थी। अब तक भूख भी लग चुकी थी तो हमने सोचा कि आगे बढ़ने से पहले कुछ खा लेते हैं। जमी हुई रुम्बक नदी में एक पानी का स्रोत नजर आ रहा था।

 रूमचुंग गाँव को जाने वाली सड़क
रूमचुंग गाँव को जाने वाली सड़क

नूडल्स पकाने की सोचकर मैंने बैग खोला तो उसमें नूडल्स का एक भी पैकेट नही नजर आया। बाकी दोनों लोगों ने जब अपने बैग चेक किये, तो उनमे भी नूडल्स के पैकेट नहीं पड़े थे। वास्तव में, एक पैकेट चिप्स और दो पैकेट बिस्कुट को छोड़कर हमारे बैग्स में खाने के नाम पर कुछ भी नहीं बचा था । बस चाय बनाने का सामान उपलब्ध था। अब हमारी चिंता अचानक से बढ़ गई। देखा जाये तो अभी हमें उस इलाके में 24 घन्टे से ज्यादा समय तक रुकना था और हमारे पास खाने को कुछ भी नहीं था।

स्थिति खराब लग तो रही थी, लेकिन लेह जाने वाली मुख्य सड़क पर होने के कारण चिंता की कोई बात नही थी। हम किसी अनजान वीराने में नही थे। लेह वहाँ से मात्र 7-8 किमी दूर था और ज़िंगचेन गाँव तो कुछ ही मीटर दूर। काफी कश्मकश के बाद तय हुआ कि बिना कुछ खाये-पिये रुमचुंग गाँव तक तो जाते ही हैं, फिर वहाँ शायद किसी होमस्टे में खाने का जुगाड़ हो जाये।

करीब 2 किमी की दूरी तय करने के बाद हम रुमचुंग पहुँच गए। गाँव में केवल 3 घर दिख रहे थे। उनमें से एक घर के बाहर होमस्टे का बोर्ड लगा हुआ था। वह देखकर हमारी जान में जान आई कि चलो अब कुछ खाने का जुगाड़ हो जाएगा।

रुमचुंग गाँव  में होमस्टे
रुमचुंग गाँव में होमस्टे

होमस्टे मुख्य सड़क से थोड़ा दूर नदी पार करके दूसरी तरफ़ था। मैंने अपना बैकपैक वहीं सड़क पर ही छोड़ दिया और होमस्टे की तरफ बढ़ गया। गाँव में दिख रहे तीनों घर एक ही परिवार के हैं, जिनमें एक महिला अपने दो बच्चों और सास-ससुर के साथ रहती है। उन महिला का पति भारतीय सेना में काम करता है और गाँव से थोड़ी ही दूर लेह शहर में कार्यरत है। इस परिवार के तीनों घरों से थोड़ा दूर दो घर और नज़र आते हैं।

हमने होमस्टे की मालिकन से खाने-पीने और रात को रुकने के लिए बात की। उन्होंने हमसे हमारा पार्क का परमिट माँगा। लेकिन हमारे पास वही तो नही था। जिसकी वजह से उन्होंने हमें होमस्टे देने से मना कर दिया। एक बार फिर हम निराश हो गए थे।

वैसे टेंट साथ में होने के कारण रात्रि विश्राम हमारी समस्या नहीं थी। हमारी मुख्य समस्या तो खाने का जुगाड़ थी। मैंने उनको बताया कि अब हमारे पास खाने के लिए कुछ नही बचा है। उन्होंने कहा कि अगर उनके पति घर पर होते तो वो हमें खाना खिला देती, लेकिन चूँकि वह घर पर नहीं हैं, तो खाने की मदद देना भी सम्भव नही है। हम इस परमिट के फेर में बड़ी विचित्र स्थिति में फँस चुके थे।

लेकिन कुछ देर बाद वो महिला अपने सास-ससुर से मशविरा करने के बाद आईं और बताया कि वो हमारे खाने के लिए कुछ पका देंगी, लेकिन खाना हमें अपने बर्तन में ले जाकर खाना होगा। घर पर ही खाने की इजाजत नही मिलेगी। हमें तो बस खाना चाहिए था, इसलिए हम खुशी-खुशी बर्तन लाने चले गए। हमने यह भी तय कर लिया कि खाना लेने के बाद उन्हीं के खेतों में कही टेंट लगाकर रात्रि विश्राम कर लेंगे और सुबह-सुबह लेह के लिए रवाना हो जाएंगे।

बर्तन लेने के लिए जब हम सड़क के एक किनारे रखे अपने बैकपैक की तरफ जा रहे थे, तभी हमारी नज़र सामने खड़ी हिमालय की बर्फीली चोटियों पर पड़ी। ढलते सूरज के कारण सफेद बर्फ पर हल्की-हल्की लालिमा छाने लगी थी। बर्फ पर खेलती सुनहरी किरणों के जादू ने हमें सम्मोहित सा कर दिया। फिर क्या भूख, क्या प्यास और क्या थकान, सब कुछ भूलकर हम प्रकृति के उस सम्मोहन में बंधे रह गए।

 रूमचुंग गाँव से सूर्यास्त के समय का नजारा
रूमचुंग गाँव से सूर्यास्त के समय का नजारा
रूमचुंग गाँव से सूर्यास्त के समय दिखती हिमालय की चोटियाँ
रूमचुंग गाँव से सूर्यास्त के समय दिखती हिमालय की चोटियाँ

करीब एक घण्टे बाद हम बर्तन लेकर दुबारा उन महिला के घर पहुँचे । तब जाकर हमें पता चला कि केवल हिमालय की बर्फीली चोटियाँ ही सुनहली नहीं थी, वहाँ रहने वाले लोगों के दिल भी एकदम पवित्र थे। उन्होंने सिर्फ हमारे लिये डिनर ही नहीं तैयार किया था, बल्कि घर पहुँचने पर चाय और बिस्कुट भी दिया। पहली बार तो वह हमें अपने घर ले जाने में हिचक रही थीं, लेकिन इस बार वह हमें अपने साफ-सुथरे किचन में ले गयी और एक कटोरे में गर्मागर्म स्वादिष्ट थुकपा भी परोस दिया।

खाने के लिए बिस्कुट और चाय , रूमचुंग गाँव
खाने के लिए बिस्कुट और चाय , रूमचुंग गाँव
स्वादिष्ट थुकपा, रूमचुंग गाँव
स्वादिष्ट थुकपा, रूमचुंग गाँव

मैं उनके रसोईघर में बैठकर धीरे-धीरे चाय का आनंद लेता हूँ, लेकिन ध्यान बस उन मुस्कुराते चेहरों की तरफ है। कितनी मासूम हैं उनकी मुस्कराहट, निश्छल और निर्दोष। उन्हें क्या पता कि हम कौन हैं, कहाँ से आये हैं; लेकिन फिर भी आवभगत में कोई कमी नहीं। जो बन पड़ा, वो किया। दिल्ली की भागती-दौड़ती जिंदगी से परे, जहाँ पड़ोसी पड़ोसी को नहीं पहचानता, लेह के उस वीराने में वो परिवार हमारे लिए एक देवदूत सरीखा था। अतिथि देवो भवः सुनते रहते हैं, लेकिन घुमक्कड़ी में कुछ ऐसे मौके भी आते हैं, जब हम उसे प्रत्यक्षतः महसूस करते हैं। वह पल उनमें से ही एक था।

हर गम से परे हँसते-मुस्कुराते चेहरे
हर गम से परे हँसते-मुस्कुराते चेहरे

मैंने बर्तन में खाना लेने के बाद उनको कुछ रुपये देने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। बहुत जोर देने पर उन्होंने थोड़े पैसे रख लिये। खाना लेकर हम वापस आ गए।

अब हमारा अगला काम टेंट को लगाना था। अंधेरा तेजी से गहरा रहा था, लेकिन नदी के किनारे कोई ऐसी जगह नहीं मिल रही थी, जहाँ पानी का स्रोत पास में हो और तेज हवा का डर ना रहे। बहुत कोशिश करने पर भी जब जगह पानी नही मिला तो हमने सोचा कि चलो कहीं भी थोड़ा आड़ देखकर टेंट लगा लेते हैं। राहत की बात यही थी कि चाँदनी रात में चाँद ने हमें धुप्प अँधेरे से बचा लिया था।

रुमचुंग गाँव के वीराने में हमारा टेंट
रुमचुंग गाँव के वीराने में हमारा टेंट

टेंट लगाने के बाद एक बार फिर पानी की तलाश शुरू हो गई। पीछे ही नदी थी , लेकिन पूरी तरह से जमी हुई। बहुत।खोजने पर भी पानी का स्रोत नहीं मिला, तो यह तय हुआ कि साथ लाये हथौड़े से नदी की बर्फ तोड़ लेते हैं और फिर उसको गर्म करने से पानी मिल जाएगा। हथौड़े से लाख कोशिशों के बाद भी बर्फ नहीं टूट पाई। किस्मत से वहीं पत्थर के बड़े-बड़े टुकड़े पड़े हुए थे। जब हमने पत्थर के बड़े टुकड़े को नदी में जमी बर्फ पर जोर से मारा, तब कही काम चलाने लायक बर्फ का जुगाड़ हो पाया।

रूमचुंग गाँव में हमारा कैंपिंग स्थान
रूमचुंग गाँव में हमारा कैंपिंग स्थान

अंततः एक बड़े थकाऊ दिन के बाद हमारे पास खाना और पानी दोनों थे। यह बहुत राहत की बात थी। खाना खाकर एक बार फिर हम अपने स्लीपिंग बैग में घुस गए। हेमिस नेशनल पार्क में वह हमारी आखिरी रात थी।

सुबह उठकर हम लेह के रास्ते पर वापस चल पड़े। यह वही रास्ता था, जिसपर  चलकर हम आये थे। एक बार फिर उसी रास्ते पर सामान के साथ चलकर वापस जाने का मन नही कर रहा था। तभी हमें एक ट्रक दिखा। ट्रक पर हेमिस नेशनल पार्क में प्रवेश सम्बन्धित दिशा-निर्देशों वाले बोर्ड्स लदे हुए थे, जिन्हें वो जगह-जगह लगा रहे थे। इन्हीं दिशा निर्देशों के अभाव में हमे परमिट वाली बात का पता नहीं लग सका था। लेकिन अब वह शिकायत दूर होने वाली थी। हमने ट्रक ड्राइवर से ही लिफ़्ट ले ली और वापस लेह की तरफ़ बढ़ चले।

अन्ततः हेमिस नेशनल पार्क में परमिट की जरूरत को दर्शाता बोर्ड
अन्ततः हेमिस नेशनल पार्क में परमिट की जरूरत को दर्शाता बोर्ड

यह सच है कि हम हेमिस नेशनल पार्क में ज्यादा दूर तके नहीं जा पाए, लेकिन हमारे दिलों में अब उसका कोई मलाल नही था। 5 दिनों में ही हमने उस पार्क में कई तरफ के अनुभव लिए और बहुत सारी बातें सीखने को भी मिली। यह कोई बहुत कठिन यात्रा नही थी, लेकिन जनवरी की ठण्ड से इसको बहुत रोमाँचक बना दिया था। हिमालय के उन वीरानों में भटकने का एक अलग ही सुख है, जिसमें हमें बहुत आनंद मिला। मारखा घाटी ट्रेक के बाकी बचे दिनों में हमने लेह के इर्द-गिर्द हेमिस गोम्पा, शे पैलेस, ठीख्शे गोम्पा, पैंगोंग लेक, चांग ला, खारदुंग ला इत्यादि की सैर की और जनवरी के महीने में भी खूब मजे किये।

This Post Has 4 Comments

  1. Ranjeet

    दिल्ली की भागती-दौड़ती जिंदगी से परे, जहाँ पड़ोसी पड़ोसी को नहीं पहचानता, लेह के उस वीराने में वो परिवार हमारे लिए एक देवदूत सरीखा था।
    ☝️
    यह तो आपने बिल्कुल सत्य ही लिखा है., बहुत ही शानदार पोस्ट.

    1. Solo Backpacker

      धन्यवाद सर जी। पहाड़ों पर लोगों के अंदर जो अपनापन मिलता है , वो दिल्ली जैसे महानगरों में वाक़ई में नहीं देखने को मिलता है । पहाड़ों में लोग अपनी ज़िंदगी और अपने जीवन के संघर्षों में मस्त रहते हैं । महानगरों में इंसान अपने संघर्षों से कुंठित ख़ुद में ही पीसता रहता है ।

  2. Anoop Kumar

    क्या बात है आपका यात्रा वृतांत तो बिलकुल ही जीवंत हैं।

    1. Solo Backpacker

      धन्यवाद 🙂

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